Thursday, May 19, 2016

नेपाल से नज़दीकियों में बिहार की ‘ज़मीन’ बनी बाधा !

भारत का जयनगर और नेपाल का जनकपुर धाम रेलवे स्टेशन ।
भारत-नेपाल संबंधों के बीच बिहार एक सदियों पुराना पुल है। ये एक ऐसा पुल है जिससे होकर दोनो देशों के रिश्तों को मज़बूती मिलती है। बिहार ने इस रिश्ते को इतनी नज़दीकी दी है कि चीन या कोई और देश नेपाल के साथ भारत जैसे नज़दीकी संबंधों की कल्पना तक नहीं कर सकता। लेकिन संबंधों को आधुनिक मार्गों से जोड़ने में अब हम पीछे हो रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत-नेपाल के बीच महत्वाकांक्षी जयनगर-बरदीबास रेल लाइन के पूरा होने में बिहार में महज़ तीन किलोमीटर ज़मीन अधिग्रहण कई वर्षों से बाधा बना हुआ है। उधर, नई परिस्थितियों में चीन ने नेपाल से रेल और सड़क संपर्क विकसित करने में काफी सफलता हासिल कर ली है। बिहार में ज़मीन अधिग्रहण की ये बाधा इस रेल परियोजना को समय से पूरा किए जाने में संदेह उत्पन्न करती है।


बिहार के मधुबनी ज़िले के जयनगर से नेपाल की तराई के जनकपुर होकर पहाड़ी सीमा बरदीबास तक 69 किलोमीटर रेल लाइन परियोजना वर्ष 2011-12 में शुरू हुई थी। भारत सरकार की एजेंसी इरकॉन इसे बना रही है। इस रेल लाइन में भारत (बिहार के मधुबनी ज़िले) का महज़ तीन किलोमीटर का हिस्सा पड़ता है। बाकी 66 किलोमीटर नेपाल के धनुषा और सिरहा ज़िलों में पड़ता है। नेपाल की ओर से 52 किलोमीटर ज़मीन का हिस्सा अधिगृहित कर लिया गया है जिस पर निर्माण कार्य भी चल रहा है। शेष 14 किलोमीटर ज़मीन भी जल्द अधिगृहित कर ली जाएगी। वहां इस लाइन पर रेलवे स्टेशनो के भवन भी बन रहे हैं। इस रेल लाइन पर कुल 13 स्टेशन बनेंगे। लेकिन बिहार में ज़मीन का पेंच अभी भी फंसा हुआ है। बिहार सरकार ने मधुबनी डीएम के माध्यम से जल संसाधन विभाग के अभियंताओं की एक समिति बनाई है। उम्मीद है कि अगले छह महीनो में ज़मीन अधिग्रहण का काम पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन नेपाल सीमा पर चीन की बढ़ती गतिविधि की वज़ह से भारत चिंतित है और विदेश मंत्रालय कम से कम जयनगर से जनकपुर तक की रेल लाइन का काम दिसंबर 2017 तक पूरा करवा लेना चाहता है।
नेपाल रेलवे की पुरानी ट्रेन सेवा, जो भारत के जयनगर से नेपाल के जनकपुर धाम तक जाती थी।
मधुबनी के जयनगर से नेपाल के जनकपुर तक एक छोटी लाइन पर कुछ साल पहले तक ट्रेने चलती थीं। ये रेल लाइन दोनो देशों के सीमावर्ती आम लोगों के लिए लाइफ़ लाइन हुआ करती थी। ग़रीब लोग इस लाइन की ट्रेन पर कठिनाई में भी यात्रा करके गर्व महसूस करते थे। इसी रेल लाइन को बड़ी लाइन में तब्दील कर और आगे बरदीबास तक बढ़ाए जाने की योजना बनी थी। भारत सरकार ने इस रेल लाइन को काफ़ी महत्वपूर्ण दर्ज़ा दिया है। फिलहाल नेपाल के लोग सड़क मार्ग से बिहार की सीमा में प्रवेश करते हैं। उसके बाद उन्हें ट्रेनो और हवाई मार्गों से पटना, लखनऊ, दिल्ली, मुबई, कोलकाता जैसे महानगरों और अन्य स्थानो पर जाना पड़ता है। इसमें नेपाल के आम लोगों को काफ़ी परेशानी होती है। ये रेल लाइन नेपाल और भारत की नज़दीकियां बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। लेकिन धीमी गति से चलने की वज़ह से ये परियोजना अभी लंबित है। उधर, हाल के मधेशी आंदोलन के बाद भारत-नेपाल संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। इसका फ़ायदा उठाकर चीन नेपाल के नज़दीक आने का हर तरीका अपना रहा है। चीन ने नेपाल तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग और रेलमार्ग विकसित कर लिए हैं। हालांकि भौगोलिक दृष्टि से चीन भारत की बराबरी नहीं कर सकता है। लेकिन नई तकनीक और नेपाल की चीन की तरफ़ दिलचस्पी बढ़ने की स्थिति में भारत को नुकसान हो सकता है।

बिहार के लोगों के नेपाल के लोगों के साथ सदियों से बेटी और रोटी के संबंध रहे हैं। ये रिश्ते इतने मज़बूत हैं कि इन्हें समाप्त करना नामुमकिन है। बिहार के माध्यम से भारत सरकार चीन को नेपाल के क़रीब आने के मामले में पछाड़ सकती है। नेपाल सीमा तक अच्छी सड़कें बनाना, सीमा और सीमा पार के पर्यटन स्थलों को विकसित करना, पटना, दरभंगा, रक्सौल, मुज़फ्फ़रपुर जैसे शहरों से नेपाल के लिए हवाई सेवायें शुरू करना, नेपाल सीमा तक राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनो का विस्तार करना इसमें ज्यादा फ़ायदेमंद हो सकते हैं। भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत दीप कुमार उपाध्याय ने भी ये सुझाव दिए थे। फिलहाल नेपाल सीमा से लगी बिहार की अधिकतर सड़कें भी उतनी दुरूस्त नहीं हैं कि लोग सुगमता पूर्वक दोनो देशों में आ जा सके। ज़रूरत है कि भारत सरकार और बिहार सरकार एक बेहतर समन्वय के साथ नेपाल तक संपर्क मार्ग विकसित करने के लिए काम करें। तभी दोनो देशों की नज़दीकियां और ज्यादा बढ़ सकेंगी।

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