Sunday, April 9, 2017

बिहार को रेल मानचित्र पर उभारने वाले मिथिला की उपेक्षा

मिथिला में रेलवे के विकास पर आयोजित सेमिनार में उपस्थित अतिथिगण
मिथिला में रेलवे के विकास में दरभंगा के महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह के योगदान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। आजादी से पूर्व बिछी 70 फीसदी पटरियां उत्तर बिहार में दरभंगा महाराज के सहयोेग से तिरहुत स्टेट रेलवे के जरिए ही बिछाई गई थी। उपरोक्त बातें स्वयंसेवी संस्था डाॅ. प्रभात दास फाउंडेशन व स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग, लनामिवि दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में नगरौना पैलेस के डांस हाॅल में आयोजित मिथिला के विकास में रेलवे का योगदान विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए लनामिवि के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र कुमार सिंह ने कही।


सेमिनार में बोलते एलएनएमयू के कुलपति प्रो. एसके सिंह
सेमिनार में बीज भाषण देते हुए पूर्व आइआरएस कामेश्वर चौधरी ने कहा कि मिथिला में बिछी छोटी लाइन तो बड़ी लाइन में बदल गई, पर संपूर्ण मिथिला को रेलवे से जोड़ने की मंशा अब तक पूरी नहीं हो पाई है। जिसके चलते मिथिला पिछड़ा हुआ है। उन्होंने  कहा कि मिथिला में विकसित क्षेत्र बनने की अपार संभावनाएं उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र ने देश को ललित नारायण मिश्र के रूप में रेलमंत्री दिया है, जिन्होंने मिथिला के विकास के लिए अनेक रेल प्रोजेक्ट बनाए। जगह-जगह रेल लाइनों का शिलान्यास करवाया। पर उनके बाद किसी ने भी उनके किए गए कार्यो को आगे नहीं बढ़ाया है। जिसके चलते समुचित रूप से रेलवे के जरिए मिथिला का पूरा हिस्सा नहीं जुड़ पाया है। इस क्षेत्र के संपूर्ण विकास हेतु जरूरी है कि सीतामढ़ी से निर्मली वाया जनकपुर होते हुए रेल लाइन बने। रेलवे अपने नेटवर्क का विस्तार करें। भारतीय रेलवे को इसके लिए नेपाल सरकार से बात करनी चाहिए। इस कार्य हेतु राजनीतिक पहल भी अतिआवश्यक है। साथ ही क्षेत्र के लोगों विशेषकर युवाओं को भी आगे आना होगा। अब तो इंंटरनेट का जमाना है। रेलवे से संबंधित समस्याओं को सोशल मीडिया के जरिए भी उठाया जा सकता है।


सेमिनार का उद्घाटन करते अतिथि
सेवानिवृत जीएम डीएन झा ने कहा कि मिथिला सीता की जन्मभूमि है। रामायण सर्किट सरकार बनवा रही है, पर पर्यटकों के आने के लिए पर्याप्त रेल नेटवर्क नहीं है। अगर रेलवे इस क्षेत्र में अपना विस्तार करता है तो न सिर्फ यहां पर्यटक आएंगे बल्कि क्षेत्र का आर्थिक-सांस्कृतिक विकास भी होगा। मिथिला के अधिकांश क्षेत्रों में सिंगल लाइन है। उन्हें डबल लाइन करना अति आवश्यक हो गया है। 

पूर्व कुलपति एवं रेलवे प्रबंधन से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक प्रो. एसएम झा ने कहा कि रेलवे ने इस क्षेत्र के साथ न्याय नहीं किया है। यहां रेल गाड़ियों का अभाव है। रेलवे नेटवर्क पूर्णरूपेण नहीं है। बाहर से आवागमन का सीधा रास्ता नहीं है। जिसके चलते मिथिला में कल-कारखानें नहीं लग रहे हैं। जो कारखाने थे भी वे बंद हो चुके हैं। अगर रेलवे इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को बढ़ाता है तो मिथिला का पूर्ण विकास हो सकता है। 

सेमिनार में भाग लेते अतिथि
सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. राजकिशोर झा ने कहा कि मिथिला में अपार संभावनाएं हैं। यहां की मिथिला पेंटिंग, मखाना, मछली आदि के कद्रदान देश ही नहीं विदेशों में भी है, पर विस्तृत रेलवे नेटवर्क के अभाव में यहां बाहर से सीमेंट की बोरियां तो रेलगाड़ियों से आ जाती है। कलकत्ते से फूल और आंध्रां से मछली भी पहुंच जाती है। परंतु यहां के मखाना, मछली, पान आदि को बाहर भेजने का उचित प्रबंधन अब तक नहीं हो पाया है। जिसके कारण किसान भी हार मानकर मखाना, पान आदि की खेती लगभग छोड़ चुके हैं। मिथिला को लेकर रेलवे को अपना नजरिया बदलना होगा। तभी इस क्षेत्र में पूर्णरूपेण रेल नेटवर्क की स्थापना संभव है।

कार्यक्रम का संचालन एवं स्वागत अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ. रामभरत ठाकुर ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. हिमांशु शेखर ने दिया। फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, डाॅ. विजय कुमार यादव, प्रो. रामविनोद सिंह, प्रो. दायानिधि प्रसाद राय, प्रो. बनारसी यादव, डाॅ. जितेन्द्र नारायण, पूर्व एमएलसी डाॅ. विनोद चौधरी, मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. रामचंद्र ठाकुर, प्रो. अरूणिमा सिन्हा, डाॅ. रामनाथ सिंह, डाॅ. धर्मेंद्र कुंवर सहित विभिन्न विभागों के प्राध्यापक सेमिनार में उपस्थित थे।

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