जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार मिशन यूपी पर निकल रहे हैं। लेकिन उन्हें इस मिशन की शुरूआत में ही झटका लगा है। ख़बर आ रही है कि लगभग सब कुछ तय होने के बाद राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष अजीत सिंह नीतीश कुमार का साथ छोड़कर भाजपा के पाले में जाने को तैयार बैठे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा ने ऐन मौक़े पर ऐसी चाल चली है कि नीतीश यूपी में अलग-थलग पड़ गए हैं। पूरे मामले का विश्लेषण करने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।
नीतीश ने सबसे पहले मिशन 2014 के लिए कोशिशें शुरू की थीं। उन्होंने लोकसभा चुनावों के समय बिहार में भाजपा के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। उन्होंने समाजवादी दलों को एक कर महागठबंधन बनाने की कोशिश की। इसमें उनके साथ लालू, मुलायम, देवगौड़ा और अजीत सिंह समेत कई दलों के नेता शामिल थे। दुर्भाग्य से ये महागठबंधन बनने के पहले ही टूट गया। इसके पीछे पद के लिए आपसी खींचतान सबसे बड़ा कारण रहा। नीतीश को लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। तब लालू और नीतीश ने मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन बनाया। सौभाग्य से महागठबंधन ने बिहार में भाजपा को हराकर सरकार बनाई। बिहार के बाद अब नीतीश दिल्ली की तरफ़ रूख करने को बेताब हैं।
अब नीतीश मिशन 2019 पर निकले हैं। उनके लिए यूपी विधानसभा चुनाव बड़ी परीक्षा जैसे हैं। नीतीश को जब यूपी में अपने मिशन के लिए कोई और साथी नहीं मिला तो इस परीक्षा की पूरी तैयारी के लिए राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह को अपना साथी चुना था। अजीत सिंह के साथ डील पक्की भी हो गई थी। लेकिन अब ख़बरें आ रही हैं कि अजीत सिंह और नीतीश कुमार के बीच वो डील टूट गई है। इसके पीछे भी वही कारण बताए जा रहे हैं जो राष्ट्रीय स्तर के महागठबंधन के समय सामने आए थे। कहा जा रहा है कि अजीत सिंह ने यूपी में महागठबंधन के लिए खुद को नेता बनाने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने कई अन्य शर्तें भी रखी थीं जो नीतीश को नागावार गुजरी। उधर, भाजपा ने अजीत सिंह को अपने पाले में लाने के लिए नीतीश कुमार के मुकाबले कुछ ज्यादा मांगें मान लीं। तब अजीत सिंह ने नीतीश के साथ मोलभाव शुरू किया। कहा जा रहा है कि नीतीश के लिए अजीत सिंह के साथ शर्तें तय करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए ये डील अब तय नहीं हो पा रही है। अब माना जा रहा है कि अजीत सिंह भाजपा के पाले में जा रहे हैं।
नीतीश कुमार ये जानते हैं कि यूपी में जनाधार बनाए बिना देश का पीएम बनना उनके लिए बहुत मुश्किल है। इसलिए वे अब फिलहाल अकेले ही मिशन यूपी पर निकल रहे हैं। यूपी में नीतीश कुमार का जनाधार नहीं के बराबर है। इसका नज़ारा लोकसभा चुनावों में भी दिखा था। देखना होगा कि अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश वहां नए साथी बना पाते हैं या उन्हें इसी स्थिति में वहां चुनाव लड़ना पड़ेगा।
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