Tuesday, May 17, 2016

नीतीश की फिरकी में फंस गए पक्ष और विपक्ष !

नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार (फ़ाइल फोटो)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है। ऐसा करके नीतीश ने दूसरी बार अपनी फिरकी से पक्ष और विपक्ष दोनो को क्लीन बोल्ड कर दिया है। पहली बार उन्होंने विगत अप्रैल महीने में सूबे में अचानक पूर्ण शराबबंदी का कठोर फ़ैसला लागू करते हुए ऐसा किया था। तब विपक्ष ने आंशिक शराबबंदी पर हमला बोलते हुए नीतीश को पूर्ण शराबबंदी लागू करने के लिए ललकारा था। विपक्ष को उम्मीद थी कि नीतीश ऐसा नहीं कर सकते थे। अब दूसरी बार पत्रकार हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग ज़ोर पकड़ रही थी। बहुत से लोगों को ऐसा लगता था कि राजद नेता शहाबुद्दीन पर शक की सूई उठने की वज़ह से नीतीश इतना कड़ा फ़ैसला नहीं करेंगे। लेकिन नीतीश ने इस फैसले से विपक्ष का मुंह बंद तो किया ही पक्ष के वैसे लोगों को भी कड़ा संदेश दे दिया जिन्हें लगता था कि राजनीतिक मज़बूरियों की वज़ह से नीतीश ऐसा नहीं करेंगे और सूबे में कथित अापराधिक-राजनीतिक गठजोड़ को अपनी मनमानी करने की छूट मिलती रहेगी। 

पत्रकार हत्याकांड में सीबीआई जांच की सिफ़ारिश के कई राजनीतिक मायने हैं। सबसे पहली बात तो ये कि नीतीश की बनती राष्ट्रीय छवि पर ये हत्याकांड कालिख जैसा था। शराबबंदी से देश भर में सुर्खियां बटोर रहे नीतीश के लिए अपराध पर नियंत्रण बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। ये हत्याकांड सूबे में कानून-व्यवस्था की धज्जी उड़ाए जाने का एक बड़ा उदाहरण था। मीडिया पर हमला नीतीश के लिए एक बड़ी मुसीबत थी क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी अच्छी छवि गढ़ने वाला मीडिया अगर नाराज़ होता तो मिशन 2019 की उनकी सफलता संदिग्ध थी। इस घटना के बाद नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ न सिर्फ बिहार बल्कि देश भर के मीडिया कर्मी सड़क पर उतर आए थे। भाजपा नीतीश पर लगातार हमले कर रही थी। घटना की सीबीआई जांच से लेकर पीड़ित परिवार के लिए बड़ी घोषणाओं की मांग विपक्ष उठा रहा था। विपक्ष का सीधा आरोप था कि मामले में सीवान जेल में बंद शहाबुद्दीन का हाथ है और इसलिए नीतीश की हिम्मत कड़े कदम उठाने की नहीं होगी।

पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड की सीबीआई जांच के लिए बिहार सरकार की सिफ़ारिश का पत्र ।

अब पत्रकार हत्याकांड की सीबीआई जांच की सिफ़ारिश करके नीतीश ने न सिर्फ विपक्ष का मुंह बंद कर दिया है बल्कि जनता में ये संदेश भी दे दिया है कि शहाबुद्दीन पर शक की सूई जाने से वे डरे नहीं है। नीतीश ने पीड़ित परिवार की सहायता पर विचार किए जाने की बात भी कह दी है। नीतीश ने अपने इस फैसले से अपराधियों के साथ मिले उस राजनीतिक लोगों को भी कड़ा संदेश दे दिया है कि कानून का हाथ उनके गिरेहबान पर भी पड़ेगा और नीतीश इसमें उनकी कोई मदद नहीं करेंगे। नीतीश ने केंद्रीय एजेंसी सीबीआई को जांच की सिफ़ारिश करते हुए भाजपा को भी कड़ी चुनौती दे डाली है। लगभग एक ही समय बिहार और झारखंड दोनो प्रदेशों में दो पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी। बिहार में उसकी सीबीआई जांच हो रही है जबकि झारखंड में ये फैसला नहीं किया गया है। झारखंड में भाजपा की सरकार है।

सीबीआई जांच की सिफारिश के बहाने नीतीश खुद भी ये देखना चाहते हैं कि आख़िर सीवान की ये घटना क्यों हुई। इस घटना के पीछे वास्तव में शहाबुद्दीन का कोई षड़यंत्र है या नहीं। पत्रकार राजदेव रंजन के किन-किन लोगों से संबंध थे, वे पत्रकारिता में निडर होकर काम करने की वज़ह से मारे गए या फिर कोई निजी रंजिश इसके पीछे काम कर रही थी। नीतीश खुद किसी जांच और कार्रवाई के बजाए केंद्रीय एजेंसी को ये जिम्मेवारी इसलिए भी सौंप रहे हैं ताकि दूध का दूध और पानी का पानी जब हो तो उनपर पक्ष और विपक्ष कोई उंगली न उठाए। शहाबुद्दीन के बहाने उनके सहयोगी दल उनसे नरमी की उम्मीद न रखे और भाजपा के पास भी कुछ कहने के लिए न बचे। 

पत्रकार हत्याकांड में नीतीश कुमार के लिए सीबीआई जांच की सिफारिश करना कोई आसान फैसला नहीं था। उन्हें पता है कि अचानक लिए गए इस निर्णय पर उनके सहयोगी दल ही नहीं बल्कि जदयू में भी एकमत नहीं रहा होगा। लेकिन जिस तरह से पूर्ण शराबबंदी नीतीश के लिए कठोर लेकिन बिल्कुल अपना फैसला था उसी तरह से पत्रकार हत्याकांड की जांच के लिए सीबीआई को सिफ़ारिश उनका अपना फ़ैसला है। वे जानते हैं कि फिलहाल जो राजनीतिक स्थिति है उसमें उनके सहयोगी दल उन पर कोई भी गैर वाज़िब दबाव नहीं बना सकते हैं। इसलिए वे निश्चिंत हैं और बड़ी बेसब्री से इस जांच के परिणाम की प्रतीक्षा करेंगे।

2 comments:

  1. नीतीश जी के फिरकी में पक्ष या विपक्ष फंसा नहीं, ये खुद अपनी ही फिरकी के अन्दर फंसकर अभिमन्यू समान छटपटा रहें हैं.
    गत् विधान सभा चुनाव में लालू जी से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री तो बन गये,परन्तु रिमोट लालू जी के हाथ लग गया. इन्होंने अपने पुत्र तेजस्वी को उप-मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश जी को बौना बना कर रख दिया. यहीं से नीतीश की छटपटाहट प्रारम्भ होने लगी.
    नीतीश जी ने शराब बन्दी का जो निर्णय लिया वह जनता को दिखाना कहाँ था, यह तो वे लालू जी को बता रहे थे कि आपने ताडी-दारू की दुकान को घर-घर खुलवाया, लीजिए अब मैनें बन्द कर दिया. वे इतने उत्साहित हुए कि वे अपने इस अभियान को भंजवाने झाडखंड फिर उत्तर प्रदेश का रुख किए जहाँ उत्तर प्रदेश के शिवपाल सिंह ने अपनी टिप्पणी से हवा ही निकाल दी.
    बिहार में आए दिन आपराधिक वारदात इनकी छवि पर काला धब्बा बनाने लगी तब इनकी ही सहयोगी पार्टी के सांसद ने "महाजंगल राज" की संज्ञा दे डाली. लालू जी ने इसका कोई प्रतिकार भी नहीं किया, विपक्ष लगातार हमला ही रहा था और मीडिया में इनकी किरकिरी होने लगी थी..... नीतीश जी घर-बाहर बूरी तरह घिर से गये, तब जाकर इन्होंने पत्रकार हत्या कांड की जांच सी.बी.आई. से कराने की ठानी. ये अब समझ चुके हैं कि इनके साथी इन्हें जीने भी नहीं देंगे और ना ही मरने ही देंगे.

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  2. पत्रकार हत्या की सीबीआई जांच की सिफ़ारिश से नीतीश खुद की ईमानदारी तो ज़रूर साबित करना चाहते हैं। जांच से किस पर आंच आती है इसकी उनको परवाह नहीं है। शहाबुद्दीन का षड़यंत्र सामने आए तब भी नीतीश को कोई परवाह नहीं है। पक्ष हो या विपक्ष नीतीश ने सबको कड़ा संदेश दिया है। यही तो उम्दा राजनीतिज्ञ की पहचान है।

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