Friday, April 22, 2016

घूंघट की आड़ में पलता बिहार के विकास का जज़्बा



‘मुझे तो घर की चौखट लांघने की भी इज़ाजत नहीं थी। कुछ करने का जज़्बा था, लेकिन पर्दे की आड़ में सारे सपने चकनाचूर हो रहे थे। आज तो स्थिति बहुत बदल गई है। मैं पंचायत चुनाव में मुखिया प्रत्याशी हूं। वोट मांग रही हूं। घर संभाल सकती हूं तो पंचायत क्यों नहीं’ कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया थी दरभंगा के बेनीपुर के देवराम अमैठी पंचायत में मुखिया का चुनाव लड़ रहीं मुमताज़ बेगम की। बिहार में इन दिनो गांवों की पगडंडियों पर घूंघट ओढ़े, जमात में चलतीं महिलाओं की बातें सुनकर आप दंग रह जाएंगे। घूंघट की आड़ से बुलंद आवाज़ में गांव-पंचायत के विकास के जज़्बे को आप सलाम किए बिना नहीं रह सकेंगे।




बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण मिले बरसों बीत गए। बेशक महिलाएं अब भी घूंघट में दिखती हैं, लेकिन ये आरक्षण उनकी आवाज़ को बुलंद बना रहा है। महिला चाहे पढ़ी-लिखी हो या फिर अनपढ़ या मात्र साक्षर, वो अपने गांव के विकास की हर योजना में पूरी भागेदारी चाहती है। जो सृजनात्मकता घर को सजाने-संवारने में दिखाती है वो गांव और पंचायत के लिए भी उनके मन में है। न सिर्फ प्रत्याशी बल्कि महिला मतदाताओं में भी उतना ही जोश-ओ-खरोश है। दरभंगा के एक गांव की वोटर शबनम खातून कहती हैं ‘महिलायें अपनी मर्ज़ी से वोट दें। उन्हें रोका-टोका न जाए। में तो महिला प्रत्याशी को ही वोट दूंगी। कम से कम वो पुरूष से ज्यादा संवेदनशील तो होगी। उससे मैं अपनी समस्या खुलकर बता तो सकूंगी. और मुझे विश्वास है कि वो पुरूष से ज्यादा विकास कर सकेगी’.



बिहार में जब पहली बार पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया गया तो कई लोगों को शंका थी कि ये ज्यादा फ़ायदेमंद साबित नहीं होगा। लेकिन अगर आज की स्थिति देखें तो ये लगता है कि देर से ही सही सूबे में महिलायें सशक्त हुई हैं तो उन्होंने गांवों के विकास में भी अपना योगदान दिया है। सबसे ज्यादा आश्चर्य तब होता है जब महज़ एक दशक पहले किसी अल्पसंख्यक समुदाय की महिला को आप घर की दहलीज़ से बाहर नहीं देख सकते थे, लेकिन आज वो न सिर्फ दहलीज़ लांघ चुकी है बल्कि बेधड़क होकर पगडंडियों पर घूम रही है। 



नीतीश कुमार ने बिहार में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का ऐतिहासिक फ़ैसला किया था। इसका फ़ायदा साल दर साल दिख रहा है। न सिर्फ साक्षरता और शिक्षा दर में वृद्धि दर्ज़ हुई है बल्कि पंचायती राज संस्थाओं की कार्य संस्कृति में सकारात्मक परिवर्तन भी दिख रहा है। हालांकि ये सच्चाई अभी आधी है। आज भी महिलायें पूरी तरह से अपनी कार्य क्षमता का उपयोग नहीं कर रही हैं। मतलब ये कि जब वे घूंघट से पूरी तरह बाहर निकलेंगी तभी सही मामले में महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर सकेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो दिन भी जल्द आएगा।



(ई टीवी बिहार झारखंड न्यूज़ चैनल पर प्रसारित और www.pradesh18.com पर प्रकाशित मेरी ख़बरों पर आधारित आलेख. बिहार के चप्पे चप्पे की ख़बर पढ़ने के लिए www.pradesh18.com/bihar पर ज़रूर आयें)

1 comment:

  1. आधी आबादी को मेरा सलाम.

    ReplyDelete