Tuesday, August 1, 2017

बिहारः शरद यादव और उपेंद्र कुशवाहा के बूते नीतीश-मोदी से लड़ेंगे लालू

शरद यादव व लालू (साभार फाइल फोटो)
बिहार की सत्ता हाथ से जाने के बाद लालू प्रसाद और उनका परिवार अपने जीवन के एक और मुश्किल भरे दौर से गुजर रहे हैं. एक तरफ घोटालों व अनियमितताओं पर उन पर सीबीआइ, इडी और आयकर विभाग का शिकंजा है तो दूसरी तरफ राजनीतिक साख बचाए रखने की चुनौती. फिलहाल राजनीतिक तौर पर उनकी जमा-पूंजी उनका जातीय समीकरण वाला वोट बैंक ही बचा है, जिसे जानकार अब भी काफी मजबूत मानते हैं. इसलिए लालू अब नए सिरे से बिहार और देश में विपक्ष और खुद को मजबूत बनाने की कवायद में जुट गए हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वे नीतीश से नाराज चल रहे शरद यादव को राष्ट्रीय स्तर पर तो उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में नेता बनाकर पेश करना चाहते हैं. वे एनडीए के एक और रूठे साथी जीतन राम मांझी को भी अपने साथ लाने की कवायद में हैं.


उपेंद्र कुशवाहा (साभार फाइल फोटो)
बिहार में नए राजनीतिक समीकरण बनने का सबसे ज्यादा नुकसान लालू प्रसाद को हुआ है. उनके हाथ से सत्ता तो गई ही, एक वोट बैंक भी चला गया जो नीतीश की तरफ से आया था. भले ही वह बड़ा वोट बैंक नहीं था लेकिन राजनीति में नीतीश के रूप में “एक जोड़ एक बराबर ग्यारह” की तरह था. लालू को उसकी भरपाई करनी है. नीतीश के पाला बदलने से नाराज चल रहे शरद यादव को लालू अपने पक्ष में करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. उधर नीतीश शरद यादव को पिछले काफी समय से पटखनी देते आए हैं. उनसे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ले लिया. अब एनडीए में गए हैं तो वहां भी जदयू का नेतृत्व खुद कर रहे हैं. ऐसे में पहले से उपेक्षित शरद यादव को यह लगता है कि उन्हें एनडीए में कोई खास लाभ नहीं मिलने वाला है. नीतीश ने उन्हें दोयम दर्जे का नेता बनाकर छोड़ दिया है. इसलिए शरद यादव कांग्रेस व वामपंथी नेताओं से मिलकर अपनी उम्मीद तलाश रहे हैं. वे बदली परिस्थितियों में विपक्ष का नेतृत्व करना चाहते हैं. संभव है उनके मन में भी नीतीश की तरह पीएम बनने का ख्वाब हो. लालू अपना स्वार्थ साधने के लिए उनकी इच्छाओं को बढ़ा रहे हैं.

जीतनराम मांझी व लालू (साभार फाइल फोटो)
इधर, नीतीश के पाला बदलते ही एनडीए के एक अन्य सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा भी खुश नहीं हैं. वे नीतीश के धुर विरोधी माने जाते हैं. महत्वाकांक्षा में उनसे कम नहीं हैं. उन्हें हमेशा यह लगता है कि नीतीश ने उनकी जाति कोइरी के वोट बैंक पर कब्जा कर रखा है. नीतीश कुमार भी उनसे खासे नाराज हैं. यही कारण है कि जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ तो कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को उसमें शामिल करने से नीतीश ने साफ मना कर दिया. ऐसे में कुशवाहा को ये लगता है कि नीतीश के रहते एनडीए में उनकी ज्यादा पूछ नहीं रहेगी. लालू कुशवाहा की इस मनःस्थिति का भी फायदा उठाना चाहते हैं. राजनीतिक जानकारों का यह मानना है कि कुशवाहा को बिहार में अगला सीएम प्रोजेक्ट करने का प्रस्ताव देकर वे उन्हें अपने पाले में कर सकते हैं. यहां यहृ भी बता दें कि शरद यादव और उपेंद्र कुशवाहा दोनो ऐसे नेता रहे हैं जो लालू के कथित जंगलराज के खिलाफ नीतीश के साथ रहे थे और लालू को सत्ता से बेदखल करने में महती भूमिका निभाई है. लेकिन राजनीति की बदली परिस्थितियों में अपनी महत्वाकांक्षा की वजह से नीतीश की तरह फिर से लालू के साथ आ जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. मंत्रिमंडल में जगह नहीं पाने से नाराज चल रहे एनडीए के एक अन्य सहयोगी जीतन राम मांझी को भी लालू अपने पक्ष में करना चाहते हैं. मांझी फिलहाल राज्यपाल बनाए जाने की उम्मीद में खामोश हैं लेकिन जल्द ही अगर उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई तो वे भी ला बदलकर लालू के खेमें में जा सकते हैं. हालांकि फिलहाल यह कहना काफी कठिन है कि शरद यादव, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के लालू के खेमे में आ जाने के बाद भी लालू को कितना फायदा होगा. या फिर ये नेता लालू के साथ आकर कितना फायदा उठा पाएंगे.

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