Saturday, August 26, 2017

बिहार: थके-हारे नेताओं के बूते पटना रैली में तेजस्वी का कद बढ़ाएंगे लालू

लालू की रैली की होर्डिंग (साभार फाइल फोटो)
पटना के गांधी मैदान में रविवार को लालू की ‘देश बचाओ, भाजपा भगाओ’ महारैली को प्रमुख विपक्षी पार्टियों की खास तवज्जो नहीं मिली है. रैली में न तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पहुंच रही हैं और न ही उपाध्यक्ष राहुल गांधी. बीएसपी प्रमुख मायावती भी नहीं आएंगी. कांग्रेस की ओर से महासचिव सीपी जोशी और बीएसपी की ओर से महासचिव सतीश चंद्र मिश्र आएंगे. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला आएंगे. इस रैली पर भाजपा बिहार में आयी भीषण बाढ़ को लेकर पहले ही सवाल खड़े कर चुकी है. उधर, बाबा राम रहीम प्रकरण को लेकर देश के उत्तरी इलाके दो दिनों से जल रहे हैं. इन परिस्थितियों में भी लालू की सबसे बड़ी चिंता रैली को सफल बनाने और अपने बेटे तेजस्वी को विपक्ष के बड़े चेहरे के रूप में स्वीकार्यता दिलाने की है.


जनादेश अपमान यात्रा में तेजस्वी (साभार फाइल फोटो)
बिहार में महागठबंधन से संबंध तोड़कर नीतीश कुमार ने सरकार बनायी थी. इससे लालू बौखला गए थे. तेजस्वी ने तत्काल जनादेश अपमान यात्रा के बहाने अपनी स्वीकार्यता जांचने की कसरत शुरू की थी. इसका असर लालू के कैड़र वोट पर जरूर दिखा, लेकिन बिहार की जनता ने नीतीश और भाजपा के गठबंधन को नकारात्मक रूप में नहीं देखा है. रैली के पहले तेजस्वी की यात्रा, सृजन घोटाले को लेकर उनका कड़ा रुख और बोलने की उनकी अच्छी शैली की लोगों ने जरूर सराहना की है. लालू इससे गदगद हैं और वे इस रैली के माध्यम से अपनी ताकत आंकना चाहते हैं. वे खुद पीछे रहकर अपने बेटे तेजस्वी को स्थापित करना चाहते हैं. 

बसपा सुप्रीमो मायावती (साभार फाइल फोटो)
देश में विपक्ष के साथ जुड़ने या उसका नेतृत्व करने की लालू की कोशिशें कामयाब होती नहीं दिख रही हैं. कांग्रेस राहुल गांधी के अलावा किसी को भी विपक्ष का नेतृत्व सौंपना नहीं चाहती है. मायावती ने खुद को विपक्ष का बड़ा नेता घोषित कर रखा है. उनके ऊपर लालू के उस ऑफर का भी कोई असर नहीं हुआ जिसमें उन्होंने बिहार से उन्हें राज्यसभा भेजने की बात कही थी. सपा खुद ही दो धड़ों में बंटी है. अखिलेश यादव भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हों लेकिन उनके पिता मुलायम सिंह यादव आज भी विपक्ष के बड़े नेता हैं. वे लालू की रैली में नहीं आ रहे हैं. ममता बनर्जी बंगाल में बड़ी नेता भले हों लेकिन उनकी राष्ट्रीय छवि नहीं है. भाजपा उनके गढ़ में लगातार अपनी ताकत बढ़ा रही है. इस वजह से उनका समर्थन लालू को मिल रहा है. नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला कश्मीर में अपना जनाधार खोते जा रहे हैं. इसलिए उन्हें भी एक मंच चाहिए. अभी हाल में नीतीश के खिलाफ कैंपेन करने उतरे शरद यादव को तो पहले से ही जनाधार वाला नेता नहीं माना जाता रहा है. ऐसे थके-हारे, कमजोर नेताओं के बूते लालू उस मजबूत विपक्ष की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं, जो लगातार बलवती बनकर उभर रही भाजपा को रोक सके.
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (साभार फाइल फोटो)
लालू के सामने तेजस्वी को विपक्ष के चेहरे के रूप में स्थापित करने में बड़ी दिक्कत उनके खुद के दागदार चेहरे की वजह से भी है. लालू के सत्ता में रहते हुए उनके परिवार के तकरीबन सभी सदस्य दागदार हो चुके हैं. खुद तेजस्वी पर भी दाग है. लालू झारखंड हाईकोर्ट में चारा घोटाले की निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं. कानूनी जानकार उनकी सजा तय मान रहे हैं. इधर तेजस्वी, मीसा और उनके पति शैलेश के खिलाफ प्राथमिकी के बाद अब सीबीआइ चार्जशीट दायर करने की तैयारी में है. ऐसे में इन सबका भी जेल जाना तय माना जा रहा है. देखना होगा कि पटना की रैली लालू को संजीवनी दे पाती है या नहीं.



2 comments:

  1. इसमें कोई दो राय नहीं है कि लालू जी की राजनीति अब ढ़लान ओर है. ऐसे में अपने उत्तराधिकारी की चिंता उन्हें सताने लगी है. अचानक सी आयी वयार में दोनों पुत्रों के आगे उपमुख्यमंत्री बन गए और झटके से भूतपूर्व हो गए,ये तो नागवार लगने की बात हो गई.
    लालू जी को अपना और अपना परिवार ही दिखता रहा है. याद कीजिये बिहार के एक समाजवादी कद्दावर नेता हुआ करते थे, डॉ. महावीर प्रसाद, जिनकी तूती बोलती थी, को संठ जड़ दिया लालू जी ने, फिर अब्दुलबारी सिद्दीकी हों या रघुवंश प्रसाद सिंह किसकी मज़ाल जो उनके (लालू जी) के खिलाफ ओंठ भी खोले ? आप लालू जी के आध्यात्मिक मित्र रघुनाथ झा जी को को देख लें,कहीं अता-पता भी नहीं है उनका !
    लालू जी, इस रैली के बहाने तेजस्वी को राष्ट्रीय स्तर का नेता बनाना चाहते हैं. इसी क्रम में वे गैर भाजपा दलों को एकत्रित कर इस रैली के बहाने एक मंच पर लाकर अपने पुत्र तेजस्वी यादव के नेतृत्त्व में देश की राजनीति करने की सोंची. शायद इस बात की भनक सुश्री मायावती और सोनिया गांधी को लग गई और उन्होंने रैली में शामिल होने से साफ मना कर दिया. वे लोग किसी भी परिस्थिति में तेजस्वी को अपना नेता या उसके नेतृत्त्व में राजनीति नहीं कर सकते.
    अब कल के रैली पर निर्भर करता है कि लालू जी की राजनीति किस करवट लेती है !
    @मिथिलेश कुमार सिन्हा.

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