Saturday, April 23, 2016

नीतीश कुमार ने मांझी को एनडीए के भीतर दे दी मात !



अमित शाह की अगुवाई और ‘नमो-सुमो’ (नरेंद्र मोदी और सुशील मोदी) के नेतृत्व वाली भाजपा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की उस घुड़की से अब तक नहीं डरी है जिसमें उन्होंने कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में लोजपा और रालोसपा के साथ मिलकर एनडीए से इतर नया गठबंधन बनाने की बात कही थी। मांझी ने मुख्य रूप से अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र ये शिगूफ़ा छोड़ा था। लेकिन यहां भी वे नीतीश कुमार की वज़ह से पस्त हो गए। इस साल के कई राज्यों के विधानसभा चुनाव ज़ारी हैं और यूपी की तैयारी ज़ोर शोर से चल रही है, लेकिन मांझी अपनी घुड़की का असर छोड़ने में नाकामयाब हो गए। मांझी की घुड़की और उस पर भाजपा की ठंडी प्रतिक्रिया के दरम्यान नीतीश की आखिर क्या भूमिका है, ये जानकर कोई भी चौंक सकता है।


नीतीश कुमार को चुनौती देकर पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में उतरी जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ‘हम’ बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई थी। उस चुनाव में भाजपा ने हालांकि अपना अस्तित्व बचाने लायक प्रदर्शन ज़रूर किया था। बिहार के मतदाताओं की ओर से बुरी तरह से नकारे जाने के बावजूद मांझी को ये उम्मीद थी कि भाजपा के लिए विभीषण की भूमिका निभाने के ईनाम स्वरूप दिल्ली की सत्ता में प्रत्यक्ष या परोक्ष भागेदारी ज़रूर मिलेगी। कम से कम उन्हें राज्यसभा ज़रूर भेजा जाएगा। लेकिन बिहार में क़रारी हार से झुंझलाई भाजपा ने मांझी को कोई तवज्जो ही नहीं दी। इससे आहत मांझी ने नया दांव खेला। उन्होंने लोजपा और रालोसपा को एकजुट कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताक़त दिखाने की योजना बनाई। मांझी ने कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में एनडीए से अलग गठबंधन बनाने का एलान कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने यूपी में मायावती की ओर भी पासा फेंका लेकिन बहन जी की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं मिली। ठंडे मन से लोजपा और रालोसपा मांझी के साथ एक कदम आये ज़रूर लेकिन फिर पीछे हट गए। 



दरअसल मांझी के शिगूफे में भाजपा के नहीं पड़ने के कई कारण हैं। पहला कारण तो ये है कि मांझी को भाजपा ने जिस उद्देश्य के लिए अपने साथ लिया था वो बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश को टक्कर देना था। इसमें मांझी उसके किसी काम नहीं आए। दूसरी और सबसे बड़ी वज़ह ये कि भाजपा बिहार में भले ही नीतीश के विरोध की राजनीति कर रही हो लेकिन उसे पता है कि भविष्य में भी नीतीश कुमार ही उसके सबसे निकट के सहयोगी साबित हो सकते हैं। इसलिए मांझी को उनके हाल पर छोड़े रखना उसकी रणनीति है। उधर, लोजपा और रालोसपा जैसे दलों के नेताओं को ये पता है कि कम से कम केंद्र की सत्ता में बने रहना ही उनके राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रख सकता है। उन्हें ये भी पता है कि मांझी के पास घुड़की देने के अलावा कोई अस्त्र नहीं है। इसलिए भाजपा ने उन्हें तवज्जो नहीं दी।

6 comments:

  1. यही तो है राजनीति का असली खेल.

    ReplyDelete
  2. jitan ram maanjhi matlab 'dhobi ka kutta na ghar ka naa ghat ka '

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. धन्यवाद देव कुमार जी. ब्लॉग पर आते रहिये.

      Delete