Saturday, April 30, 2016

‘गाछे कटहल ओठे तेल’, देखीं भइया नीतीश के खेल !


हिंदी पट्टी में एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘गाछे कटहल ओठे तेल’। ये कहावत इन दिनो बिहार में चरितार्थ हो रही है। वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताया जा रहा है। समाजवादी नेताओं के एक गुट ने नीतीश को देश भर में भावी पीएम के रूप में प्रोमोट करना शुरू कर दिया है। रांकपा प्रमुख शरद पवार ने भी नीतीश को पीएम मैटेरियल बताकर एक शिगूफ़ा छोड़ दिया है। नीतीश कुमार भले ही एक क्षेत्रीय नेता हों लेकिन इन राजनीतिक शिगूफ़ों की वज़ह से वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित ज़रूर हो गए हैं। आइए जानते हैं कि नीतीश के पीएम बनने की कितनी संभावनायें देश में हैं और कितनी अड़चने उनकी राह में आ सकती हैं।

Friday, April 29, 2016

नेपाल ने बनाया नीतीश-मोदी के मेल का प्लान !


ऐसा लगता है जैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच आई दरारों को पाटने की कोशिश अब पड़ोसी देश नेपाल की ओर से हो रही है। तभी तो मोदी और नीतीश को नेपाल के लुंबिनी महोत्सव में एक ही मंच पर एक साथ शिरकत करने का आमंत्रण मिला है। पीएम मोदी ने तो आमंत्रण स्वीकारते हुए नीतीश को अपने ही साथ चलने की गुज़ारिश भी कर दी है। हालांकि नीतीश कुमार की ओर से इस पर प्रतिक्रिया आनी अभी बाकी है।

Thursday, April 28, 2016

बिहार के रास्ते भारत से नज़दीकियां बढ़ाने को बेताब नेपाल


हाल के महीनो में, मधेसी आंदोलन की वज़ह से भारत और नेपाल के राजनीतिक संबंधों में जो कड़वाहट आई थी उसे दूर करने में दोनो देशों ने काफी हद तक सफलता पाई है। बेहतर संबंधों की पुनर्बहाली में बिहार की बड़ी भूमिका रही है। दोनो देशों ने संबंधों में मधुरता और नज़दीकियां लाने का रास्ता बिहार से होकर बनाने के प्रयास तेज़ किए हैं।

बिहार विधानसभा को उड़ाने की धमकी निकली फ़र्जी !



एक चिठ्ठी भेजकर गुरूवार को बिहार विधानसभा के भवन को उड़ाने की जो धमकी दी गई थी, वो अब फ़र्जी बताई जा रही है। पुलिस सूत्रों के अनुसार ये चिठ्ठी किसी शरारत का परिणाम है। हालांकि इस चिठ्ठी के मिलने के बाद बिहार पुलिस हरकत में आ चुकी है। बिहार और झारखंड में कई जांच दल भेजे गए हैं।

Wednesday, April 27, 2016

नीतीश के मंत्री-विधायक शराबी, मोदी के बेदाग !


बिहार में शराबबंदी के बावजूद पीने-पिलाने का दस्तूर ज़ारी है। मीडिया के स्टिंग में माननीयों की भी पोल खुल रही है। इसकी वज़ह से सूबे में शराब पर सियासत ज़ारी है। विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा ने सीएम नीतीश कुमार पर कड़ी टिप्पणी की है। सूबे के पूर्व उप मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार के आधे से ज्यादा मंत्री और विधायक शराबी हैं। उन्होंने एक विधायक का नाम लेकर उनकी जांच करवाने की चुनौती भी दे डाली है। लगे हाथों उन्होंने भाजपा के विधायकों को पाक साफ़ भी क़रार दे दिया। सुमो के बयान पर पलटवार करते हुए जदयू ने उन पर मान हानि का मुक़दमा करने की धमकी दे दी। पक्ष-विपक्ष की इस तक़रार के पीछे जनता की भलाई कम राजनीति ज्यादा दिख रही है।

Monday, April 25, 2016

लालू को खटकने लगी नीतीश की ताक़त !



बिहार की महागठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। जानकारों का कहना है कि छोटे भाई नीतीश कुमार की शासन की शैली से बड़े भाई लालू प्रसाद नाराज़ चल रहे हैं। लालू ने राजद के मंत्रियों की एक गुप्त बैठक बुलाकर मुख्यमंत्री क्षेत्रीय विकास योजना में बदलाव पर विचार किया है। कहा जा रहा है कि सरकार में भागेदारी और महागठबंधन में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद लालू प्रसाद के सुझावों पर ग़ौर नहीं किया जा रहा है। इसकी वज़ह से नाराज़गी है। अपने कोटे के मंत्रियों को अलग से बुलाकर विचार-विमर्श करके लालू नीतीश कुमार को दो टूक संदेश देना चाहते हैं।

‘ताड़ी वालों’ पर फिदा हुए पासवान, नीतीश से लेंगे पंगा



बिहार में पूर्ण शराबबंदी की ज़द में ताड़ी के आ जाने के बाद पासी समाज आंदोलित है। सीएम रहते हुए 90 के दशक में बिहार में ताड़ी को टैक्स फ्री करने वाले लालू प्रसाद ने इस मामले में नीतीश के आगे घुटने टेक दिए हैं। लेकिन समाजवादियों के ग्रुप के एक और कद्दावर नेता और फिलहाल केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने इस बहाने नीतीश कुमार से पंगा लेने का एलान कर दिया है। पासवान ने पटना में धरना दिया है।

Sunday, April 24, 2016

वोट नहीं डालेंगे ! ये जीतन राम मांझी कह रहे हैं



बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने बेतुके बयानो के लिए जाने जाते हैं। मांझी सच्ची बात भी बोलें तो भी बयान पर बवाल मचता है और चुटकी भी ली जाती है। मांझी ने ताज़ा बयान बिहार में चल रहे पंचायत चुनावों को लेकर दिया है। मांझी ने कहा है कि उन्होंने पंचायत चुनाव में जीवन में कभी वोट नहीं डाला है और न कभी डालेंगे।

बिहार का एक ऐसा श्मसान परिसर, जहां होती हैं शादियां



क्या आपने कभी सुना या देखा है कि विवाह जैसे शुभ कार्य किसी श्मसान परिसर में होते हों। लेकिन इसी देश में ऐसा भी होता है। न सिर्फ शादी-विवाह बल्कि मुंडन, जनेऊ, यज्ञ और हिंदू धर्म के अन्य कई पूजा और अनुष्ठान भी यहां होते हैं। ये स्थान है बिहार के दरभंगा का माधवेश्वर परिसर। ये दरभंगा राज की पारिवारिक श्मसान भूमि है जिसमें राजाओं की चितायें जलाई जाती थीं। राजा इस परिसर का इस्तेमाल तंत्र साधना के लिए भी करते थे।

Saturday, April 23, 2016

बिहार के ये तीन गांव, कैंसर महामारी है जिनकी पहचान



बिहार के दरभंगा ज़िले के तीन गांव क़रीब डेढ़ दशक से कैंसर का दंष झेल रहे हैं। ज़िले के बिरौल प्रखंड के पड़री, बेनीपुर के महिनाम और बहेड़ी के पघारी में इन वर्षों में कैंसर ने महामारी का रूप ले लिया है। स्थानीय लोगों की जानकारी के अनुसार इन गांवों में इस दौरान सौ से ज्यादा लोग कैंसर से काल के गाल में समा चुके हैं जबकि दर्जनो लोग अब भी बीमारी से तिल-तिल कर मरने पर मज़बूर हैं। संवेदनहीनता की हद है ये कि सरकार ने इन गांवों की बड़ी आबादी को बीमारी से निज़ात दिलाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। इससे नाराज़ बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने मामले पर संज्ञान लेते हुए हाल ही में बिहार सरकार को निर्देश ज़ारी किए हैं।

नीतीश कुमार ने मांझी को एनडीए के भीतर दे दी मात !



अमित शाह की अगुवाई और ‘नमो-सुमो’ (नरेंद्र मोदी और सुशील मोदी) के नेतृत्व वाली भाजपा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की उस घुड़की से अब तक नहीं डरी है जिसमें उन्होंने कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में लोजपा और रालोसपा के साथ मिलकर एनडीए से इतर नया गठबंधन बनाने की बात कही थी। मांझी ने मुख्य रूप से अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र ये शिगूफ़ा छोड़ा था। लेकिन यहां भी वे नीतीश कुमार की वज़ह से पस्त हो गए। इस साल के कई राज्यों के विधानसभा चुनाव ज़ारी हैं और यूपी की तैयारी ज़ोर शोर से चल रही है, लेकिन मांझी अपनी घुड़की का असर छोड़ने में नाकामयाब हो गए। मांझी की घुड़की और उस पर भाजपा की ठंडी प्रतिक्रिया के दरम्यान नीतीश की आखिर क्या भूमिका है, ये जानकर कोई भी चौंक सकता है।

Friday, April 22, 2016

घूंघट की आड़ में पलता बिहार के विकास का जज़्बा



‘मुझे तो घर की चौखट लांघने की भी इज़ाजत नहीं थी। कुछ करने का जज़्बा था, लेकिन पर्दे की आड़ में सारे सपने चकनाचूर हो रहे थे। आज तो स्थिति बहुत बदल गई है। मैं पंचायत चुनाव में मुखिया प्रत्याशी हूं। वोट मांग रही हूं। घर संभाल सकती हूं तो पंचायत क्यों नहीं’ कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया थी दरभंगा के बेनीपुर के देवराम अमैठी पंचायत में मुखिया का चुनाव लड़ रहीं मुमताज़ बेगम की। बिहार में इन दिनो गांवों की पगडंडियों पर घूंघट ओढ़े, जमात में चलतीं महिलाओं की बातें सुनकर आप दंग रह जाएंगे। घूंघट की आड़ से बुलंद आवाज़ में गांव-पंचायत के विकास के जज़्बे को आप सलाम किए बिना नहीं रह सकेंगे।

Thursday, April 21, 2016

अब बिहार में होगी पूर्ण नशाबंदी !




आने वाले समय में अगर आपको ये सुनने को मिले कि बिहार में शराब और ताड़ी के बाद अन्य नशीली वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लग रहा है तो आपको कैसा महसूस होगा। जानकारों का मानना है बिहार में पूर्ण शराबबंदी के फ़ैसले से करोड़ों लोगों के दिलों में पैठ बना चुकी नीतीश सरकार धीरे-धीरे पूर्ण नशाबंदी के फैसले की तरफ़ बढ़ रही है। नीतीश कुमार ताड़ी पर ढील देने की मांग से पूरी तरह असहमति जता चुके हैं, बावजूद इसके कि ताड़ी पासी समाज की रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया हुआ करता था। उत्साह से लबरेज़ नीतीश कुमार इस मामले में देश में मिसाल कायम करना चाहते हैं।

नीतीश के लिए तेजस्वी यादव क्यों नहीं हैं सीएम मैटेरियल


बिहार के गांवों में किसी भोज में अगर आपने कभी पांत में बैठकर खाना खाया होगा तो ये दृष्य ज़रूर देखा होगा। आपके बगल में बैठे किसी व्यक्ति को पूड़ी बुनिया की ज़रूरत पड़ी होगी तो उसने परोसने वाले को बुलाकर ‘आपकी तरफ़’ इशारा करके कहा होगा कि ‘इन्हें’ पूड़ी बुनिया परोस दें। आपके बगल वाले को भी ‘आपसे’ ये उम्मीद रही होगी कि आप भी ये कहें कि ‘इन्हें’ भी परोस दें। बिहार की राजनीति में आजकल कुछ इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। सीएम नीतीश कुमार पीएम मैटेरियल हो गए हैं तो बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी बिहार के सीएम मैटेरियल कहलाने लगे। अब ये अलग बात है कि खुद नीतीश ने तेजस्वी की तरफ़ इशारा करके अब तक ये नहीं कहा कि इन्हें भी ‘पूड़ी बुनिया’ परोसें। मतलब नीतीश के लिए तेजस्वी सीएम मैटेरियल हैं या नहीं इसमें सस्पेंस बरक़रार है। उधर, लालू प्रसाद को ये हड़बड़ी है कि उनका बेटा कितनी जल्दी सीएम मैटेरियल घोषित हो जाए।

Wednesday, April 20, 2016

ये जो भगवा रंग में रंगे नीतीश हैं



बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने संघ मुक्त, भाजपा मुक्त भारत बनाने की मुहिम क्या छेड़ी, देश की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया। भगवाकरण के विरोधियों को तो नीतीश के रूप में एक नया योद्धा मिल मिल गया। वहीं भगवा और भाजपा समर्थकों में इस योद्धा का चक्रव्यूह तोड़ने की होड़ मच गई। वो तो गनीमत है कि खुद संघ ने क़ड़ाई से मना कर दिया नहीं तो नीतीश कुमार के अतीत का भगवा रंग अब तक देश भर में होली के रंग की तरह बरस रहा होता और भाजपा उसमें नीतीश को गोत गोत कर पछाड़ रही होती। दरअसल संघ की इस मनाही के कई मायने हैं, जो भविष्य की राजनीति के मानक पर तय होते हैं।

राहुल गांधी के लिए नीतीश कुमार को कांग्रेस की ना !


वर्ष 2019 में देश का पीएम बनने का मंसूबा पाले बैठे बिहार के सीएम और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति में पांव जमाना उतना आसान नहीं है। नीतीश संघ और भाजपा मुक्त भारत के नारे के बूते गैर भाजपा दलों को एक मंच पर ‘अपने समर्थन’ में लाना चाहते हैं। लेकिन उनके मंसूबे पर राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने पानी फेर दिया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ शकील अहमद ने नीतीश के अभियान की तारीफ़ तो की लेकिन इशारों-इशारों में ये बता दिया कि राहुल गांधी पर एक और दांव खेलने का निर्णय लेने जा रही उनकी पार्टी नीतीश कुमार को पीएम के रूप में नहीं देखना चाहती है। कांग्रेस के इस रूख की वज़ह से नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।

‘पुत्र मोह’ में नीतीश कुमार के आगे झुके लालू प्रसाद !

देश के धाकड़ समाजवादी नेताओं में से एक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बिहार के सीएम और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में समर्थन देने का एलान कर दिया है। अभी कुछ ही महीनो पहले लालू ने कहा था कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति करेंगे जबकि वे केंद्र के मसले देखेंगे। लेकिन लालू अब अपने पूर्व के एलान से पटलटने पर मज़बूर हो गए। राजनीतिक गलियारों में लालू के ताज़ा एलान को कई दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि बड़े भाई लालू ने अपने बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप के राजनीतिक करिअर को देखते हुए छोटे भाई नीतीश के आगे घुटने टेक दिए हैं। हालांकि राजनीतिक पंडितों ने इस एलान के कई अन्य मायने लगाए हैं। इसमें नीतीश के तीर से भाजपा पर निशाना साधना और छोटे भाई की राजनीतिक नैया पर सवार होकर पटना से दिल्ली तक का सफर तय करने की मंशा के अलावा कई अन्य मंसूबे शामिल हैं।

Tuesday, April 19, 2016

नीतीश कुमार का पद और कद बढ़ने के मायने

बिहार के सीएम नीतीश कुमार अब जनता दल (युनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं. इस मनोनयन के कई बड़े मायने हैं जो बिहार और देश ख़ासकर उत्तर भारत की राजनीति को प्रभावित करेंगे.नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं. उन्होंने बिहार में कई ऐसे महत्वपूर्ण काम किए जिनसे वो अपनी पीएम की दावेदारी को मज़बूत कर सकें. कई मायनो में सफल भी हुए. लेकिन ऐन वक्त पर भाजपा ने उनके सपनो को चकनाचूर कर दिया. तब उन्होंने अपने पुराने साथी और बड़े भाई लालू को साथ लिया और बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा से उसका बदला ले लिया. उसके बाद बिहार में भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया.अब नीतीश कुमार एक तरफ़ तो भाजपा और मोदी से अपना कद बढ़ाने के लिए पद बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ बड़ी चालाकी से लालू का कद अपने मुक़ाबले घटा रहे हैं. इसी रणनीति का एक हिस्सा है उत्तर भारत के कुछ समाजवादी दलों को अपने साथ विलीन करना और उनका नेता बनकर उभरना.

हालांकि नीतीश की राह में कई रोड़े हैं. पहला तो ये कि भाजपा केंद्र की सत्ता में है और उसके पास अभी केंद्र में तीन साल से ज्यादा का समय है. नीतीश को बिहार का विकास करना है तो इसके लिए केंद्र से बेहतर संबंध बनाना होगा. दूसरी तरफ भाजपा नीतीश का कद नहीं बढ़ने देगी. इसके लिए उसके पास बिहार के कई फंड बड़े हथियार हैं.

लालू प्रसाद ने बिहार में महा गठबंधन की सरकर बनने के तुरंत बाद ये एलान किया था कि अब नीतीश बिहार संभालेंगे और खुद लालू देश में घूमकर राजनीति करेंगे. लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा. आज की तारीख में लालू के पास बेटों के माध्यम से शासन-सत्ता में दखल देने के अलावा कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज़ नहीं हो सकी है. वे नीतीश का कद और पद बढ़ता देख रहे हैं. जो काम वे करने चले थे वही काम नीतीश ने अपवे हाथों में ले लिया. मतलब बिहार और देश दोनो नीतीश ही देख रहे हैं..

इन स्थितियों को देखते हुए नीतीश के लिए कई राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव बहुत मायने रखते हैं. या तो नीतीश इन चुनावों में अपनी ताक़त बढ़ा लें या फिर किसी तरह भाजपा की ताकत कमज़ोर करवा सकें. दूसरी तरफ़ लालू की महत्वाकांंक्षा को रोक कर रख सकें. तभी वे देश की राजनीति में अपना कद बढ़ा सकेंगे और पीएम की कुर्सी तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे.

वैसे बिहार और नीतीश की राजनीति के जानकार ये समझते हैं कि नीतीश बिहार की सत्ता को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहेंगे. इसलिए अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के बावजूद वो लालू और भाजपा दोनो के साथ समय समय पर नरमी बरतेंगे. लालू अगर ज्यादा उछले तो नीतीश के सामने कम से कम बिहार में तो विकल्प के रूप में भाजपा है ही.

रही बात शरद यादव की तो फिलहाल जदयू में नीतीश का कद सबसे बड़ा है. शरद भले ही आज रो रहे थे इसके बावजूद उन्हें नीतीश को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी सौंपनी पड़ी.देखना ये होगा कि नीतीश के बढ़ते कद को धाकड़ समाजवादी नेता लालू, शरद यादव, मुलायम सिंह और रामविलास पासवान कैसे पचा पाते हैं. क्योंकि समाजवादी नेता समाजवाद का नारा लगाने के बावजूद एक दूसरे का राजनीतिक कद बढ़ता देखना पसंद नहीं करते. इस लिहाज से नीतीश कुमार के जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के मायने बहुत बड़े हैं.

वीपी सिंह की अगली कड़ी होंगे नीतीश कुमार !


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाजवादी नेताओं की जमात में वर्तमान में देश में सबसे बड़े कद के नेता बनकर उभरे हैं। जानकारों का मानना है कि देश के कई सूबों में बिखरे पड़े समाजवादी नेताओं की मदद से नीतीश कुमार 2019 में देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए हुए हैं। जानकारों का ये भी मानना है कि वे अगर पीएम की कुर्सी तक पहुंचते हैं तो गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई प्रधानमंत्रियों में वीपी सिंह की अगली कड़ी साबित हो सकते हैं।

पंचायत चुनाव पर हर राजनीतिक दल की नज़र, गांवों में पैठ बनाने की कोशिश

बिहार में पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते हैं लेकिन इन चुनावों पर हर राजनीतिक दल की नज़र होती है। दरअसल सूबे में राजनीतिक ज़मीन बढाने का मामला हो या फिर नई ज़मीन तलाशने की बात, हर दल के लिए पंचायत चुनाव सबसे बेहतर अवसर लेकर आते हैं। वर्ष 2016 के पंचायत चुनाव भी इससे अछूते नहीं हैं। यही वज़ह है कि हर दल इस चुनाव में अपने समर्थक प्रत्याशियों को ज्यादा से ज्यादा निर्वाचित कराना चाहता है। दरअसल यही निर्वाचित प्रत्याशी मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और ज़िला परिषद सदस्य के रूप में पार्टियों के लिए निचले स्तर पर जनाधार बनाने से लेकर उनके वोट बैंक तक का मैनेजमेंट संभालने में मददगार होते हैं।

अबकी बार बिहार में नहीं चलेगा 'एमपी' और 'एसपी' का राज !

बिहार देश का ऐसा पहला राज्य था जिसने पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी। सीएम नीतीश कुमार के लिए ये एक ऐसा सपना था जिसे पूरा करना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बिहार में इसे महिला सशक्तीकरण की दिशा में बड़ी पहल कहा गया था। हालांकि देश के कई राजनीतिक पंडितों ने तब आशंका जताई थी। महिला सशक्कतीकरण के मामले में किसी बड़ी सफलता की उम्मीद से बहुत सहमति नहीं जताई गई थी क्योंकि बिहार में महिलाओं की शिक्षा और साक्षरता दर काफी कम रही है। विश्लेषकों का मानना था कि आरक्षण का फायदा महिलाओं को नहीं के बराबर मिलेगा, बल्कि पुरूष ही उनके कंधों पर बंदूक रखकर चलाएंगे। इस तरह ये आरक्षण कहीं छलावा साबित न हो। राजनीतिक पंडितों की दलीलें शुरूआती वर्षों में सही भी लगी थीं। लेकन जैसे-जैसे समय बीतता गया बिहार में महिला आरक्षण की वज़ह से ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का नज़ारा दिखने लगा। ये नज़ारा विकास का कुछ कम ही सही लेकिन महिलाओं की उभरती राजनीतिक ताक़त और सूझबूझ के रूप में ज़रूर दिखा।