Saturday, May 14, 2016

शॉक्ड सीवान ! जंगलराज रिटर्न्स इन बिहार !

 पत्रकार राजदेव रंजन का खून से लथपथ शरीर ।
बिहार के सीवान में ‘हिंदुस्तान’ दैनिक अख़बार के संवाददाता राजदेव रंजन की सरेशाम हत्या कर दी गई। बेख़ौफ़ अपराधियों ने उन्हें गोली मारी और आराम से चलते बने। समाज को आईना दिखाने वाले एक सख्श ने अपने काम करने का ख़ामियाज़ा भुगता और ज़िंदगी भर का दर्द झेलने के लिए अपने परिवार को छोड़कर दुनिया से सदा के लिए चला गया। राजदेव के आईने में जिन लोगों की काली करतूतें दिख रही थीं या दिख सकती थीं उन्हें उनका ज़िंदा रहना गवारा नहीं था। इसलिए वे सरेशाम मार डाले गए। इस घटना के बाद सीवान से लेकर पूरे बिहार और देश के कई कोनो में विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। ख़ासकर पत्रकार आंदोलित हैं। पुलिस-प्रशासन और सरकार ने कड़े निर्देश ज़ारी करने के अलावा अभी कोई कामयाबी हासिल नहीं की है। इस हत्या का राज़ अब भी बरक़रार है। घटना ने संकेत दे दिया है कि बिहार में जंगलराज लौट रहा है। इसे महज़ संयोग कहें या हकीकत, कि फिर से उसी सीवान में इस जंगलराज का सिंहासन रखे जाने का संकेत मिला है, जो सीवान सालों पहले जंगलराज की राजधानी होने के कलंक के लिए देश-दुनिया में बदनाम हुआ करता था।
पत्रकार राजदेव रंजन (फ़ाइल फोटो)
जिन लोगों ने भी सीवान की दहशत को देखा है वे आज भी उस स्थिति की आहट से कांप जाते हैं। वहां एक ही शख़्श का शासन चलता था। दहशत क़ायम करना हो या फिर शांति उसके लिेए एक ही व्यक्ति के हुक्म से क़ायदे-कानूनों को अमली जामा पहनाया जाता था। पटना तक को सोच-समझ कर सीवान में दखलंदाज़ी करनी पड़ती थी। सीवान बिहार की एक ऐसी छवि बनाया करता था जिस पर कभी कोई नाज़ नहीं कर सकता। लेकिन वो सीवान वक्त के साथ बदला। लोगों ने खुली हवा में सांस लेनी शुरू की। लोगों ने साबित कर दिया कि वो सीवान आम लोगों की मर्ज़ी से नहीं चलता था बल्कि ये सीवान आम लोगों की इच्छा पर चलता है। लेकिन अब फिर से जो स्थितियां बन रही हैं उसने निश्चित तौर पर आम लोगों के माथे पर शिकन ला दी है।

बिहार में जंगलराज की वापसी का सबसे बड़ा संकेत पिछले साल के आख़िर में तब मिला था जब 26 दिसंबर 2015 को दरभंगा के बहेड़ी में 75 करोड़ की रंगदारी नहीं मिलने पर एक निजी सड़क निर्माण कंपनी के दो इंजीनियर मुकेश सिंह और ब्रजेश कुमार की एके-47 से भूनकर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी शूटर मुकेश पाठक क़रीब 6 महीनों बाद भी कानून की गिरफ्त से बाहर है। इसके बाद हत्याओं का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक रूका नहीं है। 05 फरवरी 2016 को पटना में लोजपा नेता बृजनाथी सिंह को मार डाला गया। उसके कुछ ही दिनो बाद 12 फरवरी को आरा में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा की हत्या कर दी गई। फिर 08 अप्रैल को पटना में दवा व्यवसायी अनिल अग्रवाल मारे गए। 18 अप्रैल को पटना के ही पंडारक में पुलिस के दारोगा सुरेश ठाकुर की हत्या की गई। अभी हाल में 07 मई को गया में एक युवक आदित्य को मार डाला गया। ये तो हुईं बड़ी हत्यायें, लेकिन कितने अन्य सामान्य लोग भी मारे गए जिनकी चर्चा भी अब मीडिया में नहीं होती है। हत्या के अलावा रंगदारी, रेप, डकैती जैसी जघन्य घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गई है।
दिवंगत पत्रकार राजदेव रंजन का अंतिम संस्कार ।

हालांकि बिहार में हुई सभी हत्याओं के पीछे अलग-अलग कारण रहे हैं लेकिन एक बात पर तो किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अपराधियों के हौसले काफ़ी बढ़ गए। ये शोध का विषय कि अपराधी साढ़े आठ साल के शासन के बदलने के बाद नये शासन की आहट के साथ ही बेखौफ़ हुए या फिर कोई और कारण है। लेकिन एक बात तो साफ़ दिख रही है कि किसी भी अपराध की घटना में अपराधी तक पहुंचने और उसे सज़ा दिलाने में बड़ी कामयाबी अभी नहीं मिली है। क्या ये सरकार की सुस्ती है , या विपक्ष के उन आरोपों में दम है कि सूबे में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के गठबंधन के बाद जंगलराज वापस आया है ! दोनो ही स्थितियों में महागठबंधन की सरकार पर दाग़ बढ़ते जा रहे हैं। जिन लोगों ने बिहार में 1990 का पूरा दशक और 2000 के दशक के शुरूआती वर्ष देखे हैं वे जानते हैं कि बिहार में बढ़ते अपराध का ग्राफ, संगठित आपराधिक गिरोहों के कारनामों और तत्कालीन सरकार की उस पर नकेल कसने में घोर सुस्ती के आरोप जैसे बड़े कारणों ने ही लालू और राबड़ी की सरकारों के ख़िलाफ़ जनमत बनाने में भूमिका निभाई। लालू देखते रह गए और उनके सभी विश्वासी लोग उनसे किनारा करते चले गए। आख़िरकार जनता भी उनका साथ छोड़ गई। तब लालू और उनके परिवार को बिहार की सत्ता से जाना पड़ा।
बिहार के दरभंगा में स्व राजदेव रंजन की आत्मा की शांति के लिए आयोजित शोक सभा में स्थानीय पत्रकार

अब लालू नीतीश कुमार के सहयोग से 10 वर्षों के बाद बिहार की सत्ता में वापस लौटे हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार और उनके सबसे बड़े सहयोगी लालू प्रसाद ने हालिया हुई हर घटना पर दुख जताया है। अपराधियों के ख़िलाफ़ कड़े तेवर अख्तियार किए हैं। हर बार कहा गया है कि कानून का राज कायम है, लेकिन इसके बावजूद अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। तो क्या सरकार की नीयत में खोट है ? क्या बिहार में फिर से जंगलराज वापस आ गया है ? न सिर्फ विपक्ष बल्कि आम और ख़ास सभी लोग ये सवाल पूछ रहे हैं। अगर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी ने इन सवालों पर समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की तो जनता का विरोध फिर से इनके ख़िलाफ़ जनमत का निर्माण करेगा। किसी को भी इस खुशफ़हमी का शिकार नहीं होना चाहिए कि अब बिहार की नई पीढ़ी फिर से 10-15 साल तक इस सरकार का नाकारापन बर्दाश्त करेगी। इसलिए सीवान की घटना से कड़ा सबक लेते हुए महागठबंधन सरकार को अपराधियों के ख़िलाफ़ वही कड़े कदम उठाने पड़ेंगे जिनके लिए नीतीश कुमार को साढ़े आठ साल तक जनता ने सिर माथे पर बिठाकर रखा। और उसी विश्वास की बदौलत उनके सहयोगी बदल डालने के बावजूद उन्हें फिर से सिर-माथे पर बिठाया।

1 comment:

  1. बिहार शर्मशार हो रहा है.इसे खासकर नेताओं ने शर्मशार किया है. बिहार में वर्तमान सरकार के बर्दहस्ती में अपराध और अपराधी पूर्नजागृत हुए हैं, जो आपके आकलन से ही झलक रहा है.
    नीतीश जी को संघमुक्त भारत की परिकल्पना का सपना नजर आ रहा है परन्तु बिहार से अपराधमुक्ति की युक्ति नहीं सूझ रही.
    अबतक जितनी भी हत्याएं हुईं है, कितनों को सजा मिली है, क्या मिला है पीडितों के परिवारों को सिवा मांग पोछने या कोख उजडने के ? है नीतीश सरकार के पास इसका समाधान ?
    वे सत्ता के भूख में कठपुतली बन बैठे हैं.
    सिवान में अब भी बाहुबली की ही चलती/बनती है. सरकार के कद्दावर नेता जेल में सुस्वादिष्ट नाश्ते का उनके साथ लुप्त उठाते हैं, तो आप इस सरकार से क्या उम्मीद पाल रहें हैं ?

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