Monday, July 10, 2017

मध्यावधि चुनाव की ओर बढ़ रहा बिहार

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, पीएम नरेंद्र मोदी व बिहार के सीएम नीतीश कुमार (साभार फाइल फोटो)
बिहार में महागठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, राज्यसभा सांसद बेटी मीसा भारती और उप मुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के चल रहे मामलों से परिवार और पार्टी दोनो संकट में हैं. दूसरे सहयोगी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर न्यूट्रल रुख अख्तियार कर चुके हैं. इस बीच लालू ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग को खारिज कर दिया है. पिछले कई महीनों से महागठबंधन की मर्यादा से बाहर जाकर किए गए नीतीश के कई चौंकाने वाले फैसलों से महागठबंधन पहले ही कमजोर हो चुका है. ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश कुमार लालू व उनके परिवार के राजनीतिक अवसान को आखिर-आखिर तक देखना चाहते हैं. वे महागठबंधन को उसकी मौत मरने देना चाहते हैं. ऐसे में लालू सत्ता का मोह छोड़ जनता के बीच जाने की राह अख्तियार कर सकते हैं. तब बिहार में मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं. भाजपा भी इसी का इंतजार कर रही है.


बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (साभार फाइल फोटो)
वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा बिहार में काफी कमजोर पड़ गई थी. देश के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण राज्य में हारने का असर देश भर में उसके मनोबल पर पड़ा था. लेकिन 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव जबर्दस्त ढंग से जीतने के बाद पार्टी अब फुल फॉर्म में है. पिछले कुछ महीनों से लालू एंड फैमिली के पुराने मामलों को ढूंढ-ढूंढ कर खोला जा रहा है. साथ ही कई नए मामले भी निकाले गए हैं. चारा घोटाले के केस में लालू खुद बुरी तरह उलझे हैं. उनके जेल जाने की नौबत आ पहुंची है. बेटी मीसा और पुत्र तेजस्वी पर भी आयकर और ईडी का शिकंजा बुरी तरह कसता जा रहा है. ऐसे में इन लोगों का भी जेल जाना लगभग तय माना जा रहा है. लालू इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए छटपटा रहे हैं. माना जा रहा है कि यही छटपटाहट थी जिसने लालू के कुछ खास नेताओं को हाल ही में परदे के पीछे से भाजपा से समझौता कर नीतीश की सरकार गिराने की पहल तक करवा दी थीं. 
राज्यसभा सांसद मीसा भारती (साभार फाइल फोटो)
भाजपा ने लालू के नेताओं की इस पहल को नकार दिया. दूसरी तरफ नीतीश के करीब आने की कोशिशों का भी वह खुलकर स्वागत नहीं करना चाहती. उसे लगता है कि नीतीश के साथ दोबारा अपनी शर्तों पर जाएंगे, नीतीश के दबाव में नहीं आएंगे. दरअसल पिछले समय में भाजपा केंद्र से लेकर कई राज्यों में मजबूत हुई है. उसे लगता है कि बिहार में जब भी चुनाव हों वह यूपी की तर्ज पर बंपर सीटें लेकर जीत दर्ज करेगी. इसलिए वह कोई भी अलोकतांत्रिक कदम उठाने से परहेज कर रही है. वह महागठबंधन को अपनी मौत मरने देने के लिए छोड़ रही है. हालांकि दूसरी तरफ से उसकी यह भी कोशिश है कि बिहार में ऐसी परिस्थितियां बन जाएं जिसमें मध्यावधि चुनाव हो जाए.

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (साभार फाइल फोटो)
उधर, 2015 में नीतीश कुमार ने भाजपा को औकात दिखाने के लिए लालू से हाथ मिलाया था. इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी. लेकिन लालू के साथ अभी सत्ता में आए कुछ ही दिन हुए थे कि बिहार में अपराध व घोटालों का जबर्दस्त दौर सामने आने लगा. इससे नीतीश को परेशानी होने लगी. राजनीतिक जानकारों ने लालू के साथ नीतीश के महागठबंधन को बेमेल और अवसरवादी कहा था. वह सच सामने आने लगा. नीतीश को यह डर भी सताने लगा कि 2019 के लोकसभा व 2020 के विधानसभा चुनाव में वह लालू के साथ रहते हुए जीत पाएंगे या नहीं. बस इसलिए वे अपने अलग स्टैंड पर चलने लगे. अब भी उनका वही रुख जारी है.

मुसीबत में घिरे लालू हर हाल में सत्ता से जुड़े रहना चाहते हैं. लेकिन अगर उनकी यह कोशिश कामयाब नहीं होती है तो वे अपने मजबूत जनाधार और जातीय समीकरण को अपनी ढाल बनाएंगे. वे सहानुभूति वोट बटोरने के लिए मध्यावधि चुनाव में जा सकते हैं. जहां उनका मुख्य मुकाबला नीतीश से ही होगा. ऐसी स्थति में नीतीश भाजपा की शर्तों पर उसके साथ हो सकते हैं. भाजपा यही चाहती है.

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