Thursday, August 10, 2017

बिहारः क्या नीतीश का विकल्प बनकर उभरेंगे शरद यादव

शरद यादव व नीतीश कुमार (साभार फाइल फोटो)
बिहार में जदयू का राजद-कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ जाना वरिष्ठ नेता शरद यादव को नहीं भाया. वे इसका विरोध कर चुके हैं. वे नीतीश के फैसले के तुरंत बाद कांग्रेस समेत कुछ कम्युनिस्ट नेताओं से मिले और और अपनी राय रखी. हालांकि उन्होंने लालू के उस आमंत्रण को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्हें राजद में शामिल होने का न्योता मिला था. शरद यादव फिलहाल बिहार में हैं और वे सारण जिले के सोनपुर से मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मधुबनी होते हुए अपने चुनाव क्षेत्र मधेपुरा तक की सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं. दरअसल इस यात्रा के माध्यम से वे अपने जनाधार को भांपना चाहते हैं. वे यह भी जांचना चाहते हैं कि जदयू के इस फैसले के बाद कौन-कौन से नेता और आम लोगों की कितनी भीड़ उनके साथ आती हैं. उनके मन में विपक्ष में रहते हुए, नीतीश जो विरासत छोड़ गए, उस पर कब्जा करने की इच्छा है.

शरद यादव व लालू प्रसाद (साभार फाइल फोटो)
दरअसल शरद यादव उम्र के इस पड़ाव पर आकर अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. नीतीश के पाला बदलने के बाद उनके मन में कहीं न कहीं ये है कि वे देश में विपक्ष का नेता बनकर उभर सकते हैं. हालांकि उन्हें यह पता है कि एनडीए से अलग होने के बाद चार साल तक नीतीश कुमार यही कवायद करके थक गए तो उन्होंने फिर से एनडीए का दामन थाम लिया और नरेंद्र मोदी को अपराजेय बता दिया.

शरद यादव व पीएम नरेंद्र मोदी (साभार फाइल फोटो)
शरद यादव मध्य प्रदेश से आते हैं. लेकिन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ने की वजह से उनकी कर्मभूमि बिहार ही रही है. हालांकि उन्हें जनाधार वाला नेता कभी नहीं माना गया. वे दिल्ली में रहकर एलिट की तरह की राजनीति करते रहे. यही वजह है कि वे न तो लालू सरीखा जनाधार बना सके और न ही नीतीश सरीखा अपनी उपयोगिता से अवसर को भुनाने की क्षमता विकसित कर सके. इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें पद और प्रतिष्ठा के लिए हमेशा नीतीश और लालू का मोहताज होना पड़ा. वे लालू पर परिवारवाद का आरोप लगाकर जनता दल से अलग हुए थे. अब जबकि लालू का आमंत्रण मिल रहा है तो वे भली-भांति जानते हैं कि राजद लालू की पारिवारिक पार्टी है और उनके लिए वहां कोई खास नहीं है. दूसरी तरफ जिस जदयू में फिलहाल वे हैं उसपर नीतीश का एकाधिकार है. नीतीश ने उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया है. नीतीश कुमार एनडीए में दोबारा जाकर शरद को शक्तिशाली बनाने के मूड में नहीं हैं. वे जॉर्ज फर्नांडिस की तरह उन्हें किनारे लगाना चाहते हैं. उन्हें यह पता है कि वे अब एनडीए का कन्वेनर नहीं बन पाएंगे जैसा कि पिछले कार्यकाल में रहे थे. बस इसी वजह से पार्टी में उन्हें अपना रुतबा खत्म होता नजर आ रहा है.

शरद यादव व सोनिया गांधी
उन्होंने उत्तर बिहार में एक छोटी सड़क यात्रा के माध्यम से अपना लिटमस टेस्ट करने की सोची है. लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचकर वे नये सिरे से अपना जनाधार कैसे बना पाएंगे, यह उनके सोचने की बात है. दूसरी बात यह कि वे उसी वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहते हैं जो लालू और नीतीश का है. तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि बिहार की राजनीति करते हुए उन्होंने कभी भी जमीन से जुड़ा नेता होने का तमगा हासिल नहीं किया. बिहार के मतदाताओं के मन में शरद यादव की छवि येन-केन प्रकारेण संसद में पहुंचकर दिल्ली की राजनीति करने वाले नेता की रही है. शरद यादव बिहार की जनता को हमेशा वोट बैंक मानते आए हैं. यही कारण है कि उनकी जाति के मतदाता भी उनके पक्ष में अब खड़े नहीं होते. ऐसे में उनकी देश में विपक्ष का नया चेहरा बनकर उभरने की जो इच्छा है उसके पूरा होने में संदेह है.

1 comment:

  1. शरद यादव की हौसियत कितनी है किसी से छुपी नहीं है. वे अपने गृह-प्रदेश का भी प्रतिनिधित्त्व भी नहीं कर सके तो बिहार में लालू और नीतीश जी ने उन्हें बैशाखी प्रदान किया, जिसके सहारे चल भी रहें हैं. उन्हें पार्टी की चिंता नहीं है, वे अपनी फ़िक्र में गले जा रहें हैं.
    यह बात सही है कि बिहार में जातिगत वोट है और यादवों का अपना वोट बैंक है, इसी बैंक में अपना खाता खुलवाने के चक्कर में लगे हुए हैं.

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