Friday, March 17, 2017

पीएम मोदी के खिलाफ नीतीश का मोर्चा, या करीब आने की तैयारी

नीतीश व मोदी (साभार फाइल फोटो)
पांच में से चार राज्यों में जीत के बाद भाजपा देश में मजबूत होकर उभरी है। उसने अभी से 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू करने का एलान कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक फिलहाल यह मान रहे हैं भाजपा 2019 में भी मजबूत होगी। इधर, बिहार में महागठबंधन सरकार चला रहे सीएम नीतीश कुमार के विधायकों ने विपक्ष से उन्हें पीएम प्रत्याशी के रूप में समर्थन देकर देश में चुनाव लड़ने का आह्वान किया है। इसका समर्थन राजद ने किया है। लेकिन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने लोकसभा चुनाव के समय इस मुद्दे पर विचार करने की बात कहकर जदयू की मांग को टाल दिया है। नीतीश को पीएम मैटेरियल बताकर जदयू देश में विपक्ष को एकजुट करना चाहता है या फिर भाजपा को अपनी शक्ति का अहसास दिलाकर उसके साथ मोलभाव करने की कोशिश, इस पर विचार करते हैं।

यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने फूंक-फूंक कर कदम रखा था। नीतीश ने यूपी में किसी दल के समर्थन में चुनाव प्रचार करने तक से परहेज किया था। इसके कई मायने निकाले गए। पहला तो यह कि वे विपक्ष के साथ नहीं आकर भाजपा का परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं। दूसरा यह कि उन्होंने सपा के दोनों धड़ों की लड़ाई को देखते हुए यह अनुमान लगा लिया था कि यूपी में पार्टी का यही हश्र होने वाला है। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि खुद को न्यूट्रल रखकर भाजपा व विपक्ष दोनों के भीतर अपनी उपयोगिता बनाए रखना चाहते थे। भाजपा अगर चुनाव हार जाती या फिर बहुमत के लायक सीटें नहीं ला पाती तो उसका मनोबल गिरता। वह लोकसभा चुनावों के लिए वैसे विश्वस्त दलों को अपने साथ लाती जो किसी कारण से उससे दूर जा चुके हैं। यह स्थिति नीतीश कुमार के लिए आदर्श होती। क्योंकि तब वे अपनी शर्तों पर मोलभाव करते और महागठबंधन के बजाए एनडीए में जा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा यूपी व उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत के साथ आई। पांच में से चार राज्यों में उसकी सरकार बन गई।

अब नीतीश कुमार की पार्टी जदयू विपक्ष को एक करके महागठबंधन बनाने की बात कर रही है। लेकिन शर्त यह है कि उन्हें पीएम प्रत्याशी माना जाए। इसका राजद ने समर्थन कर दिया है। क्योंकि नीतीश अगर केंद्र की राजनीति करते हैं तो लालू प्रसाद के बेटों के लिए आगे का रास्ता खुल जाएगा। कांग्रेस पहले की तरह महागठबंधन बनाने व नीतीश को पीएम प्रत्याशी मानने से आनाकानी कर रही है। सपा के अखिलेश व मुलायम, बसपा की मायावती व आप के अरविंद केजरीवाल की अपनी-अपनी मजबूरियां हैं। ये सभी बेहद मजबूत भाजपा के सामने नीतीश के नेतृत्व में आएंगे कि नहीं, यह कहना कठिन है। वह भी तब जब सपा व बसपा के कई मामले सीबीआइ की जांच के दायरे में है। ऐसे में उन्हें केंद्र की सहानुभूति की जरूरत किसी न किसी रूप में पड़ेगी। 

ऐसे में एक दूसरा फॉर्मूला नीतीश के पास होगा। वे भाजपा के साथ भी जा सकते हैं। हालांकि उनकी महत्वाकांक्षा बनी रहेगी। वे भाजपा के लिए एक और राज्य बिहार की सत्ता के दरवाजे खोल सकते हैं। यहां एनडीए की सरकार बनती है तो केंद्र में जदयू के मंत्री होंगे। वे अपने ढंग से नीतीश की उपलब्धियों को देश स्तर पर ले जाएंगे। यह मजबूती उनकी महत्वाकांक्षा की पूर्ति में सहायक होगी। धीरे-धीरे ही सही वे राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होंगे।

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