Sunday, March 19, 2017

योगी से निपटने का फॉर्मूला नीतीश के पास

नीतीश कुमार व योगी आदित्यनाथ (साभार फाइल फोटो)
यूपी में भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को सीएम क्या बनाया देश की राजनीति में एक भूचाल सा आ गया। दूसरे दलों के नेताओं की कौन कहे भाजपा के नेता भी हतप्रभ रह गए हैं। मीडिया में योगी के गुण-दोष गिनाए जा रहे हैं। जनता ने इस पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया दी है। सोशल मीडिया पर तो योगी के पक्ष व विपक्ष में गजब की गोलबंदी दिख रही है। बिहार में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को छोड़ किसी भी प्रमुख नेता ने योगी पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह एक सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है। बिहार बीजेपी में भी उत्साह है। यहां यूपी चुनाव में न्यूट्रल रहे नीतीश पर सबकी नजर है। बिहार के बिल्कुल सटे पूर्वांचल के गोरखपुर से आने वाले योगी आदित्यनाथ की शैली बेहद आक्रामक है। वे बिहार की परिस्थियों से पूरी तरह वाकिफ हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए योगी की मुहिम शुरू होने के पहले बिहार में उनसे मुकाबला करने के लिए चेहरे की तलाश है। ऐसे में सबकी निगाहें विकास पुरूष कहलाने वाले नीतीश कुमार पर टिकी हैं।

भाजपा ने बिहार चुनाव से सीख लेते हुए यूपी के कई प्रयोग किए। वहां उसने पिछड़ों और अगड़ों दोनों को गोलबंद कर दिया। कई स्थानों पर धार्मिक गोलबंदी का मामला भी दिखा। यूपी में योगी आदित्यनाथ एक कट्टर हिंदूवादी छवि के नेता माने जाते हैं। विपक्ष ने पीएम मोदी को जितना निशाने पर ले रखा है उससे कई गुणा आगे हैं योगी। योगी ने बीजेपी को पूर्वांचल में सबसे ज्यादा सीटें दिलवाई हैं। वे राम मंदिर के मुद्दे को लेकर उतरे थे, हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को समझने के वादे के साथ उतरे थे। उन्होंने यूपी खासकर पूर्वांचल के उल्लेखनीय विकास का सपना भी दिखाया है। भाजपा के जिस वर्ग ने यूपी में योगी को सीएम बनवाया है वह वर्ग भली-भांति यह जानता है कि यूपी से सटे बिहार में उनकी पार्टी बुरी तरह पिट चुकी है। ऐसे में भाजपा की रणनीति यह होगी कि महागठबंधन को अभी से ही घेरा जाए। भाजपा के पास यह मौका भी है। वह यूपी में तो जीत कर आई ही है उसके पास झारखंड की सत्ता भी है। रांची व लखनऊ से पटना को घेरने की रणनीति बनाने की जरूरत है।

दूसरी तरफ बिहार में नीतीश कुमार की सरकार है जो विकास के मामले में उदाहरण पेश कर चुके हैं। नीतीश कुमार की छवि साफ-सुथरी व बेदाग मानी जाती है। उन्होंने भाजपा के साथ रहते हुए साढ़े आठ साल तक बिहार में शासन किया। नरेंद्र मोदी के साथ महत्वाकांक्षा की लड़ाई में उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया। वे लालू व कांग्रेस के साथ चले गए। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत हुई। लेकिन अपराध व घोटालों की वजह से उनका यह कार्यकाल विवादित रहा है। यह विवाद उनकी अपनी छवि को लेकर भले ही नहीं है, लेकिन सरकार का मुखिया होने के नाते उन पर असर डाल सकता है। राजनीति में यह कहा जाता है कि आप भले ही न हारें, लेकिन आपके विरोधियों की जीत आपकी हार ही मानी जाती है। ऐसे में 2015 का विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद नीतीश कुमार परेशान हैं। उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव की चिंता है। राजनीतिक जानकारों की माने तो वे दुविधा में हैं।

नई परिस्थितियों में बिहार में नीतीश कुमार के सामने दो रास्ते हैं। पहला ये कि वे महागठबंधन सरकार के साथ रहते हुए लोकसभा चुनाव की तैयारी करें। यह मुश्किल लगता है। क्योंकि उनके साथ थकी-हारी कांग्रेस है जो हर कदम पर लड़खड़ा रही है। उनके साथ लालू प्रसाद के रूप में एक बड़ा चेहरा तो है, लेकिन सरकार के कामकाज से लेकर चुनाव प्रचार तक उनका करिश्मा अब कितना दिखेगा, यह कहा नहीं जा सकता है। महागठबंठधन सरकार बनने के बाद बढ़ी आपराधिक घटनाएं व घोटाले लालू की पुरानी कार्यशैली की ओर इशारा करते हैं। यह बदनामी नीतीश कुमार के लिए बहुत बड़ी है। इस बदनामी के साथ चुनाव में उतरना उनके लिए खतरे से खाली नहीं है। नीतीश कुमार के साथ उड़ीसा के बीजू पटनायक, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी व पश्चिमी यूपी के अजीत सिंह जैसे कुछ नेता आ सकते हैं लेकिन उनका राष्ट्रीय स्तर पर कोई खास महत्व बनेगा, यह कहना मुश्किल है। बदलती परिस्थितियों में मुलायम व मायावती किस करवट जाएंगे, यह कहना भी मुश्किल है।

तब नीतीश के पास एक दूसरा रास्ता है। वे महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए के साथ चले जाएं। वे ऐसा आसानी से कर सकते थे। वे इस इंतजार में थे कि भाजपा यूपी चुनाव के बाद किसी सम्मानजनक समझौते के तहत उन्हें एनडीए से जोड़ेगी। वे बिहार के विकास के मुद्दे पर एनडीए में लौटेंगे। लेकिन जिस आक्रामक शैली के साथ भाजपा यूपी में जीत कर आई है उसमें नीतीश के साथ, उनकी शर्तों पर समझौता करने के बजाए अपराध व घोटालों पर आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए लोकसभा चुनाव में जाना पसंद करेगी। ऐसे में नीतीश को तय करना होगा कि वे कुछ झुककर भी एनडीए के साथ जाते हैं या महागठबंधन के साथ ही चुनाव लड़ते हैं।

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