Sunday, April 9, 2017

सीतामढ़ी की आशा को अंग्रेजी नहीं आती थी, आज हैं ब्रिटेन की बड़ी सेलिब्रेटी

सम्मान प्राप्त करतीं आशा खेमका (चित्र साभार)
ये कहानी है एक सीधी-सादी लड़की की। बिहार के सीतामढ़ी शहर के कोट बाजार (तब मुजफ्फरपुर जिले का हिस्सा) की निवासी 15 साल की आशा खेमका डुमरा के कमला गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थीं। एक दिन उनकी चाची ने कहा कि नई साड़ी पहन लो। उन्होंने पूछा- क्यों? जवाब मिला तुम्हारी शादी के लिए लड़के वाले देखने आ रहे हैं। वे हक्की-बक्की रह गईं। पूछा- मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो? बहुत रोईं। आखिरकार वही हुआ जो परिवार के लोग चाहते थे। होने वाली ससुराल के लोग आए। गहने और कपड़े दिए। सगाई हो गई। उसके बाद तो उनकी दुनिया ही बदल गई। बाद में पति के साथ ब्रिटेन गईं। बाल विवाह की शिकार तब की यही लड़की अब ब्रिटेन की एशियन बिजनेस वुमन ऑफ द इयर सम्मान से नवाजी गई हैं। इन्हें ब्रिटेन में पहले भी कई पुरस्कार-सम्मान मिल चुके हैं।



अपने पति शंकर लाल खेमका के साथ आशा (चित्र साभार)
आशा को ब्रिटेन का सर्वोच्च सम्मान डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर से 2013 में सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ब्रिटेन सरकार ने दादाभाई नौरोजी पुरस्कार से भी नवाजा है। शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए उन्हें ब्रिटेन में एशियन वुमेन ऑफ एचीवमेंट, ज्वेल ऑफ व मिडलैंड बिजनेस वुमेन ऑफ द इयर सम्मान मिल चुके हैं। ब्रिटेन की महारानी ने उन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एंपायर सम्मान से भी नवाजा है। वे वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं। वे ब्रिटेन में एसोसिएशन ऑफ कॉलेजेज की अध्यक्ष भी हैं। आशा जी के चाचा रामशरण अग्रवाल बताते हैं कि वह पिछले 35 वर्षों से कर्मयोगी की तरह सेवा कर रही हैं। यह एक उदाहरण है।

सम्मान ग्रहण करतीं आशा (चित्र साभार)
आशा खेमका का जन्म 21 अक्तूबर 1951 को सीतामढ़ी के प्रतिष्ठित व्यवसायी ऊंटवालिया परिवार में हुआ था। उनकी शादी मोतिहारी शहर के मिस्कॉट मुहल्ले में डॉ. शंकर लाल खेमका से हुई है। वे ब्रिटेन के प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं। आशा की शादी तय होने के आठ महीनों के बाद वे अपने पति शंकर से अपने पिता की नई दुकान पर मिलीं। इस मुलाकात में उनका भाई भी साथ था। दुआ-सलाम के अलावा इस संक्षिप्त मुलाकात में कुछ नहीं हुआ। लेकिन इसी मुलाकात ने आशा के दिल में शंकर के लिए प्यार जगा दिया। उन्होंने तय कर लिया कि अपना जीवन शंकर के साथ गुजारना है। उसके बाद सन् 1978 का साल आया। पति को ब्रिटेन में मेडिकल फेलोशिप मिला। फिर वे अपने तीन छोटे बच्चों के साथ ब्रिटेन चली गईं। 

कॉलेज में आशा खेमका (चित्र साभार)
ब्रिटेन जाना उनके लिए कई समस्याएं साथ लेकर गया। उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। वहां के रहन-सहन व संस्कृति के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी। तब उन्होंने टीवी चैनल व बच्चों की किताबों से अंग्रेजी सीखनी शुरू की। वे पति की फेलोशिप पूरी होने के बाद ब्रिटेन से भारत वापस लौट आना चाहती थीं। लेकिन बाद में न सिर्फ उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि ब्रिटेन में ही कॉलेज में प्राध्यापक और फिर प्रिंसिपल बनीं। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे ब्रिटेन में ही रह गईं। आशा खेमका को बिहार की लड़कियों व महिलाओं की आज भी चिंता है। वे कहती हैं कि मुझे भारतीय होने पर गर्व है। भारत की महिलाओं में अपार प्रतिभा है। जरूरत है उन्हें उभारने की। सही दिशा नहीं मिलने से कई बार प्रतिभाएं दब जाती हैं।




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