Friday, April 14, 2017

इन राजाओं ने देश में शिक्षा की अलख जगाने को कर दिया सब कुछ न्योछावर

सेमिनार का उद्घाटन करते अतिथि
मिथिला ज्ञानियों-दानियों की भूमि है। दरभंगा महाराज ने आजादी के आंदोलन को भी हवा दी थी। आज जब हर तरफ असहिष्णुता की बात होती है तो दरभंगा महाराज की सहिष्णुता याद आ जाती है। मिथिला में लंबे अरसे तक जमींदारी प्रथा रही है फिर भी यहां इसके विरूद्ध आंदोलन नहीं हुआ तो इसका सबसे बड़ा कारण दरभंगा महाराज की सहिष्णुता ही थी। दरभंगा महाराज का उच्च शिक्षा में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने तो अपना महल तक शिक्षा के लिए दान कर दिया। पटना, हैदराबाद, बनारस, कोलकाता आदि जगहों के विश्वविद्यालयों में महाराजा के बनवाए हुए भवनों में विधार्थी शिक्षा ग्रहण कर देश-विदेश के विकास में अपना योगदान दे रहे है। उपरोक्त बातें डाॅ. प्रभात दास फाउण्डेशन एवं सीएम साइंस काॅलेज के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘कंट्रिब्यूशन ऑफ मिथिला इन द मेकिंग आॅफ इंडिया’’ विषयक राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए लनामिविवि के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कही।

सेमिनार में बोलते एलएनएमयू के कुलपति डॉ. एसके सिंह
सेमिनार को संबोधित करते हुए वरीय पत्रकार एवं लेखक अरविंद मोहन ने कहा कि मिथिला का दार्शनिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, साहित्यिक विकास आदि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। बीएचयू के निर्माण में भी दरभंगा महाराज का भी कम योगदान नहीं है। बीएचयू की नींव दरभंगा महाराज ने ही रखी थी और उसके लिए मुक्त हाथों से दान भी दिया था। यह ज्ञानियों की भूमि है और पूरे विश्व को व्यवस्थित ढ़ंग से रहने का पाठ भी इसी धरा ने पढ़ाया है। महर्षि याज्ञवल्क्य, गार्गी, मैत्रयी, मंडन मिश्र, विद्यापति आदि की ज्ञान-उर्जा को वर्तमान में भी तेजस विमान के निर्माता वैज्ञानिक मानव बिहारी वर्मा और देश की पहली लड़ाकू विमान पायलट भावना कंठ जैसे लोग परवान चढ़ा रहे है। उन्होंने कहा कि मिथिला में प्रतिभा का सम्मान सदा से होता रहा है। सत्ताधारी वर्ग में ज्ञान की कोई कद्र नहीं बची है। तनिक भी उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि आमलोगों को उच्च स्तर का ज्ञान मिल रहा है या नहीं। ऐसी स्थिति में भी मिथिला की ज्ञान भूमि के लोग अपना परचम फहरा रहे है। ज्ञान की यह धारा सदैव प्रवाहित होती रहे। इसकी कोशिश यहां के बुद्धिजीवियों को करनी होगी।
सेमिनार में बोलते वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अरविंद मोहन
लनामिविविवि के राजनीतिकशास्त्र विभाग के डाॅ. जितेंद्र नारायण ने कहा कि मिथिला के बिना भारत का इतिहास अधूरा है। हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाने में मिथिला का बहुत बड़ा योगदान है। यह भूमि सहनशीलता का पाठ पढ़ाती है। जब सीवी रमण को रिसर्च करने के लिए हीरा नहीं मिल रहा था, तब उसे भी दरभंगा महाराज ने उपलब्ध कराया था। सत्ता को चुनौती देनेवाले नागार्जुन-दिनकर जैसे साहित्यकार भी इसी भूमि की उपज है।

सेमिनार में उपस्थित लोग
सीनेट सदस्य सह पूर्व विधान पार्षद डाॅ. विनोद कुमार चौधरी ने कहा कि मिथिला का इतिहास गौरवशाली है। जब भी ज्ञान की चर्चा होगी तो मिथिला का नाम स्वतः ही आगे आ जाएगा।  इतिहास पर गर्व करने के साथ-साथ वर्तमान को भी हमें ही संवारना होगा। 

सेमिनार में उपस्थित छात्र-छात्राएं
सेमिनार का संचालन डाॅ. संध्या झा ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रतन कुमार झा ने किया। इससे पूर्व स्वागत एवं सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. अरविंद कुमार झा ने कहा कि मिथिला के योगदान को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। मिथिला में एक से बढ़कर एक विद्वान तो हुए ही साथ ही अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले दरभंगा महाराज भी शामिल है। सेमिनार में फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, सीएम काॅलेज के डाॅ आरएन चौरसिया, प्रो. तारानंद झा, डाॅ. एसएन सिंह, सिनेट सदस्य डाॅ अजित चौधरी, डाॅ अजय कुमार ठाकुर, यूके दास, आनंद मोहन, प्रवीण झा, आनंद अंकित आदि उपस्थित थे।

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