Sunday, April 24, 2016

बिहार का एक ऐसा श्मसान परिसर, जहां होती हैं शादियां



क्या आपने कभी सुना या देखा है कि विवाह जैसे शुभ कार्य किसी श्मसान परिसर में होते हों। लेकिन इसी देश में ऐसा भी होता है। न सिर्फ शादी-विवाह बल्कि मुंडन, जनेऊ, यज्ञ और हिंदू धर्म के अन्य कई पूजा और अनुष्ठान भी यहां होते हैं। ये स्थान है बिहार के दरभंगा का माधवेश्वर परिसर। ये दरभंगा राज की पारिवारिक श्मसान भूमि है जिसमें राजाओं की चितायें जलाई जाती थीं। राजा इस परिसर का इस्तेमाल तंत्र साधना के लिए भी करते थे।



दरभंगा राज की स्थापना सन् 1556 में हुई थी. ये राज मुग़ल सम्राट और हिंदुस्तान के बादशाह अकबर ने महेश ठाकुर को दिया था. राजा महेश ठाकुर इस राजवंश के पहले और महाराजा कामेश्वर सिंह (1962) अंतिम महाराजा हुए. दरभंगा राज सरकार-ए-तिरहुत के नाम से जाना गया. इस राज की सीमा गंगा के पर आज के पूर्वी उत्तर प्रदेश की सीमा से लेकर झारखंड तक फैली थी. समूचा उत्तर बिहार इसके शासन के दायरे में आता था. दरभंगा इस राज की राजधानी था.



दरभंगा राज परिवार के निजी शमसान का नाम माधवेश्‍वर है। इस परिसर का निमार्ण 1762 में महाराजा माधव सिंह ने किया। राजा माधव सिंह ने इस परिसर की स्‍थापना एक श्मसान महादेव की स्‍थापना कर की। महादेव मंदिर इस परिसर का सबसे पुराना मंदिर है। इस परिसर में वैसे तो दो दर्जन से अधिक समाधियां हैं, लेकिन 7 समाधियों पर मंदिरों के निर्माण किए गए हैं। बाकी समाधियों पर पेड लगे हुए हैं या फिर वैसे ही जमीन भर दिखती हैं। पूरे परिसर में मात्र एक मंदिर है जो महादेव का है, बाकी सभी मंदिर देवियों के मंदिर हैं। माधवेश्‍वर महादेव मंदिर के परिसर में ही राजा माधव सिंह की अस्थि रखी हुई है क्‍योंकि उनका निधन दरभंगा में नहीं हुआ था। इसी अस्थि स्‍थल पर आज भी राज परिवार के शव को अंतिम संस्‍कार से पूर्व रखने की परंपरा है। इस परिसर में आखिरी चिता युवराज जीवेश्वर सिंह की 1982 में जली थी.



पहले इस श्मसान भूमि का उपयोग केवल राज परिवार के लोग अंत्येष्टि और तंत्र साधना के लिए करते थे. सन् 1997 में इस परिसर के मंदिरों में नवाह्न यज्ञ की अनुमति अंतिम महारानी कामसुंदरी साहिबा उर्फ कल्याणी ने दी. धीरे-धीरे इस परिसर में अन्य शुभ कार्य भी होने लगे. उसके बाद मंदिरों में शादी ब्याह का सिलसिला भी शुरू हो गया. इस परिसर में मुख्‍य रूप से महाराजा रुद्र सिंह की समाधि पर रुद्रेश्‍वरी काली मंदिर, महाराजा लक्ष्‍मेश्‍वर सिंह की समाधि पर लक्ष्‍मेश्‍वरी तारा मंदिर, महाराजा रामेश्‍वर सिंह की समाधि पर रामेश्‍वरी श्‍यामा मंदिर, राजमाता की समाधि पर अन्‍नपूर्णा मंदिर, महाराजा कामेश्‍वर सिंह की समाधि पर कामेश्‍वरी श्‍यामा मंदिर का निर्माण किया गया है। यह भारत में दूसरा ऐसा परिसर है जहां राज परिवार की समाधि पर मंदिरों का निर्माण किया गया है। ऐसा ही एक परिसर कश्मीर के राज परिवार (जम्‍मू) में भी अवस्थित है, जहां शादियां होती हैं.



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4 comments:

  1. जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।

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  2. 1970 के आसपास यह परिसर वियावान लगता था. शाम में आने से अजीब डर लगता था. मुख्य मंदिर जो महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के चिता पर बनी है,पर संध्या आरती के वक्त गीदरों का झुंड इकट्ठा हो जाता था. अगर आपने प्रसाद का भोग चढाया है तो कुछ उसे भी चाहिए, इसके लिए वह आपका परिसर के सीमा तक पीछा करता था,आक्रमण नहीं करता था. आपने प्रसाद दिया तो भला ना दिया तो भी भला, वापस लौट जाता.
    इस मंदिर के पश्चिमोत्तर कोने में आज भी अग्नि की तपिश महसूस होती है, कहा जाता है कि महाराज की चिता अबतक बूझी नहीं है.
    इस चिता-स्थल पर विशाल काली मूर्ति, फ्रांस की बनी ग्रेनाइट पत्थर की है.

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  3. वह तपिश आज भी महसूस होती है.

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    1. वाह! आपने तो इस आलेख में चार चांद लगा दिया. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

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