Tuesday, July 11, 2017

क्या नीतीश करेंगे आर-पार का फैसला

नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार (साभार फाइल फोटो)
बिहार की राजनीति में जारी हलचल धीरे-धीरे भूचाल की ओर बढ़ रही है. बेनामी संपत्ति मामले में फंसा लालू का परिवार अब भी इस मुगालबे में है कि वह किसी न किसी दाव-पेच से फौरी तौर पर इस मुसीबत से निकल ही जाएगा. लालू ने नीतीश को दो टूक जवाब दे दिया है कि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे. उधर, लालू के इस दो टूक के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन के भारी दबाव में आ गए हैं. उन्हें विपक्ष ने आर या पार रहने की चुनौती दे डाली है. विपक्ष की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए गोपाल कृष्ण गांधी का नाम तय कर दिया गया है. उनके लिए विपक्ष के इस फैसले के साथ जाना सहज नहीं होगा. अब नीतीश के लिए ‘एक रास्ता’ चुनना उनकी मजबूरी होगी. या फिर सत्ता का मोह छोड़ सरकार गिराकर मध्यावधि चुनाव में जाना होगा.
लालू प्रसाद, राजद सुप्रीमो (साभार फाइल फोटो)
दरअसल नीतीश कुमार के साथ उनकी छवि बचाने की चुनौती गले पड़ गयी है. तीन साल पहले उन्होंने सांप्रदायिक शक्तियों से अलग होने की बात कहकर भाजपा से किनारा कर लिया था. उन्होंने लालू व कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. तब राजनीतिक समीकरण ऐसे बने कि नीतीश का फैसला सही साबित हुआ और वे फिर से सत्ता में आ गए. न सिर्फ सत्ता में आए बल्कि राजनीतिक अवसान की तरफ बढ़ रहे लालू को भी संजीवनी दे दी. लेकिन उनके इस फैसले को भी बाद के घटनाक्रमों ने गलत साबित कर दिया. लालू सत्ता में आने के बाद बिहार में अपनी 15 साल की सरकार वाली शैली में आना चाहते थे. लेकिन भ्रष्टाचार और अपराध को मुद्दा बनाकर बिहार की सत्ता में आए नीतीश के लिए यह सहज नहीं था. अचानक बढ़े अपराध व भ्रष्टाचार पर नीतीश चिंतित थे. वे अपने गठबंधन के फैसले को जहां तक संभव था, सही ठहराते रहे. लेकिन आखिरकार जब उन्हें लगा कि वे लालू के साथ बेमेल गठबंधन कर चुके हैं, तब उन्होंने अपना अलग स्टैंड अख्तियार कर लिया. अब जबकि पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है तब नीतीश पर आर-या पार का फैसला लेने का दबाव बढ़ता जा रहा है. लेकिन वे पशोपेश में इस बात को लेकर हैं कि लालू से अलग होने के बाद वे देश में विपक्ष का बड़ा चेहरा बनने से भी रह जाएंगे.

लालू ने बेटे के इस्तीफे से इनकार कर नीतीश को एक चुनौती दी है कि वे अपना स्टैंड साफ करें. उन्हें लगता है कि नीतीश के साथ छोड़ जाने के बाद भी वे अपने जनाधार व कांग्रेस के साथ के बल पर झंझावात से उबर पाएंगे. देखना होगा कि भारी राजनीतिक दबाव झेल रहे नीतीश कुमार क्या फैसला करते हैं. वे महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाते हैं या फिर विधानसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव करवाते हैं. वैसे भाजपा ने उन्हें एक तीसरा विकल्प भी सुझाया है. वह है बाहर से नीतीश की नई सरकार को समर्थन देने का. गेंद नीतीश के पाले में है.

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