नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार (साभार फाइल फोटो) |
बिहार में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि महागठबंधन सरकार पर गहरे संकट के बादल हैं. दोनो बड़े सहयोगी नीतीश और लालू में ठन चुकी है. लालू ने अपनी सत्ता व परिवार बचाने के लिए नीतीश को काफी ढील दी. लेकिन जब परिवार और सत्ता दांव पर लग गए तो वे राजनीतिक साख बचाने के लिए महागठबंधन को तिलांजलि देने को भी तैयार हो गए हैं. उपमुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी यादव के इस्तीफे की जदयू की मांग को उन्होंने ठुकरा दिया है. जदयू के चार दिनों के इस्तीफे के अल्टीमेटम को लालू ने चार घंटे में ही खारिज कर दिया. इन सबके बीच कांग्रेस की ओर से महागठबंधन बचाने की कोशिशें जारी हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि चार दिनों बाद महागठबंधन सरकार का क्या भविष्य होगा, अगर यह सरकार चली जाती है तो बिहार में किसकी सरकार बनेगी. आइए, इसका विश्लेषण करते हैं.
लालू प्रसाद, राजद सुप्रीमो (साभार फाइल फोटो) |
सत्ता पर कब्जा और राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने की जद्दोजहद में एक-दूसरे के धुर विरोधी लालू और नीतीश कुमार बिहार में साथ आए थे. ये दोनो जिसके खिलाफ राजनीति कर बिहार में लंबे समय तक सत्ता चलाते रहे, उस कांग्रेस को भी इन्होंने अपने साथ सत्ता में हिस्सेदार बना लिया था. महागठबंधन सरकार के आए कुछ दिन हुए थे कि यह लगने लगा कि यह बेमेल गठबंधन लंबे समय तक चलने वाला नहीं है. मजबूरी में साथ तो आए लेकिन नीतीश कुमार की कार्यशैली लालू से भिन्न थी, इसलिए दोनो के बीच आंतरिक टकराव बढ़ता गया. नीतीश इस गठबंधन से अलग होने के लिए छटपटाने लगे. लेकिन गठबंधन तोड़ने पर उन्हें जनता के सवालों के जवाब देने पड़ते, इसलिए वे मौन रहकर अपने अलग स्टैंड पर चलने लगे. कहा तो यहां तक जा रहा है कि लालू एंड फैमिली को बर्बाद करने का जो सीन बिहार में चल रहा है उसकी पटकथा बीजेपी से लिखवाने में नीतीश का भी योगदान है.
नीतीश जानते हैं कि सत्ता बचाने के लिए लालू अपने परिवार को मोहरा नहीं बनने देंगे. बस इसी बात पर महागठबंधन का टूटना तय है. तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे तो नीतीश खुद इस्तीफा देकर इस सरकार की इतिश्री कर देंगे. लेकिन उसके बाद क्या होगा, इस पर लालू और नीतीश दोनों के भीतर मंथन जारी है. नीतीश के सामने पहला विकल्प है भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेने का. दूसरा बाहर से भाजपा से समर्थन लेकर सरकार चलाने का, जिसका ऑफर भाजपा ने उन्हें दिया है. तीसरा विकल्प विधानसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव में जाने का है. लेकिन नीतीश अकेले चुनाव लड़कर बिहार में जीत नहीं सकते हैं. इसलिए तब वे भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. भाजपा भी बचे कार्यकाल में नीतीश के साथ सरकार चलाने के बजाए चुनाव में जाना ज्यादा पसंद करेगी. हालांकि इस पर अभी पार्टी को विचार करना है. लालू के पास ऐसी स्थिति में एक ही विकल्प है. सत्ता गंवाने के बाद वे देश में विपक्ष को एक मंच पर लाएं. हालांकि उनके ऊपर जिस तरह से कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है उसे देखते हुए उनके लिए ऐसा कर पाना बहुत कठिन होगा.
आपको नहीं लगता है कि ऐसी परिस्थिति में जदयू में विद्रोह होगा ?
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