Sunday, May 15, 2016

बिहार में लौट आए बाहुबल के पुराने दिन !

सीवान के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन (फ़ाइल फोटो)
बिहार के सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की नृशंस हत्या से लोगों में दहशत है। लोग इस आशंका के साथ जी रहे हैं कि क्या सीवान से ही बाहुबल का बिहार में दोबारा आगाज़ हो रहा है। जेल में बंद पूर्व सांसद मो शहाबुद्दीन के कथित शूटरों को इस हत्याकांड से जोड़ा जा रहा है। कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। पुलिस हत्या के कारणों की छानबीन कर रही है। पुलिस ने जिन कड़ियों को जोड़ने की क़वायद शुरू की है वे अगर जुड़कर सार्वजनिक होती हैं तो इस हत्याकांड पर से पर्दा उठ सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि सूबे की सरकार बिहार में क्या उसी दमखम के साथ अपराध पर लगाम लगाने को तैयार है जैसा दमखम नीतीश कुमार ने 10 साल पहले सीएम बनने के तुरंत बाद दिखाया था। अभी तक ऐसा नहीं दिख रहा है।


पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड में जिन बिंदुओं पर जांच हो रही है उन पर खुलासे का सभी को इंतज़ार है। पुलिस ने मो शहाबुद्दीन का शूटर कहे जा रहे उपेंद्र सिंह और मुंशी मियां को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने एक कंप्यूटर इंजीनियर को भी हिरासत में लिया है जिस पर एक दुकान में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज को डिलीट करने का आरोप है। ये दुकान उसी स्थान पर है जहां राजदेव की हत्या की गई थी। ऐसा माना जा रहा है कि हत्या के समय की विडियो रिकॉर्डिंग इस कैमरे में हुई थी। पुलिस ने स्व पत्रकार राजदेव के मोबाइल कॉल डिटेल भी खंगाले हैं। इस हत्याकांड को गैंगस्टर के निजी मामले में पत्रकार की दखलंदाज़ी से जोड़कर भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि स्व पत्रकार की उपेंद्र सिंह की प्रेमिका से बात होती थी। जिसको लेकर वो पत्रकार से नाराज़ था। हालांकि इस नाराज़गी की इतनी बड़ी सज़ा किसी को दी जाए, ये सहसा विश्वास नहीं होता। राजदेव के परिजनो ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे मुख्य मुद्दे से भटकाने की कोशिश क़रार दिया है। परिजन पहले दिन से ही मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। मीडिया में ये ख़बरें भी आ रही हैं कि पत्रकार राजदेव बाहुबली की उस हिट लिस्ट में शामिल थे जिसमें से अधिकतर लोग अब तक  मारे जा चुके हैं। हालांकि ये लिस्ट वर्ष 2007 की बताई जा रही है। इतने सालों तक कोई लिस्ट में शामिल रहकर भी बचा रहे, ये भी विश्वास नहीं होता। पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में देर सबेर खुलासे होंगे। पुलिस अपने स्तर से हत्याकांड से पर्दा ज़रूर उठाएगी। लेकिन इस बात की कितनी उम्मीद की जाए कि घटना में बाहुबली की संलिप्तता पर गंभीरता से जांच की जाएगी।
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार (फ़ाइल फोटो

बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस की नई सरकार बनने के बाद ताबड़तोड़ हत्यायें हुई हैं। सरकार ने हमेशा कड़े कदम उठाने का दावा किया है। सरकार ने पहले तो हत्याओं को सामान्य अपराध की श्रेणी में रखकर इसे हल्का करने की कोशिश की लेकिन बाद में तामझाम के साथ पुलिसिया कार्वाइयां होने लगीं। बात परिणाम की करें तो अब भी कुछ ख़ास नहीं है। बिहार में हाल में जितने भी चर्चित हत्याकांड हुए हैं उनमें संगठित आपराधिक गिरोहों, बाहुबलियों और बिगड़ैलों की संलिप्तता के पुख्ता सबूत पुलिस ने जुटाए हैं। संकेत ये भी मिले हैं कि बाहुबलियों और आपराधिक गिरोहों के आकाओं के साथ कई राजनीतिज्ञों के संबंध रहे हैं। आशंका है कि  इस वज़ह से कोई भी जांच अब तक मुक़म्मल नहीं हो सकी है।
लालू प्रसाद, राजद सुप्रीमो (फ़ाइल फोटो)
बिहार में जंगलराज के सफाये की बात कहकर नीतीश कुमार वर्ष 2005 में सत्ता में आए थे। आने के तुरंत बाद उन्होंने सबसे पहला कदम सूबे की कानून व्यवस्था में सुधार का उठाया था। उसके सकारात्मक परिणाम आने लगे। सूबे के बड़े अपराधियों, बाहुबलियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया। डर की वज़ह से बहुत से अपराधियों ने सूबा छोड़ दिया। बहुत से भूमिगत हो गए। सूबे में अमन-चैन लौट आया। अपराध के बजाए विकास पर चर्चा होने लगी। विकास की शुरूआत हुई। कई बड़े काम हुए जिसके लिए नीतीश कुमार देश-दुनिया में जाने गए। उन कामों का ईनाम ही था जिसकी वज़ह से भाजपा से 17 साल का गठबंधन टूटने के बाद भी जनता ने नीतीश को बिहार की सत्ता 2015 में फिर सौंपी है। लेकिन इस बार नीतीश के पार्टनर लालू प्रसाद हैं। सूबे में बढ़ते अपराध पर लालू और उनकी पार्टी को भी कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। हालांकि लालू ने ये साफ़ कर दिया है कि बिहार में अपराध राज को किसी कीमत पर संरक्षण नहीं दिया जाएगा। इसके बावजूद अपराध पर नियंत्रण नहीं हो रहा है तो ये नीतीश-लालू की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल है। अगर बिहार में बाहुबलियों के दिन लौटते हैं तो राज्य फिर से अराजकता की ओर बढ़ेगा। लोगों का गुस्सा भड़केगा। ये किसी के लिए भी सही नहीं होगा।

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