ज़ाकिर नाइक और असदुद्दीन ओवैसी के बयानों पर इन दिनों पटना का पारा
इस क़दर ऊपर चढ़ा है कि बारिश की लगातार गिरती तेज़ धार भी इसे नीचे नहीं गिरा पा
रही है। पटना की सड़कों पर पाकिस्तान ज़िदाबाद के कथित नारे के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी
बाढ़ की तरह सीमाएं तोड़ रही है। मचे हंगामे को कोई जेएनयू में कथित देशद्रोही
नारों की अगली कड़ी बताकर परेशान हो रहा है तो कोई मुसलमानो की आवाज़ दबाए जाने की
नई कोशिश बताकर चिंतित है। मामले की आंच यूपी चुनाव तक पहुंच रही है। लेकिन एक आम
भारतीय या बिहारवासी की नज़र से देखें तो इन दोनो तरह की चिंताओं से परे उसकी
चिंता शांतिपूर्ण ज़िदगी में उथल-पुथल की दस्तक को लेकर है। वे हिंदू और मुसलमान
जो ओवैसी के बयानो पर माथापच्ची करने से ज्यादा रोज़ी-रोटी और भाईचारे को तवज्जो
देते हैं आज उनके माथे पर शिकन ज्यादा है। ज़ाकिर के पीस टीवी और उनके कथित भड़कीले
भाषणों का, इस प्रकरण से पहले, जिस हिंदू-मुसलमान ने नाम तक नहीं सुना था, दरअसल
वो इंसान ज्यादा चिंतित है।
पटना में 15 जुलाई को ज़ाकिर नाइक और असदुद्दीन ओवैसी के समर्थन में कुछ
लोगों के द्वारा जो रैली निकाली गई थी उसमें पाकिस्तान ज़िदाबाद के नारे लगाए जाने
का भी आरोप है। इस रैली से संबिंधत विडियो जैसे ही वायरल हुआ चारों तरफ हंगामा मच
गया। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मामला दर्ज किया और एक सख्श को गिरफ्तार
भी किया गया। पुलिस ने विडियो को जांच के लिए लैब में भेज दिया है। मामले की कानूनी
जांच ज़ारी है। लेकिन राजनीति करने वाले लोगों के लिए बैठे-बिठाए ये एक बड़ा
मुद्दा मिल गया है। यूपी चुनाव को देखते हुए इसकी समीक्षा पटना के बजाए लखनऊ में
ज्यादा होती दिख रही है। हालांकि थोड़े इंतज़ार के बाद ये बात स्पष्ट हो जाएगी कि
जुलूस में लगा पाकिस्तान ज़िदाबाद का नारा नकली था या फिर जुलूस के बाद मचा हंगामा
नकली और बनावटी है।
जो लोग इस मुद्दे को जेएनयू प्रकरण की अगली कड़ी बता कर हाय-तौबा मचा रहे
हैं उन्हें ये सोचना चाहिए कि मामले की कानूनी जांच बेहतर है न कि मीडिया ट्रायल।
जेएनयू मुद्दे में जो छीछालेदर हुई वो सबको पता है। वहां धीरे-धीरे देशभक्ति का मुद्दा
गौण हो गया और पूरा मामला वामपंथ बनाम दक्षिणपंथ, कन्हैया बनाम मोदी आदि-आदि में
बदलता गया। हालांकि कानून अपना काम कर रहा था। और अंतिम फैसला इसी के जरिए होना
है। ठीक इसी तरह जिन लोगों ने मुसलमानो पर अत्याचार और वामपंथ की आवाज़ दबाने की
बात कही वे भी बाद में मामले को कानून पर छोड़कर शांत हो गए। पटना में हाल की ये
घटना भी ठीक उसी तरह से कानून के दायरे में जांच की ज़द में है। इसलिए हायतौबा
मचाने के बजाए सभी को संयम से काम लेना चाहिए।
मानवता के हिसाब से देखें तो सारी दुनिया ही ज़िदाबाद होनी चाहिए। हम
भारतीय तो हमेशा से सारी दुनिया को ज़िदाबाद कहते आए हैं। लेकिन इसका मतलब कत्तई
नहीं कि जो देश का कानून है उसके खिलाफ़ जाकर कोई नारा लगाए। हम चाहें हिंदू हों
या मुसलमान रहते तो भारत में हैं। जहां देश की बात आती है वहां अपना देश ही
ज़िंदाबाद होना चाहिए। इस प्रकरण का सबसे बड़ा हल तो यही है कि कानून के हिसाब से
सज़ा तय होनी चाहिए। अगर आरोप सही है तो धर्म-मज़हब के दायरे से ऊपर उठकर दोषी को सज़ा
देने के पक्ष में सबको खड़ा होना चाहिए। और अगर आरोप गलत साबित हों तो
षड़यंत्रकारियों को कानून के हिसाब से सज़ा मिलनी चाहिए, चाहें वे किसी भी
धर्म-मज़हब के हों।
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