Sunday, March 5, 2017

नीतीश-लालू को क्यों याद आई भोजपुरी

 (चित्र साभार। संभव है कि सरकारी मानक के अनुसार यह नक्शा न हो)
बिहार कैबिनेट ने हाल ही भोजपुरी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने को लेकर केंद्र को प्रस्ताव भेजने का फैसला किया है। यह खबर बिहार-यूपी समेत देश के उन इलाकों में सुर्खियों में रही जहां भोजपुरी बोलने वाले लोग बसते हैं। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग नई नहीं है। इसके लिए लोकसभा में कई बार प्रस्ताव लाए गए हैं। लेकिन इस पर गंभीरतापूर्वक कभी विचार नहीं किया गया। विभिन्न दल के नेता वोट बैंक बनाने के लिए इस मुद्दे को अक्सर उठाते रहते हैं। भोजपुरी के लिए नीतीश सरकार की इस ताजा पहल का कितना असर होगा आइए, इसका विश्लेषण करते हैं।


नीतीश कुमार (चित्र साभार)
भोजपुरी बिहार, यूपी, झारखंड व छत्तीसगढ़ के अलावा नेपाल के कई सीमावर्ती जिलों के लोगों की मातृभाषा है। इसके अलावा देश के वैसे सभी क्षेत्र जहां इन इलाकों के लोग बहुतायत बसते हैं वहां भोजपुरी का प्रसार हुआ है। बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार यह 30 करोड़ से ज्यादा लोगों की भाषा है। दुनिया के दूसरे हिस्सों मॉरिशस, फिजी, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, बारबाडोज, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, थाईलैंड समेत कुछ अन्य देशों को जोड़ दें तो भोजपुरी बोलने वालों की संख्या दुनिया में 90 करोड़ के आसपास है। नेपाल समेत कई देशों में सरकारी रेडियो व टीवी पर भोजपुरी भाषा में समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। देश में 30 करोड़ व पूरी दुनिया में 90 करोड़ लोगों की भाषा को भारत में संविधान की आठवीं अनुसूची में नहीं रखे जाने के थोड़े तकनीकी व बहुत से सामाजिक व राजनीतिक कारण रहे हैं। 

लालू प्रसाद (चित्र साभार)
भोजपुरी बिहार-यूपी से निकलकर दुनिया के दूसरे देशों में पहुंची। मॉरिशस में गिरमिटिया मजदूर बनकर गए लोगों ने सात समुंदर पार न सिर्फ अपनी सत्ता कायम की बल्कि भोजपुरी को वहां की राजकाज की भाषा बना दिया। दुनिया के कई देशों में यह फल-फूल रही है। भोजपुरी फिल्में व लोकगीत न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में बेहद लोकप्रिय हुई हैं। इस भाषा ने करोड़ों लोगों को रोजगार दिया है। भोजपुरी ने सबको बिना भेदभाव के दिया। उन्हें जिन्होंने इसमें साधना की, इसे सम्मान दिया और उनको भी जिन्होंने इसे अश्लीलता का पर्याय कहलवाया। इस भाषा को अपनाकर लालू प्रसाद जैसे नेता देश-दुनिया में लोकप्रिय हुए तो शत्रुघ्न सिन्हा अभिनय की दुनिया में बिहारी बाबू के रूप में प्यार-दुलार पाते रहे। ये दोनों तो बस उदाहरण हैं। भोजपुरी ने जिनको ऊँचाई पर पहुंचाया उनमें से गिने-चुने लोग ही होंगे जिन्होंने इसे सम्मान व हक दिलाने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ी हो।

वर्तमान में संविधान की आठवीं अनुसूची में देश की 22 भाषाएं शामिल हैं। इनमें से बहुत सी ऐसी हैं जिनकी तुलना में भोजपुरी का प्रसार कई गुणा ज्यादा है। लेकिन इसे आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने से केंद्र की सरकारें कतराती रही हैं। भोजपुरी देश के कई विश्वविद्यालयों में पीजी तक पढ़ाई जाती है। संस्कृति के मामले में यह बेहद समृद्ध है। लेकिन कई तकनीकी कारण गिनाकर इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता। कई लोग इसे भाषा न कहकर हिंदी की एक बोली मानते हैं। आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किए जाने की सबसे बड़ी वजह इसकी लिपि का न होना बताई जाती है। यह नासमझ लोगों की सोच है। जो लोग भोजपुरी का इतिहास नहीं जानते उनसे यह सवाल है कि बिना किसी लिपि के कोई भाषा पीजी स्तर तक कैसे पढ़ाई जा सकती है? दरअसल भोजपुरी पुराने समय में कैथी लिपी में लिखी जाती थी। इसके साथ कुछ दूसरी भाषाएं भी कैथी लिपि में लिखी जाती थीं। लेकिन बाद में कई भाषाओं की तरह देवनागरी को भोजपुरी के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। यह कोई कारण नहीं है कि इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह न मिले। भोजपुरी को संविधान का यह दर्जा मिलने के बाद इसे भारतीय प्रशासनिक सेवा व राज्यों की प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में जगह मिल जाएगी। संसद व विधानसभाओं में शपथ ग्रहण से लेकर कई विधायी कार्यों में इसे शामिल किया जाएगा। साहित्य अकादमी के पुरस्कार इसमें मिलने लगेंगे। साथ ही इस भाषा को लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या में इजाफा होगा।

नीतीश सरकार ने केंद्र को प्रस्ताव भेजकर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के आग्रह का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। लेकिन संसद में जितनी जोरदार मांग इसके लिए उठनी चाहिए वह नहीं उठती है। देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले बहुत से नेता हैं जो भोजपुरी इलाकों से आते हैं। लेकिन शायद ही किसी ने निर्णायक लड़ाई अपनी मातृभाषा के लिए कभी लड़ी। यूपीए की सरकार ने अंतिम समय में इस संबंध में संसद में एक प्रस्ताव लाया था। तब दक्षिण भारत से आने वाले तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भोजपुरी बोलकर संसद व उससे बाहर खूब तारीफ बटोरी थी। लेकिन उसके बाद प्रस्ताव ठंडे बस्ते में रह गया। देखना होगा कि बिहार सरकार की इस पहल को आगे बढ़ाने व इसके लिए निर्णायक लड़ाई लड़ी जाती है, या हर बार की तरह फिर भोजपुरी भाषी लोगों को झुनझुना ही थमा दिया जाता है।



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