Thursday, April 13, 2017

बस सीतामढ़ी पर मोदी सरकार को ऐतराज, अयोध्या, जनकपुर व लंका तो ढूंढ ली

माता सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी का पुनौरा धाम (साभार फाइल फोटो)
भारत सरकार को सीतामढ़ी के माता सीता की जन्मभूमि होने पर अभी विश्वास नहीं हो रहा है। संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने राज्यसभा में कहा कि सीतामढ़ी बस आस्था व विश्वास का केंद्र है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने वहां ऐसा कोई प्रमाण नहीं पाया है जिसकी वजह से सीतामढ़ी को सीता का जन्मस्थान माना जाए। वे सीतामढ़ी के सौंदर्यीकरण के सवाल पर मध्य प्रदेश के अपनी ही पार्टी के राज्यसभा सांसद प्रभात झा के सवाल का जवाब दे रहे थे। प्रभात झा बिहार के सीतामढ़ी मूल के ही हैं। वे मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आश्चर्य इस बात का है मध्य प्रदेश के ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह समेत कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया। लेकिन मिथिलांचल समेत बिहार के किसी प्रमुख नेता ने सदन में इस पर कुछ खास नहीं कहा। सीतामढ़ी सीता की जन्मभूमि है या नहीं, इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए अयोध्या, जनकपुर व लंका तक के अस्तित्व की फिर से विवेचना करनी पड़ेगी।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा (साभार फाइल फोटो)

महेश शर्मा भाजपा के नेता हैं। भाजपा सेतु समुद्रम के अस्तित्व की लंबी लड़ाई लड़ चुकी है। यह वही पार्टी है जिसने अयोध्या को राम जन्मभूमि माना है और वहां राम मंदिर बनवाने का आंदोलन करती रही है। ऐसी पार्टी की सरकार व संस्कृति मंत्री को बताना चाहिए कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में राम के अस्तित्व का कौन सा प्रमाण दिया है। समुद्र में पत्थर का वह पुलनुमा ढांचा वही पुल है जिसपर चलकर राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इसका क्या प्रमाण है। नेपाल का जनकपुर ही राजा जनक की नगरी थी, इसका क्या प्रमाण है। क्या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यह साबित कर पाया है। अगर कोई प्रमाण है तो वह हैं हमारे धर्मग्रंथ। जिन-जिन धर्म ग्रंथों में राम, अयोध्या, जनकपुर और लंका का जिक्र है उन्हीं में सीता और उनकी जन्मभूमि मिथिला का जिक्र है। उन्हीं धर्मग्रंथों में सीतामढ़ी को सीता की जन्मभूमि साबित किया है। रामायण सर्किट को देखने-समझने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि अयोध्या के किनारे-किनारे सरयु नदी से लगे क्षेत्रों में रामायण कालीन स्थानों व घटनाओं के जिक्र धर्मग्रंथों में हैं। अहल्या स्थान, पुनौरा धाम, जानकी मंदिर, हलेश्वर स्थान, पंथ पाकर, धनुषा व जनकपुर ये सभी स्थान इस सर्किट के भीतर एक-दूसरे से लगे हुए हैं। इनमें से किसी का वैज्ञानिक व ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। इसके बावजूद सबको लोक मान्यता मिली हुई है। ऐसे में अगर मंत्री सीतामढ़ी में सीता के जन्म स्थान के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं तो उन्हें अयोध्या, जनकपुर व लंका पर भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराकर उसकी रिपोर्ट जनता के बीच रखनी पड़ेगी। अगर सीता का अस्तित्व फिर से परिभाषित होता है तो राम, दशरथ, जनक व रावण का अस्तित्व भी फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।

रामकुमार शर्मा, लोकसभा सांसद, सीतामढ़ी (साभार फाइल फोटो)
सीतामढ़ी के विकास व सौंदर्यीकरण का सवाल उठाने वाले प्रभात झा ने मिथिलांचल के नेताओं को एक संदेश दिया है। अगर मिथिलांचल के नेता अपनी विरासत को लेकर सजग नहीं होंगे तो उनके क्षेत्रों के अस्तित्व को ऐसे ही नकारा जाता रहेगा। सीतामढ़ी के सांसद रामकुमार शर्मा को इस बयान का जवाब देना चाहिए। यह मसला किसी पार्टी का नहीं है। इस मसले पर मध्य प्रदेश के भाजपा सांसद प्रभात झा व उनके धुर विरोधी दिग्विजय सिंह जब एक मंच पर आ सकते हैं तो फिर मिथिलांचल व बिहार के सांसद-विधायक एक क्यों नहीं हो सकते।



2 comments:

  1. भाजपा सरकार बिहार और मिथिलांचल की उपेक्षा करती ही आ रही है और सीतामढ़ी के सीता जन्म स्थली पर जो बयान दिया शर्मनाक है.

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