Wednesday, March 1, 2017

‘जलील’ पर बिहार में क्यों जारी है राजनीतिक जंग ?

बिहार के उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान (फोटो साभार)
बिहार के उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री व कांग्रेस विधायक अब्दुल जलील मस्तान पर बिहार में सियासी जंग तेज हो गई है। भाजपा नेता नितिन नवीन ने मस्तान के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कराई है। दरअसल, एक वायरल वीडीयो के आधार पर यह बात कही जा रही है कि मस्तान ने नोटबंदी के विरोध में चल रही एक सभा में पीएम नरेंद्र मोदी को नक्सली कहा था। इतना ही नहीं लोगों को पीएम की तस्वीर पर जूते मारने को भी उकसाया था। खबर आने के बाद बिहार में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने जबर्दस्त विरोध शुरू किया। इसके बाद सीएम नीतीश व लालू समेत सभी प्रमुख नेताओं ने मस्तान के बयान की कड़ी निंदा की। इसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी भी शामिल थे। भारी दबाव के बाद मस्तान ने माफी मांग ली लेकिन यह सियासी जंग खत्म होती नजर नहीं आ रही है। विपक्ष मंत्री को हटाने की मांग पर अड़ा है। पलटवार में सत्ता पक्ष के कई नेताओं ने पीएम मोदी के भी कई बयानों की आलोचना की है।


भारत में मस्तान अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन पर किसी बड़े पद पर बैठे व्यक्ति पर अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगा हो। ऐसे नेता तकरीबन हर राज्य व पार्टी में हैं। असल में वोट बैंक की राजनीति व मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए नेता अब कुछ भी बोलने और उसके बाद माफी मांग लेने का चतुराई भरा काम करते हैं। उनकी पार्टियां इन्हें व्यक्तिगत बयान बताकर पल्ला झाड़ लेती हैं।

इस प्रकरण से बिहार में भाजपा को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया है। वह मंत्री मस्तान को बर्खास्त किए जाने तक आंदोलन की घोषणा कर चुकी है। वहीं, विपक्ष रक्षात्मक रणनीति के तहत मंत्री के बयान की निंदा करने के साथ ही पीएम मोदी को भी विवादास्पद बयान न देने की सलाह दे रहा है। इन सबके बीच इतना तय है कि जब तक मीडिया में मस्तान के बयान से ज्यादा बड़ा कोई दूसरा मुद्दा नहीं आ जाता तब तक मस्तान ही छाए रहेंगे। किसी मंत्री पर कार्रवाई मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। लेकिन मंत्री कांग्रेस के हैं इसलिए सीएम नीतीश के सामने दुविधा की स्थिति है। हालांकि महागठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी लालू ने मंत्री मस्तान पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। उधर, भाजपा नेता नितिन नवीन की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी पर पुलिस को जांच करनी है। मामला कोर्ट तक पहुंचने के पहले रफा-दफा हो जाए तो यह कहानी खत्म अन्यथा, विपक्ष कोर्ट में इसे खींचने की तैयारी में है। कम से कम यूपी विधानसभा चुनाव तक तो इस मुद्दे पर जंग रहने की पूरी संभावना है।

2 comments:

  1. chair ke liye leaders kuchh bhi ker sakte hai.yesa nahi ki ek hi party me yese leader hain but sare party me yese milenge.

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