जनसभा को संबोधित करते नीतीश (साभार फाइल फोटो) |
दिल्ली में बिहार व पूर्वी यूपी की बड़ी आबादी बसती है। इसमें भी भोजपुरी भाषियों की तादाद सबसे ज्यादा है। यह आबादी वहां एक बड़े वोट बैंक के रूप में स्थापित है। उसे लुभाने की कवायद भाजपा व कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा कई क्षेत्रीय दल भी करते रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि बिहार और पूर्वी यूपी के लोग वहां राजनीतिक समीकरण बनाने व बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। नीतीश कुमार पहले भी इस वोट बैंक को लुभाने की कई कोशिशें कर चुके हैं लेकिन उनकी पार्टी जदयू दिल्ली में अब तक कोई खास पहचान नहीं बना सकी है। इस बार नीतीश ने पूरा वर्क आउट किया है। उन्होंने ऐसा मुद्दा उठाया है जो पुरबिया लोगों की भावनाओं को सीधा प्रभावित करता है। फिलहाल नीतीश बिहार की सत्ता में हैं और दिल्ली में बसे भोजपुरी भाषी लोगों की नब्ज को बहुत अच्छी तरह से परख चुके हैं।
अप्रैल में होने जा रहे दिल्ली नगर निगम के चुनाव में नीतीश कुमार इस मुद्दे को जन आंदोलन की शक्ल में सामने लाने की तैयारी में हैं। वे जानते हैं कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की जिम्मेवारी केंद्र सरकार की है। दिल्ली के भोजपुरी भाषी अगर इस मुद्दे को मतदान से जोड़ लेंगे तो नीतीश को वहां फायदा होगा। नगर निगम चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक उनके पास हो सकता है। यह वोट बैंक उनके जनाधार को न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के उन सभी राज्यों में बढ़ाएगा जहां भोजपुरी भाषी लोग वोटर हैं। यह मुद्दा उन्हें दोनों राष्ट्रीय दलों भाजपा व कांग्रेस से बढ़त भी दिला सकता है जिन्होंने भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को हमेशा टरकाया है। नीतीश के इस प्रयास से अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है तव वे इसका सीधा फायदा लेंगे। अगर नहीं तो वे इस मुद्दे को लेकर लंबे समय तक आंदोलन जारी रखेंगे। इस कवायद से भी उन्हें बड़ा फायदा होगा। सीधी भाषा में समझें तो यह एक ऐसा राजनीतिक शिगूफा है जिसे छोड़कर नीतीश ने भाजपा व कांग्रेस दोनों को चुनौती दे दी है।
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