Thursday, January 26, 2017

यूपी में नहीं बना, बिहार में टूटेगा महागठबंधन !

सोनिया, लालू व नीतीश (साभार फाइल फोटो)

यूपी चुनाव से पीछे हटने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने वहां किसी भी दल के पक्ष में चुनाव प्रचार न करने का फैसला सुनाकर एक बार फिर लोगों को चौंका दिया है। हालांकि वहां नीतीश का किसी दल के पक्ष में प्रचार करना उसके लिए कितना मददगार होता, यह कहना कठिन है। लेकिन सांकेतिक रूप से ही सही नीतीश का यह फैसला वहां भाजपा के पक्ष में ही जाएगा। जदयू ने यूपी में महागठबंधन न बन पाने का ठीकरा वहां के सत्ताधारी दल सपा व कांग्रेस पर फोड़कर बड़ी सफाई से किनारा कर लिया है। यह कहना कि बिहार में भी नीतीश महागठबंधन से तत्काल किनारा कर रहे हैं, जल्दीबाजी होगी। लेकिन लगातार बदल रहे राजनीतिक परिदृश्य यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार में सत्ता बचाने में सफल रहने के बाद अब नीतीश ‘अपनी ताकत' पर खुद की राष्ट्रीय छवि गढ़ने में लगे हैं। वे लालू व कांग्रेस से धीरे-धीरे किनारा करने की रणनीति पर चल रहे हैं। आइए विश्लेषण करते हैं कि नीतीश की यह रणनीति बिहार में किस राजनीतिक समीकरण की ओर बढ़ रही है।

नीतीश कुमार एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें बिहार में विकास पुरुष कहा जाता है। इसी बूते वे खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने की लगातार कोशिश करते रहे हैं। लेकिन उनका दल जदयू अभी क्षेत्रीय दल है। वह बिहार से बाहर अपने दम पर बड़ा चुनावी उलटफेर करने में सक्षम नहीं है। भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश को पिछले लोकसभा चुनाव में इसका अहसास हो गया था। तब उन्होंने मुश्किल हालात में लालू व कांग्रेस से समझौता कर बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता बचा ली थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में वे कांग्रेस व लालू के भरोसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना पाएंगे, इसका भरोसा नहीं है। 

इसकी दूसरी वजह यह भी है लालू कई मामलों में उन्हें अपना प्रतिद्वंदी मानते हैं। वे नीतीश को आगे बढ़ाकर अपने जनाधार व वोट बैंक से हाथ धोना नहीं चाहेंगे। उधर, कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार करने से साफ मना करती रही है। ऐसी स्थिति में नीतीश के लिए एक ही विकल्प बचता है भाजपा। यह उनका 17 वर्षों तक देखा-भाला विकल्प है। भाजपा के लिए भी बिहार में मजबूत होने के लिए नीतीश से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। बिहार में नीतीश का साथ छोड़कर भाजपा भी यह बात समझ चुकी है। फिलहाल मिल रहे संकेत नए राजनीतिक समीकरण गढ़ेंगे, यह समय ही बताएगा। लेकिन ये परिस्थितियां बिहार में लालू व कांग्रेस को दुविधा में जरूर डाल चुकी हैं।

2 comments:

  1. नीतीश जी की नजर दूर तक है, संदेह नहीं है. परन्तु इनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बनेगी, कहना कठिन है. लालू जी ने अपनी पार्टी का टाईटल राष्ट्रीय स्तर से जोड़ कर पहचान बनाने की कोशिश की, सफल नहीं हुए ये तो अभी नन्हा सा बालक है.
    बिहार में जदयू और भाजपा दोनो को एकदूसरे की जरुरत है. गत चुनाव में दोनो का अलग होना कोई आपसी खींचातानी नहीं था,वरन नीतीश जी अपना कद राष्ट्रीय स्तर पर बनाना चाह रहे थे, जिसके कारण उन्होंने गठबन्धन तोड़ लिया.
    अब, वे इस बेमेल गठबन्धन से उब रहें हैं. लालू जी की मजबूरी है, वे धृतराष्ट्र बने हुए हैं. नीतीश जी के नोटबन्दी के बयान पर लालू जी के खिसियानी बयान को सुनने/देखने के बाद ही स्पष्ट हो रहा है कि गठबंधन में कितनी गांठें बन रही/चुकी है.
    जदयू और भाजपा दोनो ही एकदूसरे का पूरक है..... बस इन्तजार है "पहले तुम" का......

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    1. देखते हैं बिहार की राजनीति कौन सी दिशा लेती है.

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