Friday, April 28, 2017

इन राजाओं ने नहीं बचाई दौलत, छोड़कर गए दुर्लभ पांडुलिपियां और किताबें

सेमिनार में बोलते एलएनएमयू के कुलपति डॉ. एसके सिंह
मिथिला बिहार का मस्तक है और राज पुस्तकालय यहां की विरासत है। मिथिला की विरासत कितनी महत्वूपर्ण है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि जब बिहार सरकार ने ‘बिहार गौरव’ नामक पुस्तक प्रकाशित की तो 800 पेज की पुस्तक में से 500 पेज मिथिला को ही समर्पित हैं। राज पुस्तकालय में अति दुर्लभ पुस्तकें, पांडुलिपियां आदि है, पर वो तालाबंद हैं। पुस्तकों-पांडुलिपियों को ताला लगाकर चोरी होने से तो बचाया जा सकता है पर नष्ट होने से नहीं। इसलिए राज लाईब्रेरी की पुस्तकों को संरक्षित करना अति आवश्यक है। उक्त बातें स्वयंसेवी संस्था डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान संस्था की ओर से आयोजित ‘‘राज पुस्तकालय एवं संग्रहालयः शोध एवं पर्यटन केंद्र’’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए बिहार राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. विजय कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि यहां उपलब्ध पुस्तकों, पांडुलिपियों आदि के बारे में विश्वविद्यालय की बेवसाइट पर पूर्ण जानकारी होनी चाहिए, ताकि बाहर के शोधार्थियों को आसानी से पता चल सके।


सेमिनार का उद्घाटन करते अतिथि
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि लनामिविवि के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि यह सिर्फ ज्ञान का नहीं बल्कि विरासत के संरक्षण का अभियान है। ज्ञान की अपेक्षा विरासत को संभालना मुश्किल होता है, इसलिए राज लाईब्रेरी के संरक्षण के लिए विश्वविद्यालय बाहरी मदद की तलाश कर रहा है। विश्वविद्यालय के पास संसाधन व विशेषज्ञों का अभाव है। हमारे लाइब्रेरियन पूर्णरूपेण दक्ष नहीं हैं। 30-40 प्रतिशत ऐसी पुस्तकें हैं जो छूने भर से नष्ट हो जाएंगी। इनको संरक्षित करने के लिए रोड मैप बनाना होगा। दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलिपियों, चित्रों आदि को चुनना होगा। स्थानीय लोगों, बुद्धिजीवियों को भी पहल करनी होगी, तभी सरकार सुनेगी। 

पांडुलिपि संरक्षण मिशन पटना के विभाष कुमार ने अभिलेखों के प्रबंधन व संरक्षण पर चर्चा करते हुए कहा कि पुस्तकों-पांडुलिपियों आदि को संरक्षित करना थोड़ा महंगा है, पर संरक्षण, पूर्णरूपेण होता है। अभिलेखों के नष्ट होने की संभावना नहीं होती है। यहां दुर्लभतम् पुस्तकें आदि मौजूद हैं। इसलिए इसे जिम्मेवारी से संरक्षित करना होगा। इस पुस्तकालय का डिजिटलाइजेशन होना अति आवश्यक है। ताकि भविष्य में धरोहरों को सुरक्षित रखा जा सके। 

सेमिनार में मंच पर विराजमान अतिथि
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व कुलपति डॉ. राजकिशोर झा ने कहा कि राज पुस्तकालय राष्ट्रीय नहीं, अंतराष्ट्रीय स्तर का है। यहां की पुस्तकों को पढ़ने के लिए बंगाल से विद्वानों की टोली आती थी। विद्यापति की लगभग सभी पांडुलिपियां यहां थीं। इस पुस्तकालय को दरभंगा राज के महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने स्थापित किया था। जिसे महाराजा रामेश्वर सिंह और कामेश्वर सिंह ने संजोकर वृहत बनाया। दरभंगा राज परिवार के निजी पुस्तकालय में एक से बढ़कर एक पुस्तकें मौजूद हैं। यह पुस्तकालय कितना महत्वपूर्ण है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि इसके प्रथम लाइब्ररियन सर गंगानाथ झा बने। जो महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह की मृत्यु के पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बने।

सेेमिनार में उपस्थित अतिथि और प्रतिभागी
मिथिला रिसर्च संस्थान के डॉ. मित्रनाथ झा ने कहा कि सरकारी उपेक्षा के बावजूद बाहर से शोधार्थी यहां आते हैं और अपने खर्चो पर शोध पूर्ण करते हैं। यहां ऐसी-ऐसी पुस्तकें और पांडुलिपियां है जो विश्व में कही और उपलब्ध नहीं हैं। राज लाइब्रेरी को लोकल संसाधनों से भी संरक्षित किया जा सकता है। ग्लोबल नॉलेज के साथ लोकल नॉलेज का भी प्रयोग होना चाहिए। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत डॉ. इन्द्रनाथ मिश्रा ने किया। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय पुस्तकालय निदेशक डॉ. रामभरत ठाकुर ने की। संगोष्ठी के दौरान संतोष कुमार झा ने प्रोजेक्टर के माध्यम से राज पुस्तकालय एवं महाराजा कामेश्वर सिंह संग्रहालय, नरगौना को पावर प्वाइंट प्रोजेक्शन के जरिए दिखलाया। संगोष्ठी में कुल 155 प्रतिभागियों ने भाग लिया। जबकि मौके पर राज पुस्तकालय के एडवाइजरी कमेटी के सदस्य पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह, डॉ मदन मोहन मिश्रा आदि ने अपने विचारों को व्यक्त किया। संगोष्ठी में फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, डॉ. बीबीएल दास, पूर्व कुलसचिव डॉ. अजित कुमार सिंह, डॉ. अरूणिमा सिंहा, डॉ. पुष्पम नारायण, डॉ.. विजय कुमार यादव, सुजीत साफी, भवेश, मिथलेश पासवान, विकास कुमार, गोपाल कृष्ण झा, निशा कुमारी, रश्मि रानी, अलका ठाकुर, रेशम कुमारी, आशा कुमारी आदि उपस्थित थीं। धन्यवाद ज्ञापन लाइब्रेरी साइंस विभाग के रंजीत कुमार महतो ने किया।

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