भारत का जयनगर और नेपाल का जनकपुर धाम रेलवे स्टेशन । |
बिहार के मधुबनी ज़िले के जयनगर से नेपाल की तराई के जनकपुर होकर पहाड़ी सीमा बरदीबास तक 69 किलोमीटर रेल लाइन परियोजना वर्ष 2011-12 में शुरू हुई थी। भारत सरकार की एजेंसी इरकॉन इसे बना रही है। इस रेल लाइन में भारत (बिहार के मधुबनी ज़िले) का महज़ तीन किलोमीटर का हिस्सा पड़ता है। बाकी 66 किलोमीटर नेपाल के धनुषा और सिरहा ज़िलों में पड़ता है। नेपाल की ओर से 52 किलोमीटर ज़मीन का हिस्सा अधिगृहित कर लिया गया है जिस पर निर्माण कार्य भी चल रहा है। शेष 14 किलोमीटर ज़मीन भी जल्द अधिगृहित कर ली जाएगी। वहां इस लाइन पर रेलवे स्टेशनो के भवन भी बन रहे हैं। इस रेल लाइन पर कुल 13 स्टेशन बनेंगे। लेकिन बिहार में ज़मीन का पेंच अभी भी फंसा हुआ है। बिहार सरकार ने मधुबनी डीएम के माध्यम से जल संसाधन विभाग के अभियंताओं की एक समिति बनाई है। उम्मीद है कि अगले छह महीनो में ज़मीन अधिग्रहण का काम पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन नेपाल सीमा पर चीन की बढ़ती गतिविधि की वज़ह से भारत चिंतित है और विदेश मंत्रालय कम से कम जयनगर से जनकपुर तक की रेल लाइन का काम दिसंबर 2017 तक पूरा करवा लेना चाहता है।
नेपाल रेलवे की पुरानी ट्रेन सेवा, जो भारत के जयनगर से नेपाल के जनकपुर धाम तक जाती थी। |
बिहार के लोगों के नेपाल के लोगों के साथ सदियों से बेटी और रोटी के संबंध रहे हैं। ये रिश्ते इतने मज़बूत हैं कि इन्हें समाप्त करना नामुमकिन है। बिहार के माध्यम से भारत सरकार चीन को नेपाल के क़रीब आने के मामले में पछाड़ सकती है। नेपाल सीमा तक अच्छी सड़कें बनाना, सीमा और सीमा पार के पर्यटन स्थलों को विकसित करना, पटना, दरभंगा, रक्सौल, मुज़फ्फ़रपुर जैसे शहरों से नेपाल के लिए हवाई सेवायें शुरू करना, नेपाल सीमा तक राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनो का विस्तार करना इसमें ज्यादा फ़ायदेमंद हो सकते हैं। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने भी ये सुझाव दिए थे। फिलहाल नेपाल सीमा से लगी बिहार की अधिकतर सड़कें भी उतनी दुरूस्त नहीं हैं कि लोग सुगमता पूर्वक दोनो देशों में आ जा सके। ज़रूरत है कि भारत सरकार और बिहार सरकार एक बेहतर समन्वय के साथ नेपाल तक संपर्क मार्ग विकसित करने के लिए काम करें। तभी दोनो देशों की नज़दीकियां और ज्यादा बढ़ सकेंगी।
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