Sunday, July 9, 2017

बेंगलुरू-हैदराबाद नहीं, झारखंड के जंगलों से चलता है साइबर क्राइम का राज

साइबर अपराध के आरोपितों को गिरफ्तार कर ले जाती पुलिस (साभार फाइल फोटो)
झारखंड के देवघर जिले के सारठ के इलाके में बीपीएल परिवार का एक व्यक्ति संदीप महरा कीमती प्लॉट खरीदकर आलीशान मकान बना रहा है. महज कुछ सालों पहले तक वह खेत मजदूर था. उसके पास अपनी झोपड़ी के अलावा कोई जमीन तक नहीं थी. न तो उसकी कोई लॉटरी लगी और न ही किसी व्यवसाय में उसे कोई फायदा हुआ. बावजूद उसकी यह चमत्कारिक तरक्की हैरत में डालती है. करीब दो साल पहले पुलिस साइबर क्राइम के आरोप में उसके घर छापेमारी के लिए पहुंची थी. लेकिन गांव के लोगों को इस बात का विश्वास नहीं हुआ और उसे पुलिस से झड़प करके छुड़ा लिया गया था.

संदीप महरा एक बानगी है. देवघर, जामताड़ा,गिरिडीह और आसपास के जिलों के दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां से आपको ऐसे नव धनाढ्यों की लंबी सूची मिलेगी. कम पढ़े-लिखे ऐसे युवा महंगे मोबाइल फोन, टीवी-फ्रिज व महंगी गाड़ियों में वेल मेंटेन दिख जाते हैं. स्थानीय लोगों को इनकी तरक्की का राज तब पता चला जब देश के कई राज्यों की पुलिस साइबर क्राइम की जांच-पड़ताल के लिए इन नव धनाढ्यों के घर छापे मारने पहुंचने लगी. पहले तो लोगों ने पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध किया. कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनमें आरोपितों को पुलिस से जबरन छुड़ा लिया गया. बाद में धीरे-धीरे लोग वास्तविकता से अवगत होने लगे. अब तो खुद गांव के लोग पुलिस-प्रशासन से ऐसे संदिग्धों की संपत्ति की जांच की मांग करने लगे हैं. 

साइबर अपराधियों की तलाश में छापेमारी करती पुलिस (साभार फाइल फोटो)
पिछले कुछ सालों में झारखंड के सुदूर जंगल के इलाके देश में साइबर क्राइम का गढ़ बनकर उभरे हैं. ये देश के सभी राज्यों के हजारों लोगों को चूना लगा चुके हैं. बैंक अधिकारी बनकर लोगों को फोन करते हैं. एटीएम कार्ड ब्लॉक हो जाने की बात कहकर डराते हैं. कार्ड का नंबर और पिन मांगकर खाते से पैसे उड़ा लेते हैं. आपको जब पता चलता है कि आपके खाते से गाढ़ी कमाई के पैसे उड़ा लिए गए हैं तो आप हक्के-बक्के रह जाते हैं. फिर बैंक में कम्पलेन और थाने में मामला दर्ज कराने की कार्रवाई होती है. लेकिन शायद ही कोई मामला ऐसा हो जिसमें ग्राहक के पैसे रिकवर हुए हों.

जामताड़ा, देवघर और गिरिडीह समेत आसपास के जिलों में चल रहे साइबर क्राइम के रैकेट में नयी पीढ़ी तेजी से प्रवेश कर रही है. इन्हें महंगे मोबाइल फोन और ब्रांडेड कपड़ों के लालच के साथ-साथ अच्छी-खासी मासिक राशि देकर गिरोह में शामिल किया जाता है. धीरे-धीरे इन्हें इसकी लत लग जाती है. उसके बाद ये खुद ही मास्टरमाइंड बन जाते हैं और अपना खुद का गिरोह बना लेते हैं.

आए दिन कई राज्यों की पुलिस की धमक के बाद स्थानीय पुलिस ने इसे चुनौती और सामाजिक समस्या के तौर पर लिया है. पुलिस संदिग्ध लोगों के आर्थिक इतिहास की पड़ताल करते हुए साइबर अपराध के आरोपितों की प्रोफाइल तैयार कर रही है. इनकी सूची बनाने के लिए ब्लॉक के बीडीओ-सीओ को कहा गया है. उसके बाद इन पर दोतरफा वार किया जाएगा. पुलिस में दर्ज आरोपों और आय से अधिक संपत्ति के मामलों की जांच की जाएगी.



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