Thursday, April 28, 2016

बिहार के रास्ते भारत से नज़दीकियां बढ़ाने को बेताब नेपाल


हाल के महीनो में, मधेसी आंदोलन की वज़ह से भारत और नेपाल के राजनीतिक संबंधों में जो कड़वाहट आई थी उसे दूर करने में दोनो देशों ने काफी हद तक सफलता पाई है। बेहतर संबंधों की पुनर्बहाली में बिहार की बड़ी भूमिका रही है। दोनो देशों ने संबंधों में मधुरता और नज़दीकियां लाने का रास्ता बिहार से होकर बनाने के प्रयास तेज़ किए हैं।
पटना में आयोजित फिक्की के सेमिनार में नेपाल की ओर से संबंधों में गर्माहट बढ़ाने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं। भारत में नेपाल के राजदूत और वहां के चैंबर ऑफ कॉमर्स के अधिकारियों ने इसके लिए छोटे से छोटे प्रयास भी किए जाने के अनुरोध किए हैं। 


सीमा भले ही अंतर्राष्ट्रीय कहलाती हो लेकिन बिहार के लोगों के रिश्ते नेपाल के साथ ऐसे हैं जैसे कि दो गांवों या कस्बों के बीच के हों। बिहार के मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल, रक्सौल जैसी जगहो से लगी सैकड़ों किलोमीटर की सीमाओं के दायरे में बसे लोग आज भी बेटी और रोटी के रिश्तों को गर्मजोशी के साथ निभाते हैं। किसी परिवार में दोनो ओर से शादी-व्याह हुए भले ही दशकों बीत गए हों, लेकिन नेह का नाता कभी टूटता पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है। सीमाओं पर अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत बनी चौकियों पर बैठे पहरेदार आगंतुकों की संवेदनाओं को पहचानते हैं। दोनो तरफ रोज दसियों बार पैदल, साइकिल से, बाइक से या फिर चौपहिया वाहनो से आवागमन करने वाले लोगों के लिए पहरेदार भी किसी कुटुंब से कम नहीं होते हैं। मैंने अपनी दो-तीन नेपाल यात्राओं में इस संवेदनाओं को साफ़ तौर पर महसूस किया है। लेकिन पिछले कुछ समय से कई पक्षों की ओर से ऐसा प्रचारित किया जा रहा था जैसे कि सब कुछ समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। जैसे कि रोटी और बेटी के इस संबंधों पर कंटीली आरियां चल रही हों।

फिक्की की ओर से पटना में आयोजित सेमिनार की मीडिया रिपोर्टिंग से पता चला है कि भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने ये खुलकर कहा है कि नेपाल के लिए चीन भारत से ज्यादा नज़दीक कभी नहीं हो सकता। भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासतों की वज़ह से चीन कभी भी नेपाल के उतना क़रीब नहीं आ सकता है जितना कि भारत। नेपाली राजदूत ने पटना से काठमांडू सीधी उड़ान शुरू किए जाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने रक्सौल-मोतिहारी सड़क को दुरूस्त करने का भी निवेदन किया। रक्सौल स्टेशन पर सुविधायें बढ़ाये जाने और पटना से नेपाल सीमा तक सुपरफास्ट ट्रेन चलाए जाने की भी ज़रूरत बताई। नेपाली राजदूत इन छोटे-छोटे उपायों के ज़रिये भारत-नेपाल के बीच व्यापारिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा दिए जाने की बात कह रहे थे। उनके कथनो का स्वागत किया जाना चाहिए।


बिहार से नेपाल के इलाकों तक अच्छी सड़कें बनाने के प्रयास सालों से चल रहे हैं। लेकिन अब तक कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी है। बिहार की सीमा पार करते ही नेपाली इलाकों में पहुंचने पर टूटी फूटी सड़कें, बिजली का अभाव और कई अन्य परेशानियां यात्रियों को दिखती हैं। हिंदुओं के बड़े तीर्थ स्थल जनकपुर के लिए बिहार के मधुबनी, सुपौल, सीतामढ़ी इलाकों से रोज़ हज़ारों पर्यटक गुजरते हैं। लेकिन उन्हें आवागमन की उचित सुविधायें नहीं मिलती हैं। बिहार के जयनगर से नेपाल के बर्दीबास तक बड़ी रेल लाइन बिछाने का काम वर्षों बाद भी पूरा नहीं हो सका है। इसे जल्द पूरा किया जाना चाहिए। हालांकि कई समस्यायें भारत सरकार की पहल पर ही हल हो सकती हैं लेकिन बिहार सरकार को अपने स्तर से वे काम ज़रूर करने चाहिए जो उसके अधिकार क्षेत्र में आते हों। क्योंकि नेपाल बिहार के रास्ते भारत के बेहद क़रीब आना चाहता है। संबंधों की नज़दीकीयां बढ़ाने में बिहार की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमें इन सकारात्मक प्रयासों का स्वागत करना चाहिए।




No comments:

Post a Comment