Thursday, July 13, 2017

बिहारः भाजपा का कसता शिकंजा, महागठबंधन को कब तक ढोएंगे नीतीश


प्रतीकात्मक साभार फाइल फोटो
बिहार की महागठबंधन सरकार आखिरी सांसे गिन रही है. कानूनी मुसीबत में घिरे लालू परदे के पीछे से इसे बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. हालांकि ऊपर से उनकी ठनक काफी हद तक अभी बरकरार है. उधर, नीतीश के लिए महागठबंधन बनाए रखना सांप-छुछुंदर के हाल जैसा बनता जा रहा है. वे इसे उगल देने या निगले रखने की दुविधा में हैं. इस खेल में पावरफुल रेफरी की भूमिका में भाजपा है, जो हर हाल में इस गेम को जल्द ओवर करने की फिराक में लगी है. इस बीच अब इतना तो तय हो गया है कि वक्त से पहले बिहार की सियासत का यह गेम ओवर हो जाएगा.


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (साभार फाइल फोटो)
ऊंची राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए जाने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सियासत के भी माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. तीन साल पहले जब उन्होंने अपने 17 साल पुराने सहयोगी भाजपा से किनारा किया था तो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा चरम पर थी. लेकिन तब भी वे किसी सामाजिक न्याय या दलितों-महादलितों की भलाई के लिए अलग नहीं हुए थे. उन्हें इस बात का आभास था कि लालू की कार्यशैली के साथ उनका टकराव निश्चित है. लेकिन उन्हें इस बात का गुमान था कि इस महागठबंधन के बहाने उन्हें भाजपा के विरोध की राजनीति करने और अपनी राष्ट्रीय छवि गढ़ने का एक मौका मिल जाएगा और 2019 के लोकसभा चुनाव तक वे भाजपा का विकल्प और साझे विपक्ष का राष्ट्रीय चेहरा बन जाएंगे. उनके सबसे बड़े सहयोगी लालू को इस पर कोई ऐतराज भी नहीं था. उन्हें अपने बेटे-बेटियों का राजनीतिक करियर बिहार में संवारना था. लेकिन कांग्रेस ने नीतीश के इस एजेंडे पर पानी फेर दिया. उसने हमेशा राहुल गांधी को प्रमोट किया. ढाई साल तक सरकार चलाने के बाद भी नीतीश अपने एजेंडे में जब सफल नहीं हुए तो उनके भीतर की छटपटाहट फिर उन्हें उकसाने लगी. उन्होंने अपने अलग स्टैंड पर चलते हुए परदे के पीछे से भाजपा का समर्थन करना शुरू कर दिया. ऐसा करके वे कांग्रेस और लालू को डराने लगे तो भाजपा को भी इशारों-इशारों में यह समझाने लगे कि उनके पास विकल्प है. उनकी इस कोशिश का महागठबंधन पर कोई असर नहीं हुआ. कांग्रेस व लालू इसके शिकार नहीं हुए.

बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (साभार फाइल फोटो)
उधर नीतीश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से बिहार में हारकर सरकार गंवा चुकी भाजपा कमजोर तो हुई थी लेकिन वह घायल शेर की तरह मौके पर शिकार को घेरने का इंतजार कर रही थी. बिहार चुनाव हारने के बाद मोदी और शाह की जोड़ी पार्टी के भीतर भी कमजोर हुई थी. उसने बिहार की गलतियों से सीख लेते हुए यूपी चुनाव जीतने के लिए बेहतर प्लानिंग की. यूपी में शानदार जीत के बाद वह फुल फॉर्म में आई. उसके बाद वह एक साथ लालू, नीतीश और कांग्रेस तीनों पर हमलावर हुई. लालू का पुराना चारा घोटाले का मामला चल ही रहा था कि कई नए घोटाले सामने आने लगे. लालू-राबड़ी के अलावा उनके बेटे, बेटियां व दामाद भी नए-नए मामलों में फंसे दिखने लगे. इन पर जांच के मामले में मोदी सरकार किसी भी ढील के पक्ष में नहीं दिख रही है.

बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (साभार फाइल फोटो)
केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा बिहार से महागठबंधन को उखाड़ फेंकने की रणनीति पर चल रही है. वह लालू एंड फैमिली के मामले में नीतीश को इस कदर दबाव में डालने की रणनीति पर चल रही है कि जल्द महागठबंधन टूट जाए. लेकिन इस बार वह नीतीश की शर्तों पर उनके साथ जाना नहीं चाहती है. वह विनर के रूप में सम्मानजनक समझौते के तहत नीतीश के साथ जाने की इच्छुक है. बस यहीं पर आकर मामला फंस रहा है और महागठबंधन लंबा खिंचता जा रहा है. अपनी शर्तों पर राजनीति करने और शासन चलाने के आदी हो चुके नीतीश पशोपेश में हैं. भाजपा धीरे-धीरे अपना शिकंजा कसती जा रही है. देखना होगा कि भारी दबाव में पड़े नीतीश आखिर कब तक महागठबंधन को ढोते हैं.



1 comment:

  1. लालू जी पर्दे के पीछे गठबंधन बचाने में नहीं, जदयू को तोड़ने में लगे हुए हैं. उनकी नजर जदयू में यादव और मुस्लिम विधायकों पर है, अगर लालू जी सफल हो गए तो नीतिश जी डफली बजाते रह जाएंगें !

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