कलाकार के चित्र में रंग भरते नीतीश (साभार फोटो) |
नीतीश कुमार विकास पुरुष की छवि वाले नेता होने के बावजूद अपने बूते राजनीतिक शिखर पर पहुंचने की क्षमता नहीं रखते। उनकी पार्टी जदयू क्षेत्रीय दल है। वे इतनी सीटें जीतने में सक्षम नहीं हैं कि पीएम की कुर्सी उन्हें मिल जाए। उन्होंने भाजपा के साथ अपना 17 साल पुराना गठबंधन महत्वाकांक्षा की वजह से जरूर छोड़ा था लेकिन बाद में उनकी समझ में आ गया कि इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति किसी राष्ट्रीय दल के साथ गठजोड़ के बगैर पूरी नहीं हो सकती। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्र में बीते वर्षों में गठबंधन वाली सरकारें नहीं बनी हैं। आने वाले सालों में ऐसा होगा भी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में नीतीश वीपी सिंह, एचडी देवगौड़ा, इंदर कुमार गुजराल व चंद्रशेखर की तर्ज पर पीएम बनेंगे, यह कहना भी मुश्किल है। बस इसलिए नीतीश ने बड़ी चालाकी से अपना रास्ता बदल लिया है।
नीतीश कुमार आज की तारीख में देश के एक ऐसे नेता हैं जिनमें मुसीबत के समय भाजपा अपना सहयोगी देखती है। कांग्रेस उनके कंधे पर सवार होकर अपना भविष्य संवारना चाहती है। ममता, मुलायम, मायावती, अखिलेश व केजरीवाल जिन्हें अपना मित्र मानते हैं। नीतीश अपनी इसी छवि को बरकरार रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं।
यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव नीतीश के लिए बड़ा राजनीतिक संदेश लेकर आएंगे। अगर इन चुनावों में भाजपा मजबूत होती है तो फिर नीतीश अपने वर्तमान रुख पर कायम रहते हुए 2019 के लोकसभा चुनावों तक बनने वाली राजनीतिक परिस्थिति का इंतजार कर सकते हैं। क्योंकि मजबूत भाजपा नीतीश को ज्यादा तवज्जो देने की नीति पर नहीं चलेगी, ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है। अगर इन चुनावों में भाजपा हार जाती है तो उसके लिए नीतीश का सहयोग लेकर 2019 तक अपनी ताकत बढ़ाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में नीतीश मोलभाव करेंगे। यह मोलभाव बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने, देश भर में शराबबंदी लागू करवाने, केंद्र की सरकार में अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवाने से लेकर कई बिंदुओं पर हो सकती है। अगर वे सफल रहे तो दो वर्षों में भाजपा की मदद से अपना राजनीतिक कद बढ़ा सकते हैं।
बात 2019 के चुनावों की करें तो अभी से यह कहना कठिन है कि भाजपा अपनी सरकार बचा पाएगी या फिर कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी। लेकिन जो भी सत्ता में आए ताकतवर नीतीश को दरकिनार करके आगे न बढ़ सके, ऐसी परिस्थितियां वे पैदा करना चाहते हैं। एक संभावना यह भी बनती है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा या कांग्रेस अकेले सरकार बनाने की स्थिति में न रहें तो नीतीश को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाएं। यह भी न हो सके तो तीसरे मोर्चे के नेता नीतीश का समर्थन कर उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचा दें। दरअसल नीतीश के शिगूफों के यही सबसे बड़े मायने फिलहाल राजनीतिक पंडित निकाल रहे हैं।
अभी कुछ टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. कोई संदेह नहीं कि नीतीश भी कम मौसम वैज्ञानिक हैं ! अभी यूपी चुनाव के नतीजों पर असर पड़ेगा. रही बात कांग्रेस की तो वह समुद्र में गोता लगाती टूटी नैया है. लालू जी के रहते कम से कम बिहार में कांग्रेस उभर पाएगी संदेहास्पद है. नीतीश जी माहिर खिलाड़ी सी हडकत कर राजद और भाजपा को बांध रहें हैं.
ReplyDeleteहां, यूपी चुनाव के बाद कई राजनीतिक घटनाक्रम हो सकते हैं.
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