Monday, January 23, 2017

बाहुबली शहाबुद्दीन के गढ़ से बिहार पर कब्जे की कवायद


नए प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के नेतृत्व में भाजपा की राज्यस्तरीय बैठक बाहुबली शहाबुद्दीन के गढ़ सिवान में हुई है। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब मीडिया शहाबुद्दीन के बढ़ते प्रभाव के कई रंग दिखा रहा है। जेल से उनकी सेल्फी चर्चा में है। भाजपा ने इस बैठक से दो संदेश दिए हैं। पहला यह कि लालू-नीतीश की सरकार बनने के बाद शहाबुद्दीन की ताकत और आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं। दूसरा यह कि भाजपा उनके गढ़ में बैठकर उनके बहाने पूरे बिहार में लालू-नीतीश पर राजनीतिक वार करेगी। पार्टी ने सिवान से कई कार्यक्रमों की घोषणा की है। इस पूरी कवायद का निहितार्थ बिहार में अपनी ताकत बढ़ाने और आने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाना है। भाजपा इसमें कितनी सफल रहेगी, आइए जानते हैं।
लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद भाजपा ने 2015 के विधानसभा चुनाव फीलगुड की भावना से वशीभूत होकर लड़ा था। उसके नेतृत्व में एनडीए चुनाव में बुरी तरह पिट गया। इसकी वजह गठबंधन के दलों की आपसी खींचतान व राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से चुनाव समीकरणों का सही आकलन न कर पाना रहा था। दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा लालू-नीतीश की गोलबंदी से कम, अपनी करनी से ज्यादा हारी थी। पार्टी आज तक इन कारणों पर मंथन नहीं कर सकी है। एनडीए में शामिल बिहार के सभी क्षेत्रीय दल आज भी अपना जनाधार बढ़ा नहीं सके हैं। अगले चुनाव में एनडीए के दल रालोसपा, लोजपा और हम भाजपा के साथ रहेंगे कि नहीं, यह पक्के तौर पर भाजपा और इन दलों को भी नहीं पता है।


इन परिस्थितियों में सिवान से भाजपा नया अभियान शुरु कर रही है। उसे लगता है कि लालू-नीतीश को घेरने के लिए सबसे बड़ा मुद्दा अपराध ही है। वह शहाबुद्दीन को बिहार में अपराध का पर्याय मानकर सूबे के लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहती है। लेकिन फिलहाल बिहार में जो स्थिति है उसमें नीतीश कुमार का ग्राफ गिरता नजर नहीं आ रहा है। लालू ने समझौते की रणनीति के तहत नीतीश का पूरा साथ दिया है। ऐसे में भाजपा सूबे के लोगों को अपने पक्ष में कैसे कर पाएगी, यह समय बताएगा।


राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा पिछले सालों में अपनी नीतियों व सिद्धांतों से हटती नजर आई है। अगड़ी जाति के वोटों के बूते राष्ट्रीय पहचान बनाने वाली यह पार्टी अब दलितों-पिछड़ों की अगुआई की तरफ बढ़ रही है। ऐसे में उसका बड़ा वोट बैंक उससे छिटक रहा है। बिहार में भी इसका प्रभाव पड़ा है। सिवान की बैठक के बाद पार्टी किन नतीजों पर पहुंची है और अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कौन सी रणनीति अख्तियार करती है, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन पार्टी की नीति जब तक ढुलमुल रहेगी, बिहार की सत्ता पर कब्जा कर पाना उसके लिए मुश्किल मिशन होना।

2 comments:

  1. जिस तरह से शहाबुद्दीन ने नीतीश को अगले चुनाव में औकात दिखा देने की धमकी दिया उसका प्रतिकार लालू ने नहीं किया. नीतीश, राम बिलास पासवान की तरह ही मौसम वैज्ञानिक हैं. उनकी नजर भाजपा की तरफ है और भाजपा की नीतीश की ओर. संभावना भी यही नजर आ रहा है. ऐसे में भाजपा अपनी रणनीति के तहत् ऐसा दांव चला है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. यूपी चुनाव बिहार में भाजपा के लिए समीकरण बनाएगा।

      Delete