Saturday, April 30, 2016

‘गाछे कटहल ओठे तेल’, देखीं भइया नीतीश के खेल !


हिंदी पट्टी में एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘गाछे कटहल ओठे तेल’। ये कहावत इन दिनो बिहार में चरितार्थ हो रही है। वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताया जा रहा है। समाजवादी नेताओं के एक गुट ने नीतीश को देश भर में भावी पीएम के रूप में प्रोमोट करना शुरू कर दिया है। रांकपा प्रमुख शरद पवार ने भी नीतीश को पीएम मैटेरियल बताकर एक शिगूफ़ा छोड़ दिया है। नीतीश कुमार भले ही एक क्षेत्रीय नेता हों लेकिन इन राजनीतिक शिगूफ़ों की वज़ह से वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित ज़रूर हो गए हैं। आइए जानते हैं कि नीतीश के पीएम बनने की कितनी संभावनायें देश में हैं और कितनी अड़चने उनकी राह में आ सकती हैं।

नीतीश कुमार का पीएम बनने का सपना नया नहीं है। ये सपना वे तब से देख रहे हैं जबसे उन्होंने लालू राज को उखाड़ कर बिहार की सत्ता संभाली थी। तब उन्होंने लालू को औकात दिखाई थी। लगभग साढ़े आठ साल तक बिहार में सर्वमान्य नेता के रूप में शासन करने के बाद वे खुद को राष्ट्रीय स्तर का नेता समझने लगे। हालांकि उन्हें बहुमत भाजपा के साथ मिला था। लेकिन इन सालों में भाजपा ने जितनी सहनशीलता का परिचय दिया वही उसकी कमज़ोरी साबित हुई। नीतीश की महत्वाकांक्षा को बढ़ाने में भाजपा की कथित लाचारी का बहुत बड़ा योगदान रहा। जब तक भाजपा को नीतीश की बलवती होती महत्वाकांक्षा का सही से पता चलता तब तक 2014 का लोकसभा चुनाव आ चुका था। नीतीश ये चाहते थे कि मोदी को पीएम पद का दावेदार घोषित नहीं किया जाए। वे चाहते थे कि एनडीए बिना नेता के चुनाव लड़े ताकि परिणाम के बाद उनके लिए भी पीएम पद की गुंजाइश बनी रहे। उधर, भाजपा नीतीश की चाल समझ चुकी थी और उसने राष्ट्रीय दल होने की अपनी ताक़त दिखानी शुरू कर दी। भाजपा के इस रवैये से नाराज़ नीतीश ने बिना देर किए पाला बदला और कभी दुश्मन नंबर वन बताने वाले लालू की गोद में जा बैठे। लेकिन लोकसभा चुनाव केंद्र के मुद्दों पर लड़े जाते हैं। कांग्रेस के प्रति लोगों के गुस्से ने दिल्ली में भाजपा को सिर माथे पर बिठा दिया। भाजपा देश में ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में आ गई। इतना ही नहीं जिस मोदी का नीतीश समेत भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने विरोध किया था वे देश के पीएम बन गए। ये नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा पर पहुत बड़ी चोट थी। इससे नीतीश तिलमिला गए।

उसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव आ गए। नीतीश कुमार नई रणनीति बनाकर आए। उनके साथ प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार आए जिन्होंने लोकसभा चुनाव में मोदी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया था। सूबे में जबर्दस्त जातीय गोलबंदी हुई। लालू-नीतीश की देखादेखी भाजपा ने भी यहां जातीय-धार्मिक आधार पर चुनाव लड़ा। लेकिन उसके साथ केंद्र में डेढ़ साल के शासन की एंटी इंकंबेंसी भी काम कर रही थी। महंगाई और कई लुभावने वादों की सच्चाई जनता जान चुकी थी। कुल मिलाकर भाजपा हार की तरफ बढ़ रही थी, लेकिन खुशफ़हमी की शिकार भी थी। विधानसभा चुनाव में नीतीश-लालू की जोड़ी को ज़बर्दस्त फ़ायदा मिला और बिहार से भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो गया। पासवान, मांझी और कुशवाहा जैसे उसके सहयोगी भी भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सके। उधर, दूसरी तरफ़ लालू-नीतीश की नाव पर सवार होकर बिहार में सालों बाद कांग्रेस भी वैतरणी पार कर चुकी थी। बिहार में भाजपा की ज़बर्दस्त हार से नीतीश का उत्साह चरम पर पहुंचा। वे एक बार फिर से पीएम बनने का ख़्वाब देखने लगे। हाल में शरद यादव को जदयू के अध्यक्ष पद से विदा कर खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष पद संभालना और देश में समाजवादियों को एकत्र करने की कोशिश नीतीश की पीएम पद पाने की तैयारी का ही हिस्सा हैं।

जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के लिए देश का पीएम बनना बहुत ही मुश्किल लक्ष्य है। सबसे पहला संकेत तो महागठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस ने दे दिया है। कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार मानती है। उधर, देश के मज़बूत समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने नीतीश की महत्वाकांक्षा के प्रति कोई दिल्चस्पी नहीं दिखाई है। गैर भाजपा दलों में मज़बूत मायावती ने भी नीतीश के प्रति फिलहाल कोई समर्थन नहीं जताया है। लालू भी नीतीश के साथ तब तक हैं जब तक कि बिहार में सरकार चलाने की बात हो। लालू को अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य की चिंता है। इसलिए वे समय समय पर नीतीश का समर्थन कर रहे हैं। लालू को नज़दीक से समझने वाले लोग ये जानते हैं कि लालू कितनी तेज़ी से रंग बदलते हैं। बाकी देवगौड़ा, अजीत सिंह व अन्य जिन नेताओं की ताक़त के बूते नीतीश खुद को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हों वे खुद थके-हारे नेता हैं। इसलिए नीतीश का पीएम बनना इनकी ताक़त के बूते संभव नहीं है। 

वर्ष 2019 में नीतीश के पीएम बनने की कुछ संभावनायें अगर बनती है तो उन पर ग़ौर करें। भाजपा अगर लोकसभा चुनावों में हारती है और कांग्रेस भी सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा पाती है तब नीतीश पीएम बन सकते हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी होगी। क्योंकि समाजवादी, गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी नेताओं को अपने पक्ष में लामबंदी के लिए मनाना टेढ़ी खीर होगा। दूसरी स्थिति ये है कि खंडित बहुमत की स्थिति में भाजपा या कांग्रेस नीतीश को प्रमोट कर दें तब वे पीएम बन सकते हैं। अंत में ये पता चलता है कि नीतीश के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनो राष्ट्रीय दलों को पीछे छोड़कर अपने लिए दिल्ली में जगह बनाना बहुत मुश्किल है। लोकसभा चुनाव में अभी तीन साल का समय है। इसलिए नीतीश के लिए फिलहाल यही कहा जा सकता है- गाछे कटहल ओठे तेल।

3 comments:

  1. नीतीश जी कोई शक नही महत्वाकांक्षी ही नही,अतिमहत्वाकांक्षी हैं. गत् लोकसभा चुनाव में पूरा हिन्दुस्तान ने देख लिया और गत् विधानसभा चुनाव में तो इनकी सत्ता के लिए महत्वाकांक्षा ने तो इनकी पोल ही खोलकर रख दी. अगर लालू जी का साथ नहीं मिलता तो, इनका राजनीतिक कैरियर ही चौपट हो जाता.
    अब इनकी चाहत प्रधानमंत्री बनने की होने लगी, आपको लगता है कि लालू, मुलायम, मायावती, ममता बनर्जी ...... इस स्वयभू अश्वमेध के घोडे की नकेल नाथ नहीं देंगे?
    भाजपा कोई कच्ची गोली थोडे ही ना खेली है,वह दक्षिण में पांव रख चुका है.
    अभी सम्पन्न होते विधानसभा चुनाव पर नजर रखिए, क्या संकेत देता है?
    वैसे नीतीश के लिए,"राह कठिन है,डगर पनघट की....."

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  2. कभी किंग मेकर रहे लालू क्या नीतीश की नैया पार लगाने में मदद करेंगे, ये भी एक बड़ा सवाल है.

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  3. ये मैने कहाँ लिखा है कि लालू जी ,नीतीश की नैया पार लगाएंगे ? नीतीश जी, लालू जी की नैया में सवार होकर, लालू जी के ही जहाज पर निशाना मारने लगे हैं,भला लालू जी यह सब बर्दाश्त कर लेंगे?

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