Tuesday, January 24, 2017

नशे को ना कहने में बिहार को है क्या परेशानी


बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने के बाद नीतीश कुमार उत्साह से लबरेज हैं। शराबंदी के समर्थन में दुनिया की सबसे बड़ी मानव श्रृंखला बनाकर उन्होंने अपना कद बढ़ाने की पूरी कोशिश की है। वे अपने समकालीन नेताओं से अलग और बड़ी छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं। शराबबंदी से आगे बढ़कर बिहार को पूर्ण नशाबंदी की ओर ले जाना चाहते हैं। इस पूरी कवायद के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मायने हैं। आम लोगों का जबर्दस्त समर्थन पाकर वे अपना कद राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाना चाहते हैं। उनका कद बढ़ेगा तभी देश का सबसे बड़ा पद नजदीक आएगा। वर्तमान समाज में बिहार में पूर्ण नशाबंदी दूर की कौड़ी है। इसमें ढेर सारी चुनौतिया हैं। आइए इनका विश्लेषण करें।


बिहार का सामाजिक परिदृश्य ऐसा है जिसमें कुछ समुदाय के लोग ताड़ी बेचकर अपनी रोजी-रोजी चलाते हैं। कई व्यवसाय ऐसे हैं जिनकी नीव नशे पर आधारित है। सबसे बड़ी बात यह कि खुद नीतीश कुमार की सरकार ने ही अपने पिछले कार्यकाल में गांव-गांव तक शराब की दुकाने खोलने के ठेके दिए थे। इस पूरी अवधि में कम से कम तीन पीढ़ियां शराब की जबर्दस्त चपेट में आई हैं। ऐसे लोगों के लिए शराब से एकबारगी मुंह मोड़ना कठिन है। इसलिए सूबे में शराबबंदी के बावजूद शराब बेचने और पीने-पिलाने का सिलसिला अभी थमा नहीं है।

शराब के अलावा गुटखा, तंबाकू, खैनी, बीड़ी, सिगरेट जैसे कई नशीले पदार्थ मौजूद हैं जिन पर प्रतिबंध लगाना सिर्फ कानूनी कड़ाई से संभव नहीं है। सरकार ने गुटखा जैसे कई नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की लेकिन कानूनी पेच में फंसकर यह संभव नहीं हो सका। हालांकि कानून में संशोधन आगे भी जारी रहेगा, ऐसे संकेत सरकार ने दिए हैं।

नीतीश के लिए पड़ोस के राज्य यूपी, पश्चिम बंगाल, झारखंड व पड़ोसी देश नेपाल से शराबबंदी पर पूरा समर्थन न मिलना सबसे बड़ी चुनौती है। हद तो यह है कि बिहार के शराब माफिया हरियाणा तक अपना तंत्र फैला चुके हैं। वहां से शराब लाकर बिहार के लोगों को परोसा जा रहा है। कानून भले ही बन गया हो लेकिन उसका पालन करवाने वाले अब भी ईमानदार नहीं हैं। नीतीश के लिए अपने ही राज्य के माफियाओं व भ्रष्ट राजनेताओं से निपटना बड़ी चुनौती है।

हालांकि नीतीश कुमार ने सूबे को पूर्ण नशाबंदी की ओर ले जाने की ईमानदार कोशिश की है। अगर यह मुहिम कुछ सालों तक इसी गति से चलती रही तो देश की नजर भी इस तरफ जाएगी और एक सामाजिक क्रांति आ सकती है। ऐसे में नीतीश कुमार के कद की ऊंचाई को छू पाना शायद ही किसी राजनेता के वश में हो। तब उनके लिए देश का शीर्ष पद पाना कोई बड़ी बात नहीं होगी।

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