Saturday, April 23, 2016

बिहार के ये तीन गांव, कैंसर महामारी है जिनकी पहचान



बिहार के दरभंगा ज़िले के तीन गांव क़रीब डेढ़ दशक से कैंसर का दंष झेल रहे हैं। ज़िले के बिरौल प्रखंड के पड़री, बेनीपुर के महिनाम और बहेड़ी के पघारी में इन वर्षों में कैंसर ने महामारी का रूप ले लिया है। स्थानीय लोगों की जानकारी के अनुसार इन गांवों में इस दौरान सौ से ज्यादा लोग कैंसर से काल के गाल में समा चुके हैं जबकि दर्जनो लोग अब भी बीमारी से तिल-तिल कर मरने पर मज़बूर हैं। संवेदनहीनता की हद है ये कि सरकार ने इन गांवों की बड़ी आबादी को बीमारी से निज़ात दिलाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। इससे नाराज़ बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने मामले पर संज्ञान लेते हुए हाल ही में बिहार सरकार को निर्देश ज़ारी किए हैं।


दरभंगा ज़िले के इन तीन गांवों में कैंसर के मामले क़रीब डेढ़ दशक पहले मिलने शुरू हुए थे। बिरौल प्रखंड के पड़री में पहला मामला मिला तो लोगों ने इसे सामान्य रूप से लिया। लेकिन कुछ ही महीनो में जब एक के बाद एक दर्जन भर से ज्यादा लोग बीमार हो गए तो गांव के लोगों का माथा ठनका। आख़िरकार लोगों ने अपने स्तर से बीमारियों के कारण पता लगाए तो प्रदूषित पानी का मामला सामने आया। तब पीएचईडी ने गांव के पानी की जांच की तो पता चला कि यहां के पानी में आर्सेनिक की मात्रा मानक से बहुत ज्यादा थी। कुछ सालों की जद्दोज़हद के बाद आखिरकार सरकार ने लोगों की फरियाद सुनी और गांव में शुद्ध पेयजल का एक प्लांट लगाया गया। अभी बीमारी पर नियंत्रण शुरू भी नहीं हो पाया था कि कुछ समय बाद ये प्लांट ख़राब हो गया। आज स्थिति वहीं की वहीं पहुंच चुकी है। उधर बेनीपुर के महिनाम में भी एक आर्सेनिक मुक्त पानी का प्लांट लगा है। लेकिन सरकार ने इस पानी को गांव के लोगों तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं की है।


कैंसर के मामले में बाकी के दो गांवों बहेड़ी के पघारी और बेनीपुर के महिनाम की कहानी थोड़ी अलग है। पड़री में जहां पेट के कैंसर के रोगी मिल रहे थे वहीं महिनाम और पघारी में पेट, गला, मुंह, त्वचा और ब्रेन कैंसर जैसे कई अन्य ख़तरनाक मामले सामने आ रहे थे। लोगों का ये अनुमान कि ये बीमारी आर्सेनिक से ही हो रही थी, एक झटके से ग़लत साबित हो गया। एम्स और टाटा मेमोरियल जैसे देश के बड़े अस्पतालों की रिपोर्ट में भी रोगियों में कई चौंकाने वाले लक्षण पाये गए। तब ये बात सामने आई कि महामारी की तरह फैल रहा कैंसर केवल आर्सेनिक की वज़ह से नहीं है। लेकिन सरकार को आज तक ये फुर्सत नहीं हुई कि बाकी के कैंसर के मरीज़ों की जांच कराकर गांवों में इसकी रोकथाम की जा सके। 


मानवाधिकार आयोग के कड़े रूख के बाद बिहार के स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों की एक टीम ने इन गांवों का हाल ही में दौरा किया है। डॉक्टरों की टीम ने जो प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी है उसके मुताबिक आर्सेनिक की जलीय मात्रा इतनी ज्यादा नहीं है कि कैंसर जैसी बीमारी महामारी का रूप ले ले। लेकिन ग्रामीणों के इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर कैंसर के फैलाव की असली वज़ह क्या है। इन गांवों के लोग इतने निराश हैं कि उन्हें सरकार का हर कदम केवल खानापूर्ति ही लगता है।



बिहार के इन तीन गांवों की पहचान बन चुकी कैंसर बीमारी से इन्हें तभी निज़ात मिल पाएगी जब कैंसर के सही कारणों का पता चल सके। लेकिन अब तक इस दिशा में राज्य या केंद्र की सरकार ने कुछ ख़ास नहीं किया है। अगर कोई सक्षम एजेंसी इन गांवों में फैली इस बीमारी पर शोधपरक काम करके इसका निदान निकाले तो ज़रूर इस समस्या से निज़ात मिल सकती है।

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1 comment:

  1. त्राहिमाम. दुनिया भर के विशेषज्ञों के लिए चुनौती है ये बीमारी. कोई तो आकर महसूस करे इन बेचारों का दर्द.

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