ऐसा लगता है जैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच आई दरारों को पाटने की कोशिश अब पड़ोसी देश नेपाल की ओर से हो रही है। तभी तो मोदी और नीतीश को नेपाल के लुंबिनी महोत्सव में एक ही मंच पर एक साथ शिरकत करने का आमंत्रण मिला है। पीएम मोदी ने तो आमंत्रण स्वीकारते हुए नीतीश को अपने ही साथ चलने की गुज़ारिश भी कर दी है। हालांकि नीतीश कुमार की ओर से इस पर प्रतिक्रिया आनी अभी बाकी है।
नेपाल के लुंबिनी में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लुंबिनी महोत्सव का आयोजन होगा। नीतीश कुमार भारत के उस राज्य के सीएम हैं जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था जबकि लुंबिनी भगवान बुद्ध का जन्म स्थान है। नेपाल के नज़रिये से देखें तो इस आयोजन के लिए बिहार के सीएम से बेहतर कोई अतिथि नहीं हो सकता था। उधर, भारत सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं जिन्हें आमंत्रित करना न सिर्फ इस समारोह में चार चांद लगाने जैसा होगा बल्कि पिछले कई महीनो तक चली मधेसी आंदोलन की कटुता को मिटाने का एक प्रयास भी होगा। नेपाल इस अवसर का लाभ उठाना चाहता है। नेपाल को ये भी लगता है कि दिल्ली तक उसकी पहुंच काफी हद तक पटना के रास्ते हो सकती है।
इधर,पटना और नई दिल्ली के नज़रिये से देखें तो इस आमंत्रण के बहाने देश के दो बड़े राजनीतिज्ञों को एक मंच पर आने का अवसर मिल गया है। इस मुलाक़ात के राजनीतिक मायने ढूंढ रहे लोगों को ये लगता है कि पीएम मोदी का नेपाल साथ चलने का सीएम नीतीश को दिया गया आमंत्रण दरअसल देश में भी साथ-साथ चलने का संकेत है। बिहार में ज़बर्दस्त हार का सामना करने के बाद भाजपा यहां अकेली पड़ गई है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में साढ़े आठ साल तक सूबे में बेहतर काम कर चुकी भाजपा आज भी नीतीश में अपना सबसे विश्वस्त सहयोगी देखती है। उसे पता है कि महत्वाकांक्षा से भरे पड़े नीतीश कुमार के दिल में भी भाजपा के लिए जगह है।
उधर, नीतीश कुमार को भी पता है कि उनकी पीएम बनने की राजनीतिक महात्वाकांक्षा एकला चलो के सिद्धांत पर पूरी होने में संदेह है। कांग्रेस ने पहले ही नीतीश की मंशा पर पानी फेर दिया है। नीतीश को ये भी पता है कि लालू उनके न तो विश्वस्त सहयोगी हैं और न ही उनकी इतनी राजनीतिक ताक़त बची है कि वो नीतीश को देश की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा सकें। नीतीश ये भी जानते हैं कि वे देश में जिन तीसरी ताक़तों को एकत्र करने का प्रयास कर रहे हैं, दरअसल वे थकी-हारी ताक़तें हैं। न तो मुलायम उनके साथ हैं और न ही पासवान जैसे पक्के समाजवादी नेता। ऐसे में अगर 2019 में कोई भी राजनीतिक संभावना बनती है तो भाजपा उनका साथ दे सकती है। उधर, भाजपा को ये उम्मीद है कि महत्वाकांक्षी नीतीश अगर उसके साथ आये तो कांग्रेस की मिट्टी पलीद करना उसके लिए आसान हो जाएगा। बस इसी संभावना को आगे बढ़ाने के तहत मोदी ने नीतीश को पड़ोसी देश में अपने साथ चलने का आग्रह कर दिया है।
हम इस कदम का स्वागत करते हैं ।
ReplyDeleteकिस कदम का स्वागत कर रहे हैं, नेपाल के आमंत्रण का या फिर नीतीश-मोदी के एक मंच पर जाने की संभावना का.
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