Thursday, February 16, 2017

सुप्रीम कोर्ट ने बचाई नीतीश की साख, लालू से बढ़ेगी खटास !

शहाबुद्दीन (साभार फोटो)
सिवान के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को सिवान जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल स्थानांतरित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साख बचा ली है। इससे पहले जब पटना हाईकोर्ट ने शहाबुद्दीन को जेल से बरी करने का फैसला सुनाया था तो नीतीश कुमार और उनकी सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी। उनकी साख पर बट्टा लग गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बिहार का राजनीतिक परिदृश्य कितना बदलेगा, शहाबुद्दीन के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहकर सिवान पर राज करना कितना मुश्किल होगा और लालू के नीतीश के साथ रिश्ते पर इस फैसले का कितना असर पड़ेगा, इस पर राजनीतिक कयास लगने शुरू हो चुके हैं। आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि शहाबुद्दीन का सिवान से दूर जाना बिहार की राजनीति में कितना बदलाव लेकर आएगा।

पटना हाईकोर्ट ने जब मो. शहाबुद्दीन को जेल से मुक्त करने का फैसला सुनाया था तो बिहार की राजनीति में एक भूचाल आ गया था। कहा गया था कि शहाबुद्दीन के मामलों में राज्य सरकार की कमजोर पैरवी की वजह से कोर्ट को यह फैसला देना पड़ा। तब विपक्ष ने नीतीश को निशाने पर लेते हुए उनपर लालू के दबाव में काम करने का आरोप लगाया था। हर ओर से जबर्दस्त आलोचना झेल रही नीतीश सरकार ने आखिरकार शहाबुद्दीन की जमानत रद करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की। दिवंगत पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी सिवान की आशा रंजन व तेजाब कांड में अपने तीन बेटों को खो चुके चंदा बाबू ने भी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत रद कर दी थी। शहाबुद्दीन ने अपने खिलाफ नीतीश कुमार की कानूनी सक्रियता पर तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि लोग नीतीश को सबक सिखाएंगे। हालांकि शहाबुद्दीन की टिप्पणी का नीतीश पर कोई असर नहीं हुआ था। अब कोर्ट ने उन्हें तिहाड़ जेल शिफ्ट करने का आदेश देकर न सिर्फ सभी पीड़ितों को राहत पहुंचाई है बल्कि नीतीश सरकार की साख भी बचा ली है।

शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति और अपराध जगत में वर्षों से चर्चा में रहे हैं। दो बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके इस राजद नेता पर छोटे से लेकर बड़े अपराध के कुल 75 केस दर्ज हैं। इनमें 10 मामलों में इन्हें सजा मिली है जिनमें 2 में उम्रकैद शामिल हैं। वे 20 मामलों में बरी हो चुके हैं और उन पर 45 मामले अभी लंबित हैं। पिछले कई वर्षों से जेल की सलाखों में रहने व सजायाफ्ता होने के बावजूद राजद ने उन्हें पार्टी का पदाधिकारी बनाया। विपक्ष का आरोप है कि जब महागठगंधन की सरकार आई तो उन्हें जेल से निकालने के रास्ते ढूंढे जाने लगे। सरकार के मंत्री उनसे मिलने जेल जाते। शहाबुद्दीन को जेल में वीआइपी स्तर की सुविधाएं दी जाती थीं। हाल में उनकी जेल से ली गई सेल्फी मीडिया में सुर्खियों में रही थी।

अब कुछ ही दिनों में शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में होंगे। तिहाड़ में रहकर उनके लिए सिवान पर ‘राज’ करना बेहद मुश्किल होगा। कोर्ट ने उनके मामले में कड़ी टिप्पणी की है। उन्हें एक सामान्य कैदी की तरह रखे जाने का आदेश दिया है। इस फैसले का बिहार की राजनीति पर कोई खास प्रभाव पड़ेगा, ऐसा नहीं दिख रहा है। नीतीश कुमार पिछले काफी समय से बिहार व देश में अपनी निष्पक्ष छवि बनाने में लगे हैं। वे महागठबंधन सरकार में रहते हुए भी दबाव से मुक्त होकर काम कर रहे हैं। लालू प्रसाद व कांग्रेस से अलग स्टैंड पर चल रहे हैं। वे जानते हैं कि आज की तारीख में वे काफी मजबूत स्थिति में हैं। उनके लिए महागठबंधन और एनडीए दोनों के साथ सरकार चलाने का विकल्प खुला हुआ है। दूसरी तरफ लालू व कांग्रेस के साथ सत्ता बचाए रखने की मजबूरी है। कांग्रेस का शहाबुद्दीन मामले से कोई लगाव नहीं है। ऐसा लगता है कि नीतीश पर अनावश्यक दबाव बनाने के बजाए फिलहाल शहाबुद्दीन के मांमले में लालू चुप ही रहना पसंद करेंगे।

2 comments:

  1. कोई खटास नहीं बढेगी. लालू जी के लिए शहाबुद्दीन राजनीतिक खतरा बनने लगा था. अगर शहाबुद्दीन जेल से बाहर रहता तो, लालू परिवार का राजद पर एकक्षत्र राज टूट जाता.
    सभी तो सिद्दीकी जैसे दब्बू तो नहीं हैं ना, जो मुख्यमंत्री पद का दावेदार था को, किनारे कर अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया और जब उप-मुख्यमंत्री पद की आई तो बेटा की झोले में डाल दिया ! शहाबुद्दीन के समक्ष उनकी ऐसी मनमानी नहीं चलती .
    अब दोनों खुश !!

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  2. आपकी बात में दम है.

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