Monday, August 28, 2017

बिहारः लालू की रैली में जुटी भीड़ क्या उन्हें वोट भी देगी

लालू की रैली में जुटी भीड़ (साभार फाइल फोटो)
पटना में रविवार को संपन्न लालू की ‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ’ महारैली में खासी भीड़ जुटी. इसने यह साबित किया कि लालू अब भी भीड़ जुटाने में माहिर हैं. उनका कैडर वोट बैंक भले ही दरक गया हो, लेकिन अब भी कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का उनका मैनेजमेंट गजब का है. अब अहम सवाल यह है कि आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यह भीड़ क्या वोट में बदल पाएगी. लालू अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके सामने अपने बेटों को स्थापित करने की चुनौती है. सारा दारोमदार छोटे बेटे तेजस्वी पर टिका है. वे लालू की तरह तेज-तर्रार नेता की छवि में फिट भी हो रहे हैं. लेकिन जब तक चुनाव में सत्ता पाने लायक या उसे प्रभावित करने लायक जीत हासिल नहीं करेंगे तब तक उनकी लड़ाई का कोई मतलब नहीं रह जाता.

रैली के मंच पर लालू एंड फैमिली (साभार फाइल फोटो)
तेजस्वी और उनके पीछे खड़े लालू की सबसे बड़ी चुनौती उनके मुकाबले में लगातार मजबूत होकर देश में उभर रही भाजपा है. पिछले विधानसभा चुनाव में लालू को नीतीश का साथ मिला था इसलिए वे जीत सके थे और बिहार में सत्ता में आने का उन्हें मौका मिल गया. लेकिन उनकी दागदार छवि और भाजपा का हाथ धोकर उनके पीछे पड़ जाना ऐसे कारण रहे जिनकी वजह से लालू ज्यादा दिनों तक सत्ता बचा कर नहीं रख सके. जैसे ही लालू एंड फैमिली बड़े घपलों-घोटालों के आरोप में चर्चा में आने लगी, वैसे ही नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी और वे लालू को उनके हाल पर छोड़ कर भाजपा के पाले में चले गए. अब लालू के पास एकमात्र विकल्प चुनाव में जीत हासिल कर सत्ता पाना है. इससे कम पर वे अपना राजनीतिक वजूद नहीं बचा पाएंगे. उसमें अभी कम से कम दो साल की देरी है.

रैली के मंच पर लालू के साथ ममता बनर्जी और अखिलेश यादव (साभार फाइल फोटो)
बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या लालू भाजपा के खिलाफ देश में निर्णायक लहर पैदा कर सकेंगे. उनके साथ 
विपक्ष के वैसे नेता हैं जिन्हें जनता ने या ते नकार दिया है या फिर वे किसी एक क्षेत्र विशेष तक सिमटे हुए हैं. रैली में जो नेता शामिल हुए जरूरी नहीं कि वे आगे भी लालू की मुहिम का हिस्सा बने रहें. दूसरी तरफ भाजपा लगातार मजबूत हो रही है. जहां जरूरत पड़ती है वह विपक्ष को तोड़ देती है. ऐसे में लालू के लिए यह बेहद मुश्किल काम है. लालू के लिए एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि वे चारा घोटाले में निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं. कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ जा सकता है. यही नहीं बेटे तेजस्वी, तेज प्रताप, पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा और दामाद शैलेश भी कई अनियमितता के मामलों में फंस चुके हैं. कई मामलों में सीबीआइ ने प्राथमिकी दर्ज कराई है, अब चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी में है. उसके बाद जेल जाने की नौबत आ सकती है. ऐसे में राजनीतिक मुहिम चलाना इस परिवार के लिए बेहद मुश्किल होगा.
मंच पर गले मिलते शरद यादव और लालू (साभार फाइल फोटो)
जहां तक बिहार की बात है तो यहां अब वैसा कोई भी राजनीतिक दल या नेता नहीं बचा है जो नीतीश और भाजपा का मुकाबला करने में सक्षम हो. लालू एंड फैमिली की दागदार छवि ने उनके कैडर वोट को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. हर विधानसभा में उनका कैडर वोट भले ही मौजूद हो लेकिन राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि वह जरूरी सीटें जीतने लायक नहीं बचा है. भाजपा पिछले विधानसभा चुनावों में जातीय गोलबंदी की वजह से हार गयी थी. उसकी हार का कारण टिकट बांटने की रणनीति में चूक भी थी. उसने रालोसपा, हम और लोजपा के साथ भागेदारी निभाने के चक्कर में वैसे लोगों को भी टिकट बांट दिए जो जीत के कतई काबिल नहीं थे. अब 2020 या अगर उससे पहले विधानसभा चुनाव होते हैं तो भाजपा वह गलती दोहराने से बचेगी. दूसरी बात उसके साथ नीतीश कुमार के रूप में साफ-सुथरी छवि का नेता भी है जिस पर बिहार में सत्ता चलाने और जनता को अपनी ओर करने का लंबा तजुर्बा है. पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा खुद भी मजबूत हुई है. ऐसे में देखना होगा कि लालू कौन सा करिश्मा कर पाते हैं.

1 comment:

  1. सही आकलन किया है आपने ! जरूरी नही कि विपक्ष एकजुट ही रहे,इसका एक उदाहरण है कि बिहार के कांग्रेसियों में असंतुष्टि के स्वर उभरने लगे हैं, उन्हें इस बात का दुख है कि इस रैली में बिहार के कांग्रेसियों को तरजीह नहीं दी गई.

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